जैन और वैदिक भारत की दो प्राचीन विचार धाराएं और धर्म हैं. इन दोनों विचारधाराओं में, दोनों परंपराओं में क्या बुनियादी अंतर है इसका विवेचन मैं इस लेख में कर रहां हूं. (कृपया याद रहें कि ‘जैन और वैदिक’ का मतलब ‘जैन और हिंदू’ नहीं है. हिन्दू का मतलब मुख्य रूप से शैव आदि होता है, जिनसे जैन धर्म की काफी समानताएं हैं. उनके बारे में मैं अलग से लिखूंगा)
• जैन धर्म सर्वप्राचीन श्रमण संस्कृति से संबंधित है, जिसका मूल भारत की प्राचीन सिंधू सभ्यता में है, जब कि वैदिक धर्म ऋग्वेद और अन्य वेदों पर आधारित है, जो सिंधू सभ्यता जितने प्राचीन नहीं हैं.
• जैन धर्म किसी ईश्वर की सत्ता को नहीं मानता, और न ही मानता कि इस विश्व की रचना किसी ईश्वर ने की जब कि वैदिक धर्म के अनुसार इस विश्व का निर्माण ब्रम्हा ने किया.
• जैन धर्म के अनुसार मनुष्य अपने कर्मों का नाश कर भगवान बन सकता है, लेकिन वैदिक धर्म इसे नहीं मानता.
• जैन धर्म सब मनुष्यों को समान मानता है, उनमें जाती या वर्ण के आधार पर भेदभाव नहीं करता, जब कि वैदिक धर्म मनुष्य में वर्ण और जाती के आधार पर भेदभाव करता है.
• वैदिक परंपरा में ब्राम्हणों को सबसे श्रेष्ठ मान गया है, जब कि जैन परंपरा में ब्राम्हणों को कोई विशेष दर्जा नहीं दिया गया है.
• मूल वैदिक धर्म में आत्मा और पुनर्जन्म की संकल्पना नहीं है, लेकिन जैन धर्म में यह प्राचीन काल से है.
• वैदिक धर्म में कर्मकांड का महत्व है, जब कि जैन धर्म में आत्मा और कर्म का महत्व है.
• वैदिक धर्म में वेदों को प्रमाण माना गया है, जब कि जैन धर्म वेदों को प्रमाण नहीं मानता
• जैन धर्म में अहिंसा का बडा महत्व है जब कि वैदिक धर्म में यज्ञों में हिंसा का समर्थन किया गया है. अश्वमेध यज्ञ इसका एक उदहारण है.
• वैदिक धर्म के अनुसार गाय की हत्या करना महापाप है, लेकिन जैन धर्म में गाय तो क्या, किसी भी प्राणी की हत्या करना महापाप है.
• वैदिक धर्म के अनुसार ब्रम्हहत्या करना महापाप है, लेकिन जैन धर्म में किसी भी मनुष्य या प्राणी की हत्या करना महापाप माना गया है.
• वैदिक धर्म के अनुसार मनुष्य को मुक्ति के लिए पुत्रप्राप्ति होना आवश्यक माना गया है. जैन धर्म इसे नहीं मानता. जैन धर्म के अनुसार मुक्ति के लिए अपने कर्मों के अच्छे-बुरे फलों से मुक्त होना आवश्यक माना गया है.
• जैन धर्म मेँ स्त्रियों को प्राचीन काल से पुरुषों के समान अधिकार थे, लेकिन वैदिक धर्म ने स्त्रियों को शूद्र मानकर उनको उनके अधिकारों से वंचित रखा था.
• जैन धर्म में प्राचीन काल से स्त्रियों को पिता की संपत्ति में समान अधिकार दिए गए है. वैदिक धर्म में स्त्री को यह अधिकार नहीं था.
• वैदिक धर्म में स्त्रियों और शूद्रों को वेद पढने के अधिकार नहीं थे, लेकिन जैन धर्म में सभी लोग चाहे वह स्त्री हो या पुरुष, ब्राम्हण हो या शूद्र, आगम ग्रंथ पढ़ सकते थे.
• वैदिक धर्म पर ब्राम्हणों का एकाधिकार है, जब कि जैन धर्म पर किसी भी एक जातिविशेष का एकाधिकार नहीं है.
• जैन धर्म ने स्त्री शिक्षा का हमेशा समर्थन किया. यह परंपरा जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर ऋषभ देव ने अपनी कन्याएं ब्राम्ही और सुंदरी को लिपि और गणित की शिक्षा देकर शुरू की थी. वैदिक धर्म ने स्त्रियों की शिक्षा का विरोध किया है.
• वैदिक पद्धति से किये जानेवाले विवाह में कन्या का दान किया जाता है, जब कि जैन पद्धति से किये जाने वाले विवाह में कन्यादान नहीं किया जाता. जैन मान्यता के अनुसार कन्या कोई वस्तु नहीं है जिसे दान किया जाय.
• जैन धर्म के प्राचीन आगम ग्रंथ उस समय की अर्ध मागधी, शौरसेनी आदि लोक भाषाओं में लिखे गये, बाद के ग्रंथ महाराष्ट्री, तमिल, कन्नड आदि लोकभाषाओँ में लिखे गए. वैदिक परंपरा के ग्रंथ केवल और केवल संस्कृत भाषा में ही लिखे गये, जो लोकभाषा नहीं थी.
• जैन धर्म के प्राचीन पुरातत्वीय अवशेष बड़ी संख्या में भारत भर में फैले हुए हैं (जैसे कि शिलालेख, मूर्तियां, गुफाएं आदि), लेकिन वैदिक धर्म का एक भी प्राचीन पुरातत्वीय अवशेष उपलब्ध नहीं है.
• वैदिक धर्म में ईश्वर की पूजा उसको खुश कर उससे लौकिक चीजे पाने के लिए की जाती है, जब कि जैन धर्म में भगवान की पूजा भगवान के गुणों के स्मरण के लिए और उसके जैसा बनने के लिए की जाती है.
• वैदिक धर्म में मूर्तिपूजा नहीं है, ना ही उनके कोई मंदिर होते हैं, जब कि मंदिर और मूर्तिपूजा जैन धर्म की देन है. यही कारण है कि वैदिक देवताओं के कोई प्राचीन मंदिर या मूर्तियां दिखाई नहीं देती है. इसके उलटे पूरे भारत में प्राचीन जैन मंदिरों के अवशेष दिखाई देते हैं.
• वैदिक धर्म और झोरेस्ट्रियन (पारसी धर्म) में कई समानताएं हैं. यह दोनों धर्म अग्निपूजक हैं. वैदिकों के ऋग्वेद और पारसियों के अवेस्ता इस ग्रन्थ की कई ऋचाओं में समानताएं पाई जाती है. लेकिन इस प्रकार की कोई समानता जैन और झोरेस्ट्रियन में दिखाई नहीं देती
महावीर सांगलीकर 8149703595