लूट ली मुग़ल कमांडर ने हज़ार जैन प्रतिमाएं, गला कर सोना निकालने के लिए, फिर अकबर से किस सूझबूझ से बचाया, आज कोई है ऐसा ?

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1928

एक हजार से ज्यादा प्रतिमाओं को बचाने के लिये सफल प्रयास- सोना निकालने के लिये लूटी 1050 जैन मूर्तियां , गलाने से कैसी बचीं?

जैन मंदिर श्रद्धा-आस्था के साथ वैभव की प्रतीक प्रतिमायें, कुछ पाषाण की होती हैं पर अधिकांश अष्टधातु-पंचधातु की। इन दोनों में स्वर्ण धातु भी होती है। पंचधातु में स्वर्ण की मात्रा और अधिक होती है और इसमें काफी चमक रहती है। दक्षिण के अनेक मंदिरों में आज भी प्राचीन पंचधातु की मूर्तियां अनमोल विरासत के रूप में दिखती हैं।

प्रचीन काल में ऐसी पंच धातु की प्रतिमायें देश के हजारों मंदिरों में थीं, जिन्हें लूटा गया और आक्रमणकारियों ने उन्हें गला कर सोना निकाल लिया। ऐसी ही घटना सन् 1576 की यानि आज से 550 वर्ष पहले की बताते हैं, जब अकबर के सिंहासन पर बैठे हुए मुगल सल्तनत का भारत के कई क्षेत्रों पर शासन था। अकबर उस समय अपने कमांडरों के बल पर जगह-जगह रियासतों पर हमला कर कब्जे-लूटपाट की कोशिशें लगातार कर रहा था। ऐसे ही उसका एक कमांडर था तुरसम खान, जिसने पश्चिम में बढ़ते हुए राजस्थान के सिरोही में खूब लूटपाट की।

उसे खबर मिली यहां आसपास कई जैन मंदिर हैं, जिनमें सैकड़ों की संख्या में मूर्तियां हैं, जिनमें सोना काफी बड़ी मात्रा में है, बस फिर क्या था। किसी जैन मंदिर को नहीं बख्शा। सभी मंदिरों से पंच धातु की मर्तियां लूट ली गई, जिनकी संख्या 1050 से ज्यादा थीं। कुछ 11वीं से 15वीं सदी की थीं। तुरसम खान उन मूर्तियों को गलाने के लिये फतेहपुर सीकरी लाया, कि सुल्तान खुश होगा। सुल्तान खुश भी हुआ।

जैन मूर्तियां गलाई जा रही हैं, इसकी भनक कर्मचंद वद्यावत को मिली जो उस समय बीकानेर के महाराज राव राय सिंह के यहां ऊंचे पद पर थे और जैन धर्म के प्रति समर्पित थे। उन्होंने मामले की नजाकत देखते हुए तुरंत फतेहपुर सीकरी की ओर कूच किया और अकबर को खुश करने के लिये कई बेशकीमती तोहफे साथ ले गये। यह तो कहा ही जाता है कि सत्ता से कुछ चाहिए तो उसे पहले खुश कर दो।

बेशकीमती, अनोखे तोहफे देखकर अकबर बहुत खुश हुआ। फिर कर्मचंद जी से कहा कि आपका एक कमांडर सिरोही व आसपास से हजार से ज्यादा जैन मूर्तियां लूटकर लाया है, उसकी मंशा उन्हें गला कर सोना बटोरना है। कर्मचंद ने तुरंत एक प्रस्ताव रखा कि आपको सोना चाहिए, और हमें अपनी प्रतिमायें, इसलिये इनके वजन के बराबर सोना देते हैं।
अकबर तो यही चाहता था और फिर कर्मचंद आदर सम्मान के साथ सन् 1582 में वे मूर्तियां बीकानेर लाये और महाराज राव सिंह के सहयोग से सभी प्रतिमाओं को चिंतामणि पार्श्वनाथ जैन मंदिर के बेसमेंट में एक विशाल उत्सव करके रखा गया, जिसमें अनेक जैन संतों ने भाग लिया।

इनका अब तक 18 बार अभिषेक हो चुका है। 1943 में यहां आचार्य मणि सागर सूरि महाराज आये। तब 1962, 1978, 2009 और फिर नवम्बर 2017 में आखिरी बार सभी प्रतिमाओं का अभिषेक हुआ, आज भी सभी मूर्तियां मंदिर के बेसमेंट में रखी हुई हैं। इनमें 11वीं सदी की 9, 12वीं सदी की 10, 13वीं सदी की 63, 14वीं सदी की 259, 15वीं सदी की 436 और 16वीं सदी की 339 प्रतिमायें हैं यानि कुल 1116 प्रतिमायें। यह इतिहास था, जब एक हजार से ज्यादा प्रतिमाओं को बचाने के लिये सफल प्रयास हुआ।

अंत में एक चिंतन यह कि क्या अब भी हमारे में ऐसा ही जज्बा बचा हुआ है, आज तो अनेक थानों में हमारी अनेक प्रतिमायें यूं हीं पड़ी हैं, जिन तक को छुड़ाने के हम प्रयास नहीं कर रहे हैं। कितना बदल गया, समय नहीं, कितने बदल गये हम लोग।

-शरद जैन