एक नया जैन संगठन मुनि श्री सुधा सागरजी के निर्देशन में राष्ट्रीय जिनशासन एकता संगठन का गठन ॰ धर्म, संस्कृति, मंदिर, तीर्थों की रक्षा करना मुख्य उद्देश्य

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॰ केसरिया ध्वज के साथ नारा – जैनम् जयतु शासनम्, बन्दे भारत भारतम्
21 अक्टूबर 2024/ कार्तिक कृष्ण पंचमी /चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी/ शरद जैन /
विजयादशमी के दिन सागर की धरा से जैन समाज की एकता के शंखनाद के लिये निर्यापक श्रमण श्री सुधा सागरजी की पहल, निर्देशन व सान्निध्य में एक नये संगठन का गठन किया गया, जिसका मुनि श्री ने नाम रखा – राष्ट्रीय जिनशासन एकता संगठन। किसी संत के द्वारा गठन किया गया यह जैन समाज में कोई पहला संगठन नहीं है, अब तक अनेक साधुओं द्वारा इस तरह की समिति, कमेटी, संगठन बनाये जा चुके हैं, और उनका कद उन साधु के कद की लोकप्रियता के अनुपात में बड़ा-छोटा होता है, यानि जितनी ज्यादा लोकप्रियता, उतना बड़ा संगठन।

यह संगठन कैसे अलग होगा और अपने उद्देश्यों को पूरा करने में कैसे खरा उतरेगा? यह तो भविष्य ही बताएगा। वर्तमान में जैनों की खोती पहचान अलग-थलग बर्ताव, अतिक्रमण जैसी परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए निर्यापक श्रमण श्री सुधा सागरजी द्वारा गठित यह संगठन ‘बंदे भरत भारतम्’ के शंखनाद के साथ हुआ। संभवत: सुभाषचंद्र बोस के ‘क्षत्रियत्व’ को पुन: जीवंत कर, दिगंबर जैन मंदिरों पर अतिक्रमण, साधु-संतों पर हो रहे उपसर्गों से सुरक्षा, विलुप्त हो रही या की जा रही जैन संस्कृति तथा नैतिकता का पुन: स्थापना कर जैन समाज ही नहीं, वरन भारत को आर्थिक और राजनीतिक स्थिति से मजबूत बनाना भी इसका उद्देश्य होगा।

इस संगठन को ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ’ की तर्ज पर स्थापित करने के साथ मुनि श्री ने स्पष्ट आह्वान किया कि हमारे पूर्वज वैश्य नहीं, क्षत्रिय थे, इसलिये समाज को क्षत्रिय की तरह ही व्यवहार करना होगा। इसके सदस्य स्वयं सेवक होंगे। उन्होंने कहा कि ‘जैन समाज को अपनी धर्म संस्कृति की रक्षा करने के लिये संगठित होना ही होगा और व्यवहार भी क्षत्रियों की तरह करना होगा।’ संगठन के कार्यों का एक मोटा प्रस्ताव जो बना, उनमें निम्न पर जोर दिया गया:-
॰ धर्म संस्कृति, मंदिरों व तीर्थों की रक्षा करना प्रमुख कार्य
॰ हर प्रकार की स्थिति से निबटने के लिये हर समय तैयार रहना

यह संगठन मंदिर की व्यवस्थाओं में हस्तक्षेप न करते हुए, मंदिर के बाहर कार्य करेगा तथा संवैधानिक संस्थाओं के चुनाव के समय यह संगठन सक्रिय रहेगा। एक ड्रेस, एक झंडे के तले इसकी शाखा रोजाना लगाना अनिवार्य किया गया है। इसका राष्ट्रीय, प्रदेश, जिला, तहसील और ग्रामीण स्तर पर विस्तार किया जाएगा। संगठन का केसरिया ध्वज, जिसके ऊपर तीन लोक का नक्शा, बीच में ‘अहिंसा परमो धर्म:’ तथा नीचे ‘परस्परोपग्रहो जीवानाम्’ लिखा होगा। मेरी भावना ही संगठन की प्रार्थना होगी तथा ‘जैनम् जयतु शासनम्, बन्दे भरत भारतम्’ इसका नारा होगा।
आशा यही रखते हैं कि यह मजबूती पकड़ता, चल-अचल तीर्थों की, जैन समाज की सुरक्षा में नये आयाम प्रस्तुत करें और चैनल महालक्ष्मी / सान्ध्य महालक्ष्मी अपनी तरफ से हर संभव सेवा-सहयोग देने के लिये संकल्पित रहेगा।