चिंतनीय विषय -जैन समाज ,जैनों की संदेहजनक संख्या ,मंदिर निर्माण- संरक्षण, विजातीय विवाह, पंथवाद की लड़ाई

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ये लेखक के निजी विचार हैं
जैन समाज दिखावे में सबसे ज्यादा और जनसंख्या में कमतर .मैं यहाँ पहले स्पष्ट करना चाहता हूँ की मैं मुनिभक्त हूँ .आचार्य श्री मेरे परम भक्त हैं .में धर्म का विरोध नहीं कर सकता हूँ न ही मैं इतना सशक्त हूँ .पर वर्त्तमान में कुछ विसंगतियां हो रही हैं उन पर मैं अपनी बात करना चाहता हूँ .
सबसे पहले जनसँख्या की बात करे तो लगभग ४५ लाख हैं .यह संख्या संदेहजनक हैं .ऐसा माना जाता हैं जैन समाज बहुत धनी ,शिक्षित और सम्पन्न हैं पर पूरी समाज नहीं .अधिकतम ३५ लाख धनाड्य,उच्च वर्ग ,मध्यम वर्ग ,निम्म मध्यम वर्ग और निचले स्तर के हैं और लगभग दस लाख निम्म स्तर पर हो सकते हैं .उनका भरण पोषण सुखद नहीं हो सकता हैं .आज भी उनको अपने भरण पोषण के लिए बहुत मशक्क्त करना पड़ती हैं .
कर्म सिद्धांत के अनुसार सब अपने अपने किये गए कर्मों का फल भोगते हैं उनके द्वारा पूर्व जन्म में दान ,पुण्य नहीं किया होगा इस कारण गरीबी या कर्मों का फल भोगना पड़ता हैं .
आज जैन समाज के परिवार गावों ,कस्बों से पलायन कर शहरों और महानगरों में विस्थापित हो रही हैं .उनके द्वारा छोड़े गए मंदिरों को बिना धनी धोरी के अकेले रहने या रखने को बाध्य हो रहे .गांव जहाँ पर पुरखों के द्वारा बनाये गए विशाल मंदिर खंडहर होते जा रहे हैं या कुछ मूर्तियां आस पास के शहरों में स्थानांतरित की जा रही हैं .
नए नए शहरों में कॉलोनियों का विकास होने से कॉलोनी में भी मंदिर निर्माण जरुरी हैं और वहां भी विशाल मंदिर अपनी सामाजिक स्थिति के अनुरूप बनना भी चाहिए ..कुछ की व्यक्तिगत सम्पत्ति बन जाती हैं .
वहां से भी उनके बच्चे बच्चियां अन्य बड़े महानगरों और विदेशों में स्थापित हो रहे है .जो विकास वैभव की गाथा गा रहे हैं .यानी उन्हें मदिर और धर्म से कोई मतलब नहीं हैं .हम आजकल व्हाट्सअप ,फेस बुक मैसेंजर के माध्यम से जैन धर्म के मानने वाले बढ़ रहे हैं पर हकीकत बहुत अलग हैं
आजकल विजातीय विवाह का प्रचलन बढ़ता जा रहा हैं इस कारण उनकी संख्या भी समाज से कटती जा रही हैं या न के बराबर भागीदारी निभाते हैं .कारण वे सब अपराध बोध से ग्रसित रहते हैं .
जैन समाज की कोई भी शिक्षा की संस्थाएं उच्च स्तरीय नहीं बन पायी .यहाँ तक की सेकेंडरी स्तर के लिए किसी को भी प्रवेश सुगमता से मिल जाता हैं वही कान्वेंट में प्रवेश लेने के लिए मन्नते मांगना पड़ती हैं .
आज कॉलेज में पढ़ने वाले छात्रों के लिए सुसज्जित हॉस्टल न होने से वे अलग रहते हैं और वे कुचरित्र के पात्र बनते हैं .सामूहिक रहेंगे तो बहुत कुछ बचाव कर सकते है पर यह महत्वपूर्ण विषय नहीं रहा .
मंदिरों का निर्माण करना /होना गलत नहीं हैं पर वर्तमान स्थिति में जो मदिर अस्तित्व में हैं उनका संरक्षण करना या होना जरुरी हैं .नए नए मंदिरों से संख्या बढ़ेंगी पर धर्मानुराग न होने से जैसे प्राचीन मंदिरों को अन्य धर्माबलंबियों द्वारा जबरन कब्ज़ा किया गया था भविष्य में भी ऐसा होना असंभव नहीं होगा .अतिसर्वस्य वर्जयेत जैसे १,२५००० मूर्तियों का मंदिर बना रहे हैं और भी बन रहे हैं और बनते रहेंगे .जनसंख्या कम होने से उनकी सुरक्षा न होने से उनका संरक्षण कैसे होगा ?जैसे कभी कभी श्री गिरनार जी ,श्री शिखर जी आदि क्षेत्रों में विधर्मियों की कुटिल निगाहें लगी हैं उनसे बचाना या बचना कठिन होगा .
आज कितनी शिक्षा संसथान ,मेडिकल कॉलेज सफलता पूर्वक चल रहे हैं ? मंदिरो के साथ पंथवाद की लड़ाई से बचा खुचा समाज कैसे बचेगा .यह सच हैं इस पंचंम काल के अंत तक जैन धर्म बचा रहेगा यह जिनवाणी में कहा गया हैं और हम अपने पुराणों और तीर्थंकर की वाणी कभी गलत नहीं होती पर वर्तमान में कोई शुभ चिन्ह नहीं दिखाई दे रहे हैं .
मेने अपनी छोटी बुद्धिसे अपनी बात रखी हैं जिनको अप्रिय लगे उनसे खमा प्रार्थी और प्रबुद्ध जनों से चिंतनीय चिंतन की अपेक्षा रखूँगा .यहाँ कहना चाहता हूँ की इन बातों की चिंता सबको हैं पर कोई कोशिश नहीं करना चाहता .आज सामाजिक प्रबुद्ध अपनी पैठ बनाने आचार्यों के आशीर्वाद के कृपालु हैं .जयवंत जैन धर्म की
विद्यावाचस्पति डॉक्टर अरविन्द प्रेमचंद जैन ,संरक्षक शाकाहार परिषद्