1. ईश्वर सृष्टि के कर्ता नहीं है।
2. प्रत्येक जीव को अपने कर्मों का फल स्वयं ही भोगना पड़ता है।
3. हम अपने ही कर्मों से सुखी- दु:खी होते हैं।
4. हमारे अंदर भगवान बनने की अव्यक्त शक्ति मौजूद है, यदि हम पुरुषार्थ करें तो हम भी भगवान बन सकते हैं।
5. जो जीव एक बार भगवान बन जाते हैं, वे लौटकर संसार में कभी वापस नहीं आते।
6. भगवान मात्र ज्ञाता दृष्टा हैं। वे किसी का भला – बुरा नहीं करते।
7. संसार में जीवों की संख्या अनंतानंत है।
8. द्रव्य का कभी भी नाश नहीं होता, मात्र पर्याय (अवस्थ)) बदलती है।
9. दिगम्बर मुद्रा प्राप्त किए बिना जीव मुक्ति प्राप्त नहीं कर सकता।
10. संसारी आत्मा जन्म-मरण करती रहती है।
11. भगवान जन्मते नहीं पुरुषार्थ से बनते हैं।
12. अनेकान्त और स्याद्वाद सिद्धांत जैन दर्शन के प्रमुख सिद्धांत है।
13. जैन धर्म अहिंसा प्रधान है।
14. जैन धर्म के सिद्धांत समय के अनुसार बदलते नहीं है।
15. जैन धर्म की मूल भाषा प्राकृत है।
16. जैन दर्शन में आत्म विकास के चौदह सोपान ,गुणस्थान के रुप में कहें हैं।
17. जैन धर्म में जीवन का लक्ष्य मोक्ष प्राप्ति है।
18. यदि दु;ख से दूर होना चाहते हो तो श्रामण्य को स्वीकार करना अनिवार्य है।
19. जीव और पुद्गल दोनों द्रव्य स्वतंत्र है।
20. सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान , सम्यक्चारित्र, इन तीनों की एकता मोक्षमार्ग है।
21. जैन दर्शन में पूजा का उद्देश्य कर्म निर्जरा है, सांसारिक सुख नहीं।
बाल ब्रम्हचारी राजेश चैतन्य अहमदाबाद