जैन धर्म का पतन क्यों और कैसे हुआ? क्या है साहित्यिक और शिलालेखीय प्रमाण

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अक्सर यह माना जाता है कि जैन धर्म का पतन शैव और वैष्णव धर्म के बलशाली होने से, राजाश्रय बंद होने के कारण हो गया. अक्सर यह आरोप किया जाता आदि शंकराचार्य, रामानुजन आदि शैव और वैष्णव आचार्यों ने जैन आचार्यों को वाद-विवाद में पराजित किया या बल से जैनियों का धर्मपरिवर्तन किया, जैन धर्म को नष्ट कर दिया, जैन मंदिरों को शैव या वैष्णव मंदिरों में परिवर्तित किया गया.

वास्तव में जैन धर्म 13वी सदी तक भारत के कई प्रदेशों में पनपता हुआ धर्म था. भारतीय समाज में जैन धर्म का पालन करने वालों की संख्या काफी अच्छी थी. यह एक जन धर्म बन चूका था. भारतीय समाज के सभी सभी स्तरों में जैन धर्म के अनुयायी पाए जाते थे. इसके कई साहित्यिक और शिलालेखीय प्रमाण हैं.
कई स्थानों के राज्यकर्ता जैन धर्मानुयायी थे. उदाहरण के लिये मै यहां कुछ राजघरानों, राज्यकर्ताओं के नाम और उनका शासन काल दे रहां हूं:

चालुक्य राजवंश: शासनकाल: सन 940 से 1244. इस राजवंश ने गुजरात, राजस्थान और मध्यप्रदेश के बडे हिस्से पर राज किया. इस राजघराने पर जैन धर्म का बड़ा प्रभाव था. इसी राजघराने में सम्राट कुमारपाल हुआ, जो जैन धर्म का अनुयायी था (शासनकाल सन1143 से 1172). सम्राट कुमारपाल प्रसिद्ध जैन आचार्य हेमचन्द्र सूरी का शिष्य था. कुमारपाल ने कई जैन मंदिर बनवाये, जिसमें शत्रुंजय का आदिनाथ मंदिर, तारंगा का अजितनाथ मंदिर, अनहिलपट्टण के मंदिर प्रसिद्ध हैं. इस राजघराने में और भी कई जैन राजा हुए.

शिलाहार राजवंश: शासनकाल: सन 940 से 1215. इनकी तीन शाखाएं थी, जिन्होंने उत्तर कोंकण, दक्षिण कोंकण और दक्षिण महाराष्ट्र पर राज किया. इनपर जैन धर्म का बडा प्रभाव था. शिलाहार राजवंश के कई राजा, रानियां और सेनापति जैन धर्म के अनुयायी थे. इस राजवंश में गण्डरादित्य, गोंक, भोज (दूसरा) आदि कई जैन राजा और निंबरस जैसे प्रसिद्ध सेनापति हुए. राजा गंडरादित्य प्रसिद्ध जैन आचार्य माघनंदी का शिष्य था, जब कि राजा विजयादित्य आचार्य माणिक्यनंदी का शिष्य था. दक्षिण महाराष्ट्र और दक्षिण कोंकण में जैन धर्म फलाने-फूलने में यह राजवंश एक बडा कारण है.
देवगिरि के यादव: शासनकाल: सन 1187 से 1317. इस राजवंश ने महाराष्ट्र, उत्तर कर्नाटक और मध्यप्रदेश के बडे एरिया पर राज किया. इस राजवंश का पहला राजा दृढप्रहार था, जो जैन आचार्य जिनप्रभसूरी का शिष्य और तीर्थंकर चन्द्रप्रभु का भक्त था. इस राजघराने में आगे भी कई जैन राजा हुये. इन राजाओं की रानियां विशेष कर कर्णाटक के जैन राजाओं की कन्याएं होती थी. यादवों के सैन्य अधिकारी और प्रशासनिक अधिकारियों में जैन धर्म के अनुयायी बड़ी संख्या में थे. यादवों की राजधानी महाराष्ट्र के औरंगाबाद के निकट देवगिरि में थी. देवगिरि के किले पर एक बड़ा जैन मंदिर था जिसे अब भारत माता मंदिर के नाम से जाना जाता है. यादवों ने

जिस एरिया पर राज किया, वहां उस काल के जैन मंदिर, जैन अवशेष और शिलालेख बड़ी संख्या में पाए जाते हैं.
इस काल में दूसरे भी कई राजवंश हुए, जिनके शासन काल में जैन धर्म फलता फूलता रहा.

क्या आदि शंकराचार्य ने जैन धर्म को नष्ट किया?
अब जिन आदि शंकराचार्य पर जैन धर्म नष्ट करने का आरोप किया जाता है, उनका काल देखिये. उनका जन्म सन 700 में हुआ और उनकी मृत्यु सन 750 में हो गयी. उपर मैंने जिन राजवंशों के बारे में लिखा है उन सबका समय आदी शंकराचार्य की मृत्यु के काफी बाद का है. इसका मतलब ऐसा होता है कि आदि शंकराचार्य पर जो आरोप लगाया जाता है वह झूठा है. लेकिन अगर यह आरोप सही है तो इसका मतलब यह होता है कि आदि शंकराचार्य की मृत्यु के बाद जैन धर्म फिर से जीवित हो गया और फैलाने-फूलने लगा. लेकिन इस बात का कोई सबूत नहीं है.

फिर जैन धर्म का पतन कब और क्यों हुआ?

घटनाओं की टाईम लाईन देखने पर स्पष्ट रूप से पता चलता है कि जैन धर्म का पतन 13वी सदी के बाद शुरू हुआ. यह वह काल है जब दिल्ली पर मुस्लिम सुलतानों की सत्ता स्थापित हो गयी (सन 1202), जब अल्लाउद्दीन खिलजी ने देवगिरि पर आक्रमण कर के यादवों का राज्य नष्ट किया (सन 1317), जब दक्षिण के पांच अलग-अलग हिस्सों पर पांच सुलतानों की सत्ता स्थापन हो गयी (सन 1527), जब दक्षिण के पांचों सुलतानों ने मिल कर विजयनगर साम्राज्य नष्ट किया (सन 1565), और जब भारत में मुगलों की सत्ता स्थापित हो गयी (सन 1526). इस काल में हजारों जैन और हिन्दू मंदिरों को नष्ट किया गया, गैर-मुस्लिमों पर जिझिया टॅक्स थोपा गया, कई प्रकार की पाबंदिया लगायी गयी. इस काल में लाखों जैनियों और हिन्दुओं को जबरन मुस्लिम बनाया गया. इन सब कारणों से और हमेशा होने वाले आक्रमणों के कारण जैन धर्म धीरे धीरे कम होते चला गया.

यह सबकुछ केवल दक्षिण भारत या दिल्ली आदि प्रदेशों में ही नहीं हुआ, बल्कि भारत के लगभग सभी प्रदेशों में हुआ. जहां भी जैन और हिन्दू मंदिर थे और जहां आक्रामक पहुंचे, वहां उन्होंने ज्यादातर मदिरों को तहस-नहस कर दिया. पूर्व भारत में सराक क्षेत्रों में जैन मंदिरों के जो अवशेष दिखाई देते हैं, वह भी आक्रामकों ने नष्ट किये हुए मंदिर हैं.

विचार करने योग्य बात यह है कि आजकल कई जगह जमीन में खुदाई आदि के समय जो जैन मूर्तियां मिलती रहती हैं वह सब जमीन में कैसे चली गयी? इसका उत्तर यही है कि जैनियों ने उन मूर्तियों को मुस्लिम आक्रामकों से बचने के लिए खुद ही जमीं में छुपा दिया!

डॉ. बाबासाहब आंबेडकर ने अपनी पुस्तक ‘प्रतिक्रांति’ में लिखा है, ‘भारत से बौद्ध धर्म ब्राम्हणों या हिन्दुओं के कारण नहीं बल्कि मुस्लिम आक्रामकों के कारण नष्ट हुआ है’. डॉ. बाबासाहब की यह बात जैन धर्म पर भी लागू होती है. अंतर केवल इतना ही है कि बौद्ध धर्म की तरह जैन धर्म पूरी तरह नष्ट नहीं हुआ

– महावीर सांगलीकर
(ये लेखक के निजी विचार हैं, ज़रूरी नहीं चैनल महालक्षी इस से पूरी तरह सहमत हो)