हम अपने संस्कारों से विमुख हुए, इसी कारण हम विलुप्त हो रहे,अपनी पहचान बनाओ, अपने मूल-संस्कारों को अपनाओ

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*2. टोपी, पगडी छोड़ी ,
*3. तिलक, चंदन छोड़ा
*4. कुर्ता छोड़ा ,धोती छोड़ी ,
*5. सामयिक छोड़ी ,
*6. संध्या प्रतिक्रमण छोड़ा ।
*7. भक्तम्बरपाठ, गुरुसमिकत छोड़ा ,
*8. महिलाओं, लडकियों ने साड़ी छोड़ी , बिछिया छोड़े , चूड़ी छोड़ी , दुपट्टा, चुनरी छोड़ी , मांग बिन्दी छोड़ी ।

*9. पैसे के लिये, बच्चे छोड़े (आया पालती है)
*10. संस्कृत छोड़ी , हिन्दी छोड़ी ,
*11. श्लोक छोडे, लोरी छोड़ी ।
*12. बच्चों के सारे संस्कार (बचपन के) छोड़े ,
*13. सुबह शाम मिलने पर जय जिनेन्द्र छोड़ा ,
*14. पांव लागूं, चरण स्पर्श, पैर छुना छोड़े ,
*15. घर परिवार छोड़े ( अकेले सुख की चाह में संयुक्त परिवार)।

*अब कोई रीति या परंपरा बची है? ऊपर से नीचे तक गौर करो, तुम कहां पर जैन हो।
*कहीं पर भी उंगली रखकर बता दो कि हमारी परंपरा को मैनें ऐसे जीवित रखा हैं

जिस तरह से हम धीरे धीरे बदल रहे हैं- जल्द ही समाप्त भी हो जाएंगे।

*बौद्धों ने कभी सर मुंडाना नहीं छोड़ा!
*सिक्खों ने भी सदैव पगड़ी का पालन किया!
*मुसलमान ने न दाढ़ी छोडी और न ही 5 बार नमाज पढ़ना!
*ईसाई भी संडे को चर्च जरूर जाता है!
फिर जैन अपनी पहचान-संस्कारों से क्यों दूर हुआ?
कहाँ लुप्त हो गये- जैन पाठशाला स्वाध्याय-शास्त्र, नित्य मंदिर जाने का संस्कार ?
हम अपने संस्कारों से विमुख हुए, इसी कारण हम विलुप्त हो रहे हैं।
अपनी पहचान बनाओ! अपने मूल-संस्कारों को अपनाओ!!!
कम से कम मन्दिर जाना शुरु करो बच्चों,के साथ।