02 फरवरी 2024/ माघ कृष्ण पंचमी/चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी/ शरद जैन /
आज हर जगह कहा जाता है सनातन धर्म, सनातन धर्म और हिंदू धर्म को सनातन से जोड़, उसकी प्राचीनता घोषित की जाती है, क्या सनातन का अर्थ हिंदू धर्म है? इस सवाल के उत्तर से अधिकांश अनभिज्ञ हैं। अगर सनातन हिंदू से जुड़ा है, तो जैनों से भी क्या जुड़ा है? क्या सनातन नाम का भी कोई धर्म है?
सान्ध्य महालक्ष्मी पहले इसी से शुरूआत करता है।
स्पष्ट कर दें सनातन किसी धर्म का नाम नहीं है, सनातन एक शब्द है, जिसका अर्थ है बहुत प्राचीन, अनादिनिधन – और इस तरह श्रमण और वैदिक धर्म बहुत प्राचीन है, सनातन है। अब श्रमण को जैन से और वैदिक को हिंदू धर्म से जोड़ा जाता है। इसलिये हिंदू धर्म को सनातन कहते हैं, तो उसी तरह जैन धर्म भी सनातन ही है। इस बात को हर किसी को स्पष्ट रूप से जानना और मानना चाहिये।
अब दूसरा सवाल – क्या जैन, हिंदुओं से निकली उसी की शाखा है?
जैसे आजकल कई सामाजिक व राजनीतिक नेता बंधु विभिन्न मंचों से कहते हैं और सुनने वाले ताली पीटते हैं। सान्ध्य महालक्ष्मी पुन: स्पष्ट करता है कि जब जैन व हिन्दू (श्रमण व वैदिक) दोनों ही सनातन है, तो एक-दूसरे की शाखा नहीं हो सकते।
॰ जहां वैदिक परम्परा अवतारवाद को आधार मानती है, उसी में विष्णु के 8वें अवतार ऋषभदेव (प्रथम तीर्थंकर) को मानती है।
॰ श्रमण धर्म, मोक्ष के बाद उस जीव के पुनर्जन्म को नहीं मानता।
॰ वैदिक परम्परा में भगवान को कर्ता माना गया, जैनों में हर कोई स्वयं का कर्ता है यानि हर भव्य जीव में भगवान बनने की अनंत शक्ति है।
तो फिर यह कहना पूरी तरह गलत है कि जैन हिंदुओं की ही एक शाखा है, इस कड़ी में बौद्ध और सिखों को भी हिंदुओं की ही शाखा कहा जाता है, वह भी गलत है। इस पर हम आप कितने तर्क-वितर्क करें, उससे बेहतर होगा कि सान्ध्य महालक्ष्मी कुछ ऐसे प्रमाण दे, कि इस विवाद पर कभी अदालतों ने टिप्पणी या निर्णय दिया हो। आज इसी पर आपको सुप्रीम कोर्ट के कई निर्णयों के साथ चार बड़े महानगरों में स्थापित दिल्ली, मुम्बई, चैन्नई, कोलकाता की हाइकोर्ट के भी निर्देश / टिप्पणियों को प्रस्तुत कर रहा है यहां सान्ध्य महालक्ष्मी। सबसे पहले एक नहीं, अनेक बार सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों में से कुछ उल्लेख :-
1) 1954 (AIR 1954, 5282) इस केस में सर्वोच्च न्यायालय ने अपने निर्णय में स्पष्ट माना कि ‘भारत’ में जैन धर्म व बौद्ध धर्म अपनी पहचान रखते हैं और वैदिक धर्म से भिन्न हैं।
2) 1958 – केरल शिक्षा बिल में जैनों को हिंदू ना मानते हुए कहा कि जैन समाज अल्पसंख्यकता प्राप्त करने के लिये उपयुक्त है (यानि यह बहुसंख्यक हिंदू समाज की शाखा नहीं है)।
3) 1963 (649- V50C101) इस केस में निर्णय में स्पष्ट टिप्पणी करी, कि – हिंदु, मुस्लिम, ईसाई व जैनों में ब्राह्मण, बनिया व कायस्थ समुदाय के अलावा सभी समुदायों को सामाजिक व शैक्षिक रूप से पिछड़े माना गया है।
4) 1968 (74-VSSC14) केस में भी अदालत ने जैनों की हिंदू नहीं माना।
5) 1975 (AIR 1975 CW 96) केस में भी निर्णय में कहा था कि ‘जैनों को दिल्ली में अपने शिक्षण संस्थानों का प्रबंधन करने का पूरा अधिकार है।’
6) 1993 (1993 AIR 317) में बाबरी मस्जिद केस में टिप्पणी दी थी कि ‘जैन धर्म अन्य अल्पसंख्यक धर्म की तरह हिंदू धर्म से भिन्न है।’
7) 1995 (AIR 1975, SC 2089) केस में अदालत ने निर्णय में यह माना कि – भारत में बौद्ध व जैन धर्म जाने-पहचाने धर्म हैं, जो ईश्वर के होने में विश्वास नहीं रखते। (ध्यान रहे इसका अनेक लोगों ने केस के तथ्यों को पूरा न जानते हुए आज भी यही कहते हैं कि जैन-बौद्ध भगवान में विश्वास नहीं करते, इसलिये नास्तिक हैं। यहां पर सान्ध्य महालक्ष्मी स्पष्ट कर देता है कि जैन अवतारवाद को नहीं मानता, जो जीव एक बार सिद्ध बन गया, वो दोबारा जन्म नहीं लेता, जैसा कि हिंदू धर्म में है कि विष्णु के 24 अवतार हो चुके 25वें अवतार कल्कि होंगे। अब यह ना पूछे ये कल्कि क्या वही है, जिनका उल्लेख जैन धर्म में भी है, बस समझ लीजिये, हां। (पर अवतारवाद से आस्तिक-नास्तिक नहीं होता। हर भव्य जीव में भगवान बनने की अनंत शक्ति को जैन धर्म ही स्पष्ट करता है और हर 6 माह 8 समय में, 608 जीव सिद्धालय पहुंचते हैं और इतने ही निगोद से निकलते हैं, इसलिये यहां जीवों की संख्या कभी ज्यादा – कम नहीं होती।
8. 2003 (AIR 2003 SC 724) में अदालत ने मानते हुए स्पष्ट कहा कि राष्ट्रीय गान में जैनों को पृथक रूप से दर्शाया गया है।
9. 2006 – दैनिक हिंदुस्तान में 24 अगस्त 2006 को छपी खबर में भी लिखा कि सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति श्री एस.बी. सिन्हा और न्यायमूर्ति श्री दलबीर भण्डारी जी की खण्डपीठ ने अपने एक फैसले में कहा कि – यह अविवादित तथ्य है कि जैन धर्म, हिंदू धर्म का हिस्सा नहीं है।
इन नौ सुप्रीम कोर्ट के निर्णय / टिप्पणियों के अलावा हाईकोर्ट के कुछ आदेशों पर भी एक नजर डाल लेते हैं, जो स्पष्ट करते हैं कि जैन हिंदुओं की शाखा नहीं, अलग एक स्वतंत्र धर्म है, जिसका संविधान में स्पष्ट उल्लेख है –
10. मद्रास हाईकोर्ट – 1927 (AIR 1927) मद्रास 228 मुकदमें के निर्णय में जैन धर्म को स्वतंत्र, प्राचीन व ईसा से पूर्व का माना।
11. बम्बई हाईकोर्ट –1939 (AIR 1939) मुकदमा 377 के निर्णय में स्पष्ट कहा जो जैन समाज के प्रबुद्ध लोगों को जन-जन तक बताना चाहिए, जिसकी आज बहुत आवश्यकता है कि ‘जैन धर्म, वेदों को स्वीकार नहीं करता, श्राद्धों को नहीं मानता व अनुसंधान बताते हैं कि भारत में जैन धर्म, ब्राह्मण धर्म से पहले था।’
12. बम्बई हाईकोर्ट (CWJC 91/1951) मुख्य न्यायाधीश श्री एम.सी. छगला और न्यायमूर्ति श्री राजेन्द्र गड़कर ने निर्णय देते हुए स्पष्ट कहा कि हरिजनों को, जैन मंदिर में प्रवेश करने का कोई अधिकार नहीं है, क्योंकि वे हिंदू मंदिर नहीं है। यह विदित है कि जैन, हिंदुओं से भिन्न मतावलम्बी हैं।
सान्ध्य महालक्ष्मी यहां पुन: सबको स्मरण कराता है कि आचार्य श्री शांतिसागरजी, जिनका इस वर्ष 100वां आचार्य पदारोहण वर्ष मना रहे हैं, उन्होंने ही इस विषय को उठाकर अन्न त्यागने का संकल्प लिया था, जो रक्षा सूत्र के दिन पूरा हुआ था।
13. कलकत्ता हाईकोर्ट – 1968 (AIR 1968-74) अदालत ने इसमें निर्णय देते हुए कहा कि जैन, हिंदू नहीं है, केवल उनके फैसले हिंदू लॉ के अनुसार किये जाते हैं।
इस पर एक विशेष जानकारी सान्ध्य महालक्ष्मी समाज को देना चाहता है कि संविधान बनाने के समय जैन समाज से अपना लॉ देने का सरकार से प्रस्ताव मिला था। तब अगर जैन श्रेष्ठियों ने ‘चम्पत राय जैन’ द्वारा लिखित ‘जैन लॉ’ को दे दिया होता, तो वह संविधान में शामिल होता और जैनों का आज भी अपने नियमों की बजाय, हिंदू लॉ पर आधारित नहीं रहना पड़ता। यह बहुत बड़ी भूल रही।
14. दिल्ली हाईकोर्ट – 1976 (AIR 1976) में अदालत ने निर्णय देते हुये कहा था कि संविधान का अनुच्छेद 25 जैनों को स्वतंत्र रूप से मानता है, जो कि सर्वोच्च नियम है।
ये 14 ही नहीं, अनेक केसों में अदालतों ने स्पष्ट माना है कि जैन धर्म अलग है, हिंदू धर्म की शाखा नहीं है। जिला अदालतों में तो ऐसे ढेरो निर्णय हैं, बस कमी रह गई, तो ‘जैन लॉ’ संविधान में शामिल ना कराने की और दूसरा, हमारे मंचों पर नेता आकर बोल जाते हैं कि जैन तो हिंदुओं की ही शाखा है और जैन नेता और समाज कुछ सही बोलने की बजाय, बस ताली पीटते रह जाते हैं।
टिप्पणी: सान्ध्य महालक्ष्मी की यह जागरूकता, समाज को सही स्थिति से अवगत कराने के साथ, अपनी स्वतंत्र पहचान को बनाये रखने के लिये ही है।