जैन धर्म और हिन्दू धर्म की प्राचीनता पर हमेशा बहस होती रहती है. दोनों पक्ष आपने-अपने धर्म के प्राचीन होने पर जोर देते रहते हैं.
कौनसा धर्म पुराना है? जैन या हिंदू? यह सवाल अपने आप में एक गलत सवाल है. क्यों कि जैसे कि मैंने इससे पहले लिखा है, हिन्दू का मतलब शैव, वैष्णव, शाक्त, स्मार्त, वारकरी आदि है. यह सभी धर्म-संप्रदाय एक ही समय उत्पन्न नहीं हुए. इनमें से कुछ अतिप्राचिन हैं, और कुछ बाद में उत्पन्न हो गए. इसलिए जैन धर्म पुराना है या हिंदू धर्म पुराना है इस प्रकार का प्रश्न पूछने के बजाय जैन धर्म पुराना है या शैव धर्म पुराना है, अथवा जैन धर्म पुराना है या वैष्णव धर्म पुराना है इस प्रकार का प्रश्न पूछना ज्यादा ठीक रहेगा.
चूं कि हिंदू धर्म के अंतर्गत आनेवाले धर्मों में शैव धर्म सब से पुराना है, इस लेख में हम इस बात की चर्चा करेंगे कि जैन धर्म पुराना है या शैव धर्म पुराना है.
जिस प्रकार जैन धर्म की प्राचीनता सिंधु घाटी की सभ्यता तक जाती है, उसी प्रकार शैव धर्म की प्राचीनता भी सिंधु घाटी की सभ्यता तक जाती है. सिंधु घाटी के जो अवशेष मिले है, उसमें एक नग्न योगी की प्रतिमा मिलती है. इसे एक ओर जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव की प्रतिमा माना जाता है, तो दूसरी और इसे भगवान शिव की प्रतिमा भी माना जाता है. अब जब हम यह जानते है कि भगवान ऋषभदेव और भगवान शिव में कई समानतायें हैं, कहा जा सकता है कि शिव और ऋषभ एक ही है. दोनों को ही आदिनाथ कहा जाता है. इसका मतलब यह हुआ कि जैन और शैव परंपरा के आदिपुरुष यह आदिनाथ ही थे.
यहां मेरे कहने का मतलब यह है कि जैन और शैव परंपरा दोनों अतिप्राचीन हैं, और दोनों का मूल भी एक है. लेकिन आगे चलकर मूल परंपरा की दो शाखायें बन गयी. अब आपको तय करना है कि जैन धर्म पुराना है या शैव धर्म पुराना है!
हिन्दू धर्म के अंतर्गत आने वाले वैष्णव आदि धर्म शैव धर्म के काफी बाद उत्पन्न हुए. इसलिए वह सभी धर्म और संप्रदाय जैन धर्म से प्राचीन नहीं हो सकते.
क्या वैदिक धर्म प्राचीन है?
अब सवाल यह है कि क्या वैदिक धर्म जैन और शैव धर्म से प्राचीन है?
वैदिकों के अनुसार ऋग्वेद दुनिया का सब से प्राचीन ग्रंथ है. इसलिए उनके अनुसार वैदिक धर्म दुनिया का सबसे प्राचीन धर्म है. लेकिन वास्तविकता तो यह है कि वैदिक धर्म और वैदिक संस्कृति की प्राचीनता का एक भी पुरातत्वीय साक्ष्य नहीं है! ना ही सिंधु सभ्यता में इसके अस्तित्व का कोई प्रमाण है, और ना ही इस धर्म के कोई प्राचीन शिलालेख आदि पाए जाते हैं. इसलिए वैदिक धर्म जैन और शैव धर्म से प्राचीन नहीं हो सकता. ध्यान देने योग्य एक बात यह है कि जैन और शव धर्म दोनों में मूर्तिपूजा का महत्त्व है, जब कि वैदिक धर्म में मूर्तिपूजा नहीं है. आज के वैदिक लोग मूर्तिपूजा करते हैं इसका कारण वैदिक धर्म पर जैन और शव धर्म का गहरा प्रभाव पडना यह है.
खैर, हमें प्राचीनता के बारे में ज्यादा विचार नहीं करना चाहिये. किसी धर्म के प्राचीन होने का या ना होने का विचार करने के बजाय आज उस धर्म की प्रासंगिकता क्या है इसके बारे में सोचना चाहिये. इस बात पर भी गौर करना चाहिये कि आपका धर्म सबसे प्राचीन है इसका मतलब यह नहीं की आपके प्राचीन पूर्वज भी उसी धर्म के अनुयायी थे. इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए की सभी धर्मो का एक दूसरे पर गहरा प्रभाव पड़ा है. यह भी ध्यान रखें कि आजके जैन और वैदिक धर्म अपने मूल रूप में नहीं हैं , उनमें काफी बदलाव हो चुके हैं.
धर्मपरिवर्तन प्राचीन काल से होता रहा है और आगे भी होता रहेगा. आज की कई हिंदू जातियां किसी काल में जैन धर्म की अनुयायी थी, और आज की कई जैन जातियां हिंदू से जैन बनी है.
यहां इस बात पर ध्यान देना भी योग्य रहेगा कि प्राचीनता का मोह भारतीय धर्मों के अनुयायीं में ही दिखाई देता है. पश्चिमी धर्मों के अनुयायी प्राचीनता को महत्त्व नहीं देते।
हमें अपने धर्म के प्राचीनता के बारे में नहीं बल्कि वर्तमान और भविष्य के बारे में सोचना चाहिये. मान लिया कि आपका धर्म दुनिया में सबसे प्राचीन है, आदिमानव भी इसका पालन करते थे, लेकिन क्या आप अपने धर्म का पालन करते है? क्या आपको अपने धर्म की बुनियादी जानकारी है? क्या आपकी अगली पीढ़ियां इसका पालन करने वाली हैं?
– महावीर सांगलीकर
(ये लेखक के निजी विचार हैं, ज़रूरी नहीं चैनल महालक्षी इस से पूरी तरह सहमत हो)