भव्य जेनश्वरी दीक्षा सम्पन,अन्तर्मना आचार्य प्रसन्न सागर एक किसान है..दिक्षार्थी एक बीज है.. वे बीज अब अंकुरित होकर पौधा व पेड़ बनगे….गणाचार्य पुष्पदंत सागर

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जो है वो आज है जिंदगी…सौम्य मूर्ति मुनि पीयूष सागर

आचार्य पद के बाद अन्तर्मना के सानिध्य मे पहली भव्य जेनश्वरी दीक्षा समारोह सम्पन

निमियाघाट/कोडरमा ,राज कुमार अजमेरा, नवीन जैन। प्रसन्न सागर के तप के वृक्ष के ऊपर उनकी साधना के फल आएंगे लग जाएँगे। वे अब दीक्षा देंगे मैने उन्हें अनुमति दे दी है। मे भी बहुत आनंदित हूँ भक्तो ” दीक्षा जीवन की परीक्षा है” दीक्षा बड़े से बड़ा विद्रोह है स्वयं में स्वयं के द्वारा क्रांति है विद्रोह से मेरा तात्पर्य इक्छाओ को संभालना, कामनाओ से जूझना है। जो संस्कार आदिकाल के है वे उदय मे तो आएंगे। सरल नही है ये मार्ग भक्तो ” दीक्षा एक शहद लगी तलवार है उनको चाटने जैसा है सन्यास लेना” यह बात पुष्पगिरी तीर्थ प्रणेता गणाचार्य श्री पुष्पदंत सागर जी महाराज ने निमियाघाट झारखण्ड जैन मंदिर में अन्तर्मना आचार्य प्रसन्न सागर जी महाराज के सानिध्य में हो रही जेनश्वरी दीक्षा समारोह में ऑनलाइन प्रवचन के माध्यम से दीक्षार्थियो के साथ भक्तो को प्रवचन देते हुये कही
उन्होंने कहा कि “समाप्त जहाँ होती है इक्छा वहाँ से प्रारम्भ होती है दीक्षा” यह जीवन एक ऐसी परीक्षा है जहाँ ईर्ष्या,निंदा,अपनाम भी होगा उस समय तुम्हारी समता,समर्पण, करूणा व सन्यास की असली दीक्षा होगी। अग्नि परीक्षा होगी। सीता रानी की तरह तुम अग्नि परीक्षा में सफल हो गए तो सब का कल्याण होगा जगत में तुम्हारी चर्चा होगी
प्रसन्न सागर एक किसान है दिक्षार्थी एक बीज अब तुम अंकुरित होकर पौधा व पेड़ बनोगे।
इसी तारतम्य में दीक्षार्थी भाई बहनों का मनोबल व उत्साह वर्धन करते हुए सौम्य मूर्ति पीयूष सागर जी कहा कि ” ना “राज” है जिंदगी ना “नाराज” है जिंदगी याद रखना बस जो है “आज” है जिंदगी….जेनश्वरी दीक्षा अर्थात स्वयं को स्वयं से जोड़ने की शिक्षा, सिद्धालय तक पहुचने वाली दीक्षा ओर समाधि की साधना सिखाने वाली शिक्षा है।
कार्यक्रम से पूर्व भारत गौरव साधनामहोदधि तपाचार्य उभयमसौपवासी अन्तर्मना आचार्य श्री प्रसन्न सागर जी महाराज के सानिध्य सौम्य मूर्ति मुनि श्री पीयूष सागर जी महाराज के निर्देशन में ऊर्जावान भूमि के अलौकिक आध्यत्मिक अभूतपूर्व अतिमहान सर्वश्रेष्ट सर्वजेष्ठ सम्मेद शिखर पर्वत की पार्श्व तहलटी के निमिया घाट में विराजमान अतिशयकारी पार्श्वनाथ भगवान की वरदानी छाव तले सत्य सम तट शांति संतोष को देने वाली भव्यतिभव्य जेनश्वरी दीक्षा समारोह का शुभारंभ किया गया । कोडरमा मीडिया प्रभारी प्रवक्ता राज कुमार अजमेरा /नवीन जैन ने बताया सर्व प्रथम बहन खुशी,मुक्ति, आरु, किट्स, जैनिशस जैन के द्वारा मंगलाचरण, अमित बड़जात्या द्वारा ध्वजारोहण, राजेश नवडिया द्वारा द्वीपप्रज्जवलन वर्षा सेठी टीम द्वारा स्वागत नृत्य नाटिका के साथ हुआ। जिसके बाद , ब्र.चारणी बीना दीदी मध्यलोक व श्रमचार्य विशुद्ध सागर जी संघत ब्रमचारी पीयूष, हार्दिक व सौरभ भैया के साथ दीक्षार्थियों द्वारा आचार्य श्री को श्री फल भेट किया गया। जहाँ गुरुदेव ने अभी को अपना मंगल आशीर्वाद प्रदान किया। कार्यक्रम का संचालन कर्ता ब्र.तरुण भैया इंदौर द्वारा दीक्षार्थियों व उनके परिवार को सम्मान के साथ आमंत्रित कर पूज्य आचार्य भगवन के पाद प्रकक्षालन कराए गए। जिसके बाद दीक्षार्थी परिवार जनों ने उनसे जुड़ी कई बातों को गुरुदेव के सामने साझा किया। साथ धूलियान सेठी परिवार द्वारा अपनी माता के दीक्षा होने से पूर्व भजन के माध्यम से अपने भाव व्यक्त किये व आचार्य श्री से जेश्वरीदीक्षा के लिए आग्रह किया। गौरतलब है कि जैन जगत के इतिहास में पहली बार परतापुर राजस्थान के एक ही परिवार में 4 सदस्य एक साथ गुरुदेव से दीक्षा ले रहे थे। यह भी ज्ञात होकि अन्तर्मना की मुनि दीक्षा संस्कार भी परतापुर मे ही संम्पन हुई थे जिस समय श्री माणकचंद जी का परिवार वहाँ मौजूद था सौभाग्य की बात ये है कि उसी परिवार के सामने आज अन्तर्मना आचार्य श्री द्वारा उनके बेटो को दीक्षा दी गई।

दीक्षा विधि प्रारम्भ :-
देश, समाज परिवार संघत सभी सन्तो से अनुमति लेकर व अपने आत्महितंकर तपश्वि सम्राट आचार्य सन्मति सागर जी, शांति सागर जी पुष्पदंत सागर सहित गुरुओ की वंदना कर अन्तर्मना आचार्य व मुनि पीयूष सागर जी महाराज ने साथ मे धर्मिक़ क्रियाओं के साथ मंत्रोउच्चार के द्वारा दीक्षार्थियों के केशलोचन की विधि आरम्भ की जिसके बाद पद अनुसार दीक्षार्थियों के संस्कार कर मुनिदीक्षार्थी को 28 मूलगुण, आर्यिका माता जी को 26 मूलगुण के व क्षुल्लक व क्षुल्लिका दीक्षार्थी आवश्यक नियमो का संकल्प दिलाकर उनका संयासी जीवन के नाम की घोषणा की
अन्तर्मना आचार्य ने मंगल आशीष देकर दीक्षार्थियों को मोक्ष मार्ग की ओर अग्रसर किया जिसके अंतर्गत गुरुदेव के संघत श्री भरत भैया भेयावत जी की मुनि दीक्षा देते हुए उन्हें मुनि श्री 108 अप्रमत्त सागर जी महाराज ऐलक श्री पर्व सागर जी की मुनि दीक्षा करते हुए उन्हें मुनि श्री 108 पर्व सागर जी महाराज, श्री मति सरोज भेयावत को आर्यिका ज्ञानप्रभा माता जी, श्री मति राजमती भेयावत को आर्यिका चारित्र प्रभा माता जी, श्री राघवैध भेयावत को क्षुल्लक परिमल सागर जी श्री मति भवरी देवी जी धूलियांन बंगाल को क्षुलिका 105 दर्शन प्रभा माता जी, की उपाधियों प्रदान कर उन्हें संयासी जीवन बिताने का संकल्प दिलाया। इस अवसर पर संघ के अज्जू भाई धूलियांन, सजन जैन बंटी अहमदाबाद, सहित कई गुरुभक्त मौजूद थे। संचालन ब्र.तरुण भैया इंदौर व आभार गुरुभक्त परिवार की ओर से डॉ. संजय जैन इंदौर द्वारा किया गया।