जैन भाईओं, आपको बुरा तो लग सकता है , पर ये है तो कड़वा सच धरती का सबसे नाजुक, अमीर और इज्जतदार जैन, धर्म को कहाँ ले जायेंगे फैसला हम ही करना है

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जैन श्रावक बहुत ही नाजुक है : जैनो का कड़वा सच

मंदिर में प्रवेश करने से पहले पुरे पैर नही धोना चाहता क्योकि ठण्ड है सर्दी लग जाएगी, इसलिए वो मोज़े पहनकर ही मंदिर चला जाता है

और यदि कोई कुछ कह दे तो कहते है जूते थोड़े ही पहने है

जबकि पंजाबी भाई अमृतसर जैसे ठन्डे स्थान पर ,मुस्लिम भाई कश्मीर जैसे बर्फीले इलाको में भी कभी भी मोज़े पहनकर गुरुदुवारे और मस्जिद में नही जाते हैं और साथ ही भरी ठंड में भी पैर, हाथ और मुँह धोकर ही पूजा स्थानों में प्रवेश करते हैं

और कोमल नाजुक जैन को पैर हाथ धोने से और बिना मोज़े के मंदिर जाने से निमोनिया हो जाता है

कुछ लोगो के घर में सोले की चप्पल है यदि ये सब रोक नही गया तो आगे आने वाली पीढ़ी के लोग सोले की चप्पल मंदिर में पहनकर अभिषेक न कर दे

जैन बहुत ही अमीर है तभी उसके घर में सब चीजे मिलेंगी लेकिन हर घर में धोती दुपट्टा नही मिलेगा क्योकि भगवान के लिए पूजन वाले वस्त्र खरीदने का ठेका मंदिर कमेटी का है और उन्हें गन्दा करने का, उन्हें फाड़ने का, उन्हें लातो से खूंदने का, ठेका जैन श्रावक का है

जैन श्रावक अपनी पहनी हुई धोती दुपट्टा धोना नही चाहता उसके लिए उसने माली को रखा है क्योंकि जैन अमीर है ज्यादा गंदे होने पर वह वस्त्र धोबी दे देता है

जबकि गुरुदुवारे के बाहर अमीर से अमीर लोग भक्तो के जूते तक साफ कर देते हैं और यदि कोई बिना सर ढके अंदर जाये तो खुद अपना रुमाल सर ढकने के लिए दे देते हैं

सिक्ख भाई लंगर के खाने को खुद बनाते है, अनाज भी दान करते हैं, एक दूसरे के झूठे बर्तन भी साफ करते है, और गुरुदुवारे में झाड़ू पोछा भी खुद ही लगाते हैं

लेकिन जैन भाई मंदिर का झाड़ू पोछा तो दूर अपने खुद के पहने वस्त्रो को भी नही धोता

सुधा सागर जी ने जिज्ञासा समाधान में कहा :- कि माली से धुलवाए कपड़े पूर्णतः अशुद्ध है
क्योकि वह गुटखा खाकर, बाथरूम आदि से आकर आपके पूजन वाले वस्त्रो को छूता है और फिर धुलने के बाद आप उन्ही से भगवान को छू लेते हो

जो पूजन वस्त्र एक बार माली या धोबी को दे दिए या उन्होंने उसे धो दिया वो दुवारा कभी भी पूजन में पहनने योग्य नही है

सिक्खअपने गुरु ग्रन्थ साहिब, मुस्लिम अपने कुरान, और ईसाई लोग अपने बाइबल पर कभी धूल भी नही आने देते

लेकिन जैन खुद भगवान की वाणी जिनवाणी से चावल तक नही निकाल सकता उल्टा शास्त्रो में जिनवाणी में चम्मच, बादाम और चावल पानी भर देता है साथ ही प्रतिमा जी को भी गीला तिरछा रख के भग लेता है क्योकि उसे घर पर बीवी बच्चो के लिए खाना बनाना पड़ता होगा

सिक्ख और मुस्लिम लोग उनके पूजा स्थल पर एक सेकंड के लिए भी अपना सर नही खोलते

लेकिन जैन 2 बार ही सर ढकता है पहला जब वह गंजा हो और दूसरा जब सर्दी तेज हो

उसके अलावा जैन को डर लगता है कि कही सर ढकने से उसके रेशमी सुन्दर बाल और hair style कही ख़राब न हो जाये

हर मुस्लिम के पास टोपी, सिक्ख के पास रुमाल जरूर मिलेगा और वो भी हर किसी का अलग अलग

लेकिन हर जैन के पास धोती दुपट्टा और सर ढकने वाली टोपी तक नही मिलती क्योकि जैन इसे फिजूल खर्च मानता है

चर्च, गुरुदुवारे, और मस्जिद में कोई भी पुजारी नही रखा जाता लोग खुद पूजा करते है

लेकिन जैन बहुत busy है इसलिए वह किराये पर पुजारी रखता है

मुस्लिम भाई 5 time नमाज़ पढ़ते है

लेकिन जैन बहुत busy और कोमल है इसलिए वह एक समय की पूजा भी नही कर सकता

किसी भी मस्जिद और गुरुदुवारे में किसी का नाम नही लिखा होता लेकिन हर जैन मंदिर में लोग अपना नाम शिलापट्ट पर लिखवाते है

कितने भी प्राचीन जैन मंदिरों में किसी का कोई नाम नही लिखा पता नही कहाँ से नई परम्परा आ गई

अभिषेक का जल, पूजन की द्रव्य, पूजनकी थाली, पूजन के वस्त्र , वस्त्रो का धोना, मंदिर की साफ सफाई, जिनवाणी का रख रखाव सब किराये के लोग करते हैं तो हमने क्या किया केवल मंदिर के चावल मंदिर में पटक कर चले गए

क्या यही है जैनो की भक्ति?
विचार करे हम कितनेआलसी हो गए हैं जबकि एक समय जैनो का नाम नियमपालन पूजा भक्ति साफ सफाई आदि के लिए जाना जाता था अब हम क्या कर रहे हैं आगे हम अपनी पीढ़ी को क्या सिखाएंगे वैसे भी हम कम है धर्म को कहाँ ले जायेंगे फैसला हम ही करना है

कड़वा है लेकिन सच है
:- नयन जैन इन्दौर