24 सितंबर 2021
2020 की पहली लहर से 2021 की मार्च-जून में आई दूसरी लहर, हमारे संतों पर 10 गुना भारी पड़ी। आप विश्वास नहीं करेंगे, पर यह कड़वा सच है कि पहली लहर से जैन समाज ने कुछ नहीं सीखा और खास भक्तों व दर्शन के नाम पर ‘कोरोना’ को उन तक पहुंचाने में, हमने मानो कोई कसर नहीं छोड़ी।
दिगम्बर समाज कोरोना के कारण संतों के देवलोकगमन का आंकड़ा छिपाता रहा है, तब भी सूत्र कहते हैं कि दूसरी लहर में 50 से ज्यादा संत कोरोना की गिरफ्त में आये। वहीं 10 से ज्यादा दिगम्बर संतों का कोरोना के कारण असमय देवलोकगमन हो गया। जुलाई 2021 को समाप्त 12 माह में 83 दिगम्बर संतों की समाधि हुई, इतनी बड़ी संख्या पिछले 30 सालों में कभी सामने नहीं आई। इसके बढ़ने का प्रमुख कारण कोरोना ही रहा।
वैसे यह संख्या और भयावह स्थिति बताती है, जब हम सभी जैन संतों की बात करते हैं तो कोरोना की गिरफ्त में आये संतों की संख्या 500 के पार और देवलोकगमन की गिनती 125 के पार है। दस गुना बढ़ गई दिगम्बर संतों के मुकाबले यह संख्या, अन्य सम्प्रदायों के संत भी दिगम्बर संतों से 12 गुणा है।
चूक कहां रहे हैं हम। क्या हमारे संतों की तरफ से लापरवाही है, या फिर यह समाज की चूक है। यहां पर दिगम्बर और श्वेताम्बर संतों का थोड़ा फर्क समझना भी जरूरी है। श्वेताम्बर सम्प्रदाय में अधिकांश संत वेक्सीनेशन भी करवा लेते हैं और दवा के साथ इलाज भी, पर दिगम्बर संतों के लिये यह उनकी चर्या के अनुकूल नहीं होता, इससे परेशानी कई गुणा बढ़ जाती है।
भारत सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय की माने, तो तीसरी लहर से इंकार नहीं किया सकता। महाराष्ट्र सरकार द्वारा तो यह तक कह दिया है कि वहां के कुछ शहरों में तीसरी लहर का प्रवेश हो चुका है।
केरल में दूसरी लहर का प्रकोप ही नहीं थम रहा, साथ ही तमिलनाडू, कर्नाटक आदि दक्षिण प्रदेश तथा उत्तर पूर्वी प्रदेशों में भी यह फिर अंगड़ाई लेने लगा है। ऐसे में जरा-सी चूक कितनी भारी पड़ेगी, इसकी कल्पना भी नहीं कर सकते, हम और आप। पहली लहर से दूसरी लहर 10 गुना भारी थी, सांस के लिये आॅक्सीजन को बिलखते रह गये और तीसरी में तो डेल्टा वैरियेंट की बात की जा रही है, जिसको और भी खतरनाक माना जा रहा है, यहां तक कि बच्चों तक पर इसका असर होने की संभावना है।
क्या सावधानी बरती हमने – शून्य
सान्ध्य महालक्ष्मी ने समाज को इसके प्रति जागरूकता लाने के लिये पूरे देश के चातुर्मास स्थलों के लिए एक अभियान की घोषणा की, चातुर्मास शुरू होने से पूर्व कि आप चार सावधानी बरतिये। आपकी जागरूकता के लिये सम्मानित करेंगे तथा आपके प्रयास पूरे समाज के लिये अनुकरणीय रहेंगे।
पर यह कहते हुए बेहद अफसोस होता है कि एक भी चातुर्मास आयोजक कमेटी यह प्रमाण आज तक प्रस्तुत नहीं कर सकी, उनके यहां सभी मॉस्क लगा कर दर्शन करते हैं और संतों के दर्शन करते हुए सामाजिक दूरी का पूरा पालन किया जाता है। यह संकेत है आने वाले खतरे का।
हम तो इलाज करवा लेंगे, अस्पताल में भर्ती हो जायेंगे या घर पर डॉक्टरी करवा लेंगे क्योंकि जैनों की जेब में वजन होता है। पर हमारे संत, जो ना इलाज करा सकते हैं, न अस्पताल में भर्ती हो सकते हैं। उनके बारे में कभी चिंतन भी किया है।
माने या ना माने, हमारी छोटी-सी लापरवाही, बड़ी चूक हो जाती है और दूसरी लहर में यह साफ दिखा। कुछ नहीं कर पाये हम। अधिकांश जगह कोरोना से पीड़ित होने की जानकारी को दबाने के अलावा कुछ नहीं कर पाये।
आचार्य श्री पुलक सागरजी कोरोना पीड़ित हुए, वहां दो दर्जन से ज्यादा कोरोना सक्रंमित पर वे लड़े और जीत कर निकले। रेवतीरेंज, इंदौर में आचार्य श्री विद्यासागरजी के स्थान पर तो एक साथ 60 कोरोना से संक्रमित निकले, कुछ संत भी अछूते नहीं रहे। कौन रहा ऐसी लापरवाही का जिम्मेदार, कहां हुई चूक? कोई चिंतन नहीं किया, कोई सावधानी नहीं बरती गई। यह कहीं एक-दो जगह नहीं हो रहा, लगभग हर जगह हो रहा है। क्या कोई ऐसा मंदिर है, जहां सभी मास्क लगाकर आते हैं, समाजिक दूरी रखकर पूजा – पाठ – दर्शन होता है। शायद पूरे देश में एक भी नहीं। चाहे वहां 50 आते हो या 500।
संभलना होगा तत्काल, नहीं तो तीसरी लहर कर देगी बेहाल। सरकारी निर्देशों को पूरी तरह, कड़ाई से पालन करने पर ही बचाव की कल्पना की जा सकती है।
– शरद जैन /
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