दसलक्षण पर्व के दौरान जैन समाज थानों में ॰ अजमेर में : कार्यक्रम सड़क पर क्यों हो? ॰ इन्दौर में : कार्यक्रम सड़क पर ही हों

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और ऐसे में निपटा दी गई क्षमावाणी, आपसी खाई जस की तस
26 सितंबर 2024/ अश्विन शुक्ल नवमी /चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी/ शरद जैन /
यह कहना गलत नहीं होगा कि आज कमेटियों के पदाधिकारियों के ऊपर अहंकार सिर चढ़कर बोलता है। आपस में विवादों के चलते वर्षों हो जाते हैं और अगर कोई संत उनको एक करने की पहल करें, तो एक जिद्दी धड़ा कह देता है, संतों को कूदने की क्या जरूरत? पर जो इस बार हुआ, उसने आचार्य श्री की दीक्षा स्थली अजमेर और जैनों की राजधानी इन्दौर के पूरे समाज की इज्जत मानो दांव पर लगा दी।

अजमेर में संतशाला पर ताला, भगवान सड़क पर टेंट में
पयुर्षण पर्व से कुछ दिन पहले ही पार्श्वनाथ कालोनी, वैशाली नगर के जैन मंदिर के सभी कार्यक्रम 20 साल में पहली बार सड़क पर हुए। भगवान का वार्षिक कलशाभिषेक से लेकर क्षमावाणी पर्व सभी सड़क पर टेंट लगाकर किये गये। कारण ठीक समाने बनाई गई संतशाला पर ठोक दिया ताला और कहा कि लिखित अर्जी दो। वैसे कार्यक्रम से ठीक पहले लिखित आवदेन दिया भी जाता है, पर ताला कभी नहीं लगता, जो इस बार ताला ठोक दिया गया। पहले, दो संतों का चातुर्मास स्थापना से पूर्व लौटना, से लेकर इन घटनाओं ने पूरे देश में अजमेर की प्रतिष्ठा गरिमा को तार-तार कर दिया। कारण कमेटी का अहंकार।

इन्दौर में सड़क पर करेंगे, बड़ी धर्मशाला में नहीं
जैसा सभी जानते हैं कि 6 साल पहले इन्दौर सामाजिक संसद के नाम पर दो कमेटी बन गई, दोनों को एक करने के लिये मुनि श्री प्रमाण सागरजी ने दोनों को इस्तीफे देकर, पुन: एक चुनाव करने की पहल की। एक गुट ने इस्तीफे सौंपे भी, पर दूसरे ने नहीं। वैसे इस विवाद के दोषी दोनों ही घटक कहीं न कहीं हैं। पर अति तब हो गई, जब कांच मंदिर के सड़क पर पंडाल के लिये थाने पहुंच गये।
दसलक्षण पर्व से पहले दिगम्बर जैन समाज में इतवारिया बाजार स्थित कांच मंदिर के सामने पंडाल लगाने को लेकर विवाद इतना बढ़ गया कि पुलिस बुलवानी पड़ी। पुलिस-प्रशासन ने समाज के दोनों लोगों ं में सुलह करवाने की कोशिश की। एक संसद के अध्यक्ष ने कहा कि 102 साल से सड़क पर कर रहे हैं, तो इस बार भी वहीं करेंगे, रास्ता रोकेंगे। दूसरे पक्ष ने कहा कि दो मार्ग वन-वे हो गये हैं और उनको जोड़ने का इतवारिया बाजार वैकल्पिक मार्ग है। 15 दिन के लिये सड़क को रोकने से बहुत परेशानी होती है। साथ ही हमारी दस हजार वर्ग फीट की धर्मशाला में बड़ी जगह है। हमें सड़क की बजाय धर्मशाला में कर, अन्य लोगों को भी संदेश देना चाहिये कि वे भी सड़क की बजाय वैकल्पिक जगह चुनें। पर पुलिस की दखलांदाजी से सभी कार्यक्रम सड़क पर हुए।

यहां भी क्षमावाणी पर अधिकांश संत नहीं आये, केवल आचार्य श्री विप्रणत सागरजी और आर्यिका सुनयमति माताजी आयें। उन्होंने कहा भी, जो समाज को तोड़ता है, वो कभी क्षमा का पात्र नहीं होता। समाज ने भी कार्यक्रम का आंशिक बहिष्कार किया।

दोनों जगह क्षमावाणी मनी, केवल खानापूर्ति के लिए। एक-दूसरे से क्षमा कहने का साहस नहीं कर पाये, बस अब ऐसी ही दिखावटी क्षमावाणी रह गई है।
इसकी पूरी जानकारी चैनल महालक्ष्मी के एपिसोड नं. 2870 में देख सकते हैं।

चैनल महालक्ष्मी चिंतन : आज जगह-जगह कमेटियां पद को छोड़ने की बजाय समाज और संत की प्रतिष्ठा गिराने की हद तक पहुंच जाती हैं। गुरुओं को मानना, पर गुरु की नहीं मानना, स्पष्ट झलकता है। ऐसे नियम होने चाहिए कि एक निश्चित अवधि के बाद पद छोड़ना ही होगा और चुनवा से अगला निर्णय हो। इस चुनावी प्रक्रिया में किसी बाहरी शक्ति की दखलांदाजी न हो।