जैन समाज की ओर से कई संस्थान इस बारे में जागरूक कर रहे थे कि जनगणना के समय अपना धर्म और जाति सही रूप से लिखें । इन जागरूकता की कोशिशों पर जैसे अब पानी फिरने वाला है, क्योंकि इस बार यानी 2021 की जनगणना 10 साल के लिए टल जाएगी।
टीकों से आबादी पता चलेगी, जनगणना 2031 तक टलेगी
जन्म-मृत्यु के डेटा और वोटर आईडी को आधार से जोड़ने से आबादी का अनुमान लगेगा
कोरोना की वजह से दो साल से स्थगित हो रही जनगणना को अब 2031 तक टालने की तैयारी कर ली गई है। सूत्र बता रहे हैं कि इस बारे में केंद्र सरकार आने वाले दिनों में घोषणा करेगी। दरअसल, कोरोना के खिलाफ जारी टीकाकरण की वजह से केंद्र सरकार को टीका लगाने वाले वयस्कों (18+) की सटीक जानकारी मिल चुकी है। 15 से 18 साल के किशोरांे का वैक्सीनेशन शुरू हो गया है। इससे सरकार को लगभग पूरी आबादी की संख्या का अंदाजा हो जाएगा। इसलिए सरकार का मानना है कि जनगणना को 2031 तक टालने से कोई खास नुकसान नहीं होगा।
केंद्र सरकार ने जूरिस्डिक्शन फ्रीज करने का फैसला 30 जून 2022 तक टाल दिया है। जनगणना टलने का यह सबसे बड़ा संकेत है। इससे पहले इसके लिए 31 दिसंबर 2020 और फिर 31 दिसंबर 2021 की समय सीमा तय की गई थी। जूरिस्डिक्शन फ्रीज करने का फैसला जनगणना शुरू करने से 3 महीने किया जाता है। इसके बाद किसी भी जिले, ब्लॉक या गांव की सीमाएं नहीं बदली जा सकतीं। जाहिर है कि अब जनगणना का फैसला होता भी है तो 2022 के आखिरी 3 महीने तक से पहले इसे शुरू नहीं किया जा सकेगा। ऐसे में यदि नया टाइम फ्रेम जारी किया जाता है तो जनगणना के अंतिम आंकड़े 2027 से पहले जारी नहीं हो सकेंगे। अहम बात यह है कि ये आंकडे 2031 तक ही मान्य रहेंगे। इसलिए सिर्फ 4 साल के लिए राष्ट्रव्यापी कवायद करने का कोई खास औचित्य नहीं रहेगा।
सूत्रों की मानें तो टीकाकरण के अलावा डेटा इंटीग्रेशन से भी जनसंख्या के सही-सही आंकड़े सरकार को मिल रहे हैं। जन्म-मृत्यु पंजीकरण कानून में प्रस्तावित संशोधन से रास्ता और भी आसान हो जाएगा। वोटर आईडी को आधार से जोड़ने का ताजा प्रस्ताव भी जनगणना निदेशालय का काम आसान हो जाएगा। ऐसे में करीब 12,695 करोड़ रु. बच जाएंगे। साथ ही 30 लाख कर्मचारियों की 2-3 साल चलने वाली कवायद बच जाएगी। गृह मंत्रालय से जुड़ी संसदीय समिति में शामिल विपक्षी सदस्यों ने एनपीआर और एनआरसी का मुद्दा उठाते हुए यह सलाह दी थी कि जनसंख्या रजिस्टर को अपडेट करने का काम आधार से मिले डेटा से किया जा सकता है। इससे सियासी टकराव भी कम होगा।
एनआरसी और एनपीआर पर चल रहा टकराव भी 2031 तक टल जाएगा
एनआरसी और एनपीआर को लेकर केंद्र सरकार और 11 राज्यों के बीच असहमति है। एनपीआर को लेकर पहले भी विरोध प्रदर्शन की नौबत आ चुकी है। ऐसे में केंद्र सरकार फिर से नई परेशानी नहीं चाहती। जनगणना और एनपीआर का काम 2031 तक स्थगित होने से यह नौबत भी टल जाएगी। हालांकि, भाजपा के एजेंडे में एनसीआर और एनपीआर आगे भी बना रहेगा, क्योंकि इससे उसकी सियासी लकीर स्पष्ट होती है।
पंजीकरण कानून में प्रस्तावित संशोधन से रास्ता और भी आसान हो जाएगा। वोटर आईडी को आधार से जोड़ने का ताजा प्रस्ताव भी जनगणना निदेशालय का काम आसान हो जाएगा। ऐसे में करीब 12,695 करोड़ रु. बच जाएंगे। साथ ही 30 लाख कर्मचारियों की 2-3 साल चलने वाली कवायद बच जाएगी। गृह मंत्रालय से जुड़ी संसदीय समिति में शामिल विपक्षी सदस्यों ने एनपीआर और एनआरसी का मुद्दा उठाते हुए यह सलाह दी थी कि जनसंख्या रजिस्टर को अपडेट करने का काम आधार से मिले डेटा से किया जा सकता है। इससे सियासी टकराव भी कम होगा।
जनगणना स्थगित रखने के समर्थन में तर्क
जनसंख्या का डेटा वैक्सीनेशन के जरिए सरकार के पास एकत्र हो रहा है। बच्चों का वैक्सीनेशन होने के बाद देश की आबादी का सही-सही अंदाजा लग जाएगा।
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