30 सितम्बर 2023/ अश्विन कृष्ण एकम/चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी /शरद जैन/EXCLUSIVE
० आठवीं – नवीं सदी में जो रामानुजन / शंकराचार्य द्वारा जैनों संस्कृति पर अत्याचार, फिर यूनानी मुगलकाल में, तो क्या अब भी?
० क्या समाज को भीतर भी झांकना होगा?
शरद जैन / सान्ध्य महालक्ष्मी / 29 सितंबर 2023
आज भारत एशियन गेम्स में सोने, चांदी, कांस्य के तमगे बटोरने में लगे हैं, पर जनसंख्या के आधार पर गोल्ड पहले ही अप्रैल 2023 में 142,57,75,850 गिनती के साथ गोल्ड जीत कर अपने से तीन गुना बढेÞ चीन को पछाड़कर।
2011 को हुई अंतिम गणना में
हिंदू 96,62,57,357 (39.8%)
मुस्लिम 17,22,45,158 (14.27%)
ईसाई 2,78,19,588 (2.3%)
सिख 2,08,33,116 (1.72%)
बौद्ध 44,73,000 (0.7%)
जैन 44,51,753 (0.34%)
कहते हैं तीर्थंकर महावीर स्वामी के बाद ईसा पूर्व दूसरी सदी जैन (श्रमणों) की संख्या 40 करोड़ के लगभग थी, जो 15-16वीं सदी में गिरकर 4 करोड़ रह गई और आखिरी जनगणना में तो यह मात्र 44,51,753 रह गई।
हम अपनी असली गिनती को 2 से 4 करोड़ के बीच मानते हैं। पर इसको मानेगा कौन?
अब इसमें भी गहरी चिंता निम्न ग्राफ से और हो जाती है।
पिछले 24 सालों में विभिन्न धर्मों की प्रत्येक महिला की प्रजनन संबधी चार्ट जैनों को और नीचे पहुंचा देता है, देखिये जरा।
1951 में पूरे भारत में महिला औसतन 4.4 बच्चों को जन्म देती थी, वो अब 2015 में घटकर 2.2 रह गई। अलग-अलग धर्मानुसार हिंदू 3.3 से 2.1 रह गये। मुस्लिम सबसे ऊपर 4.4 से 2.6, ईसाई 2.9 से 2.0, बौद्ध 2.9 से 1.7, सिख 2.4 से 1.6 की क्षमता रह गई, वहीं इन सबमें सबसे कमजोर रह गये जैन। 1992 में जैन महिला औसत 2.4 बच्चों को जनती थी, जो 23 सालों में घटकर आधी रह गई यानि 1.2, इससे ज्यादा खतरनाक स्थिति जैनों की नहीं रह सकती।
अगर आजादी के 76 सालों में देखें, तो हिंदू 30.4 करोड़ से 96.6 करोड़ की ऊंचाई छू गये, (इनमें जैन व अन्य धर्म भी हो सकते हैं।) मुस्लिम 3.5 करोड़ से 17.2 करोड़ हुई, वहीं जैन 17 लाख से 45 लाख (सरकारी गणना से जैनों की पूरी जनगणना सही आंकड़ा प्रस्तुत नहीं करती)। शुरु से ही जागरूकता न होने के कारण बहुत बड़ी गिनती में जैन हिंदू में जुड़ जाते हैं। 60 फीसदी से ज्यादा तो अपने नाम के पीछे ‘जैन’ भी नहीं जोड़ते। वैसे कुल जनसंख्या के फीसदी के अनुसार जो जैन 0.5 फीसदी थे, वो अब 0.4% रह गये।
हर जैन महिला अपने जीवन काल में औसतन 1.2 बच्चों को जन्म देती है
जी हां, 2005 तक का आंकड़ा उपरोक्त ग्राफ से स्पष्ट दिखती है, जो 23 साल पहले इससे दो गुनी 2.2 थी, आधी रह गई। और 2015 के आठ सालों में अगर उसी गति से गिरती रही तो एक से भी नीचे यानि। यानि एक जैन जोड़ा एक को भी जन्म नहीं देता, और यह आंकड़ा स्पष्ट करता है कि इससे गिनती का जो भी दावा कर लें वो उसमें आधी रह जायेगी। वह जैन समाज के लिये बहुत कष्टप्रद चिंताजनक है।
घटती जैन जनसंख्या के मुख्य कारण
1. जैन महिलाओं की घटती प्रजनन शक्ति
जैसा उपरोक्त से स्पष्ट हो गया कि आज जैन व्यक्ति दो या अधिक बच्चे ही नहीं चाहते। चार दिन पहले ऋषभ विहार में पर्युषण धर्म सभा में जिसमें 500 से ज्यादा लोग बैठे थे, उनसे आचार्य श्री सुनील सागरजी ने पूछा कि वो हाथ ऊपर करें जिनकी उम्र 50 से कम हो और दो से ज्यादा बच्चे हों, वो हाथ खड़ा करें। हैरानगी होती हैं, उस सभा से एक हाथ भी नहीं उठा। यह वहां की ही नहीं, पूरे जैन समाज की स्थिति है।
इसके भी कारण हैं –
क. पति-पत्नी दोनों का वर्किंग करना
ख. एकल परिवार रहने से जिम्मेदारी में व्यस्तता
ग. तनावमय जीवन रहना
2. समाज में देर से विवाह, लड़कियों को उच्च शिक्षा, परिपूर्णता
जहां पहले लड़के-लड़की, बालक-बालिकायें का ही गठबंधन हो जाता था, फिर 70-80 के दशक क्रमश: 18-21 में विवाह होने लगे, पर 21वीं सदी में यह विवाह की उम्र बढ़ कर 28-30 तक पहुंच गई है। आज ऐसे भी कई जैन अविवाहित इसलिये बैठे हैं, क्योंकि उनकी विवाह करने की उम्र ही निकल गई।
लड़कियों को आज गे्रजुएट के बाद भी पढ़ाया जाता है, आज की संसारिक परिस्थितियों को देखते, उनको अपने पैरों पर खड़ा किया जाता है। उसके बाद ही विवाह के बारे में सोच शुरु होती है, तब तक उम्र 26-28 तक की सीमा की पार कर जाती है। यहीं कारण है कि तब बच्चे जनने की शक्ति क्षीण होने लगती है, जीवन जिम्मेदारी में व्यस्त हो जाता है।
3. लड़कियां का जैनेत्तर में भागना- आकर्षित होना
धर्म परिवर्तन की सबसे बड़ी मार पड़ी है जैन समाज पर। संयुक्त पढ़ाई, और फिर नौकरी इसके दो बड़े कारण हैं, दूसरा गोल टोपी वालों में तो एक अभियान सा चल रहा है। अन्य धर्म की लड़कियों को लाने पर बाकायदा एक बड़ी राशि भी उन लड़कों को दिये जाने की सूचनायें मिली हैं। और जैन लड़कियों को कई बार तो अपनी पहचान छिपाकर फंसाया जाता है, और जब तक खुलासा होता है, तब तक सब कुछ लुट चुका होता है। वह वापस घर भी नहीं आ पाती। तब उसके पास दो ही विकल्प रह जाते हैं – पहला कठोर यातनाओं को सहते घुट-घुट कर जीवन जीना या आत्महत्या जैसा कठोर कदम उठा लेना। इस बारे में जागरूकता अभियान चलाने की नितांत आवश्यकता है।
4. बाल ब्रह्मचारी बनकर दीक्षा जीवन व्यतीत करना
इस पर विवाद किया जा सकता है। वास्तव में यह जन्म-मरण के चक्र से निकलने का यही एक रास्ता है। पर जैनों की घटती जनसंख्या में वर्तमान में एक कारण यह भी है। एक साथ बड़ी संख्या में बाल ब्रह्मचारियों की दीक्षाओं को गलत भी नहीं कहा जा सकता पर जैन समाज की गिनती में लगाम लगने का कारण तो बनता है। बाल ब्रह्मचारी जीवन में रहना, और जिनकी संख्या आज कुछ हजार में जरूर होगी और यह गिनती भी कुछ दशकों में तेजी से बड़ी है। जहां पहले दीक्षायें विवाहोपरान्त सब जिम्मेदारी पूरी करके ली जाती थीं, अब बाल बह्मचारी रूप में लेने की एक बड़ी शुरूआत हो चुकी है। यह बात कई की नजर में गलत सोच भी कहीं जा सकती है, पर जैन संख्या के परिपेक्ष्य में एक बड़ा कारण बनकर सामने आ गई है।
5. सबसे बड़ा कारण-अपने को ‘जैन’ नहीं मानता-बताता
सरकारी गणना में 44,51,753 के पीछे कमी का बड़ा कारण है कि हम लोग धर्म के कॉलम में ‘जैन’ नहीं लिखते, कारण 60 फीसदी के नामों में जैन ही नहीं लिखा जाता। आज तो जैनों की एक बड़ी गिनती तो, जैनो को हिंदू ही मानती है, उसी की शाखा मानती है, इसलिये हिंदू लिखना बताना, उन्हें गलत नहीं लगता।
कई बार जैन नहीं लिखते, तो गणनाधिकारी ही उनके धर्म के आगे हिंदू लिख खानापूर्ति कर देता है। आप अपनी उपजाति जरूर लिखिये, पर उसमें जैन जरूर जोड़िये। आगामी जनगणना में धर्म के कॉलम में ‘जैन’ लिखिये तथा भाषा में पहले नं. पर हिन्दी तथा दूसरे में ‘प्राकृत’ लिखिये।