2000 किलोमीटर लम्बी तीर्थवन्दना हेतु सम्मेद शिखर जी से कर रहे है पैदल विहार।
संघ में शामिल अधिकांश साधुयों की उम्र 70 वर्ष से अधिक ।
जबेरा। कहते है जिन्हें अपने जीवन के कल्याण की फिक्र होती है उन्हें प्रकृति या संसार की कोई रुकावट नही रोक पाती उनके चरण अपने लक्ष्य की ओर अनवरत बढ़ते रहते है यह पंक्तियां किसी चतुर्थकालीन साधुयो के लिए चरितार्थ नही कर रही है बल्कि इस भीषण उपभोक्ता वादी कलयुग में भी इस भारत की धरा पर विचरण कर रहे दिगम्बर सन्तो की चर्या को बयां कर रही है जो अनायास सड़क पर यात्रा कर रहे प्रत्येक श्रद्धालु के मुख से 80 साल के लगभग की उम्र के सन्तों को कड़कड़ाती ठंड में कुहरे के बीच सुबह 6 बजे सिग्रामपुर से जबेरा की ओर पैदल विहार करते हुए देखकर निकल रही थी लोग कह रहे थे जब हम घर की एयरटाइट दीवालों के बीच गद्दे पल्ली से बाहर निकलने का साहस नही जुटा पाते तब ये 70 से 80 साल की उम्र के सन्त बीचो बीच जंगल मे खुली सड़क पर दिगम्बर होकर भी कड़कड़ाती ठंड को हराते हुए ऐसे कुहरे में जब सड़क भी नही दिख पा रही थी तब वह पैदल विहार कर रहे है। ज्ञात हो कि जैन दिगम्बर परम्परा के आचार्य वर्धमान सागर जी मुनिमहाराज अपने 14 संघस्थ साधुयो के साथ सम्मेद शिखर जी तीर्थ झारखंड से कई राज्यो को पार करते हुए बुंदेलखंड के विभिन्न तीर्थ क्षेत्रों की वंदना करने हेतु निकले है जोकि लगभग 2000 किलोमीटर की यात्रा है । अभी आचार्य संघ कुंडलपुर पहुँचेगा वहाँ से नेमावर में विराजमान आचार्य श्री विद्यासागर जी मुनिमहाराज के दर्शन हेतु जाएंगे उनके दर्शन पश्चात महाराष्ट्र स्थित कोल्हापुर के लिए विहार करेगे। विगत दिवस सुबह आचार्य श्री संघ सहित सिंगरामपुर से जबेरा पहुंचे जहां आहार चर्या सम्पन्न हुई एवं सुबह संघस्थ साधु विदेह सागर जी एवं आचार्य श्री वर्धमान सागर जी के प्रवचनों का लाभ मिला जिसमे उन्होंने कहा कि यह संसार असार है इसमे न फसकर हमे जन्म मृत्यु के चक्कर से छुटकारा पाकर मोक्षलक्ष्मी की प्राप्ति की साधना करनी चाहिए।