पूज्य मुनि श्री निर्वेग सागर जी द्वारा शंका समाधान
जैनी श्रावक क्षत्रिय वृत्ति को धारण करने वाले होते हैं। वे संकल्प पूर्वक एक चींटी को भी नहीं मारते किंतु परिवार, धर्म एवं धर्मात्मा की रक्षा के लिए शस्त्र आदि द्वारा किसी का प्रतिघात भी कर सकते हैं।
श्रावक विरोधी हिंसा का त्यागी नहीं होता। रामचंद्र जी ने सीता की रक्षा के लिए हजारों सैनिकों का घात किया होगा फिर भी मुनि बन कर मोक्ष को प्राप्त किया।
इतिहास में अनेकों जैन राजा एंव सेनापति हुए हैं जोकि शस्त्र विद्या में निपुण थे एवं अनेक युद्धों में विजय प्राप्त कर जैनत्व के गौरव को बढ़ाया। अतः जैनी श्रावक भी शस्त्र आदि रख सकता है रक्षा के उद्देश्य से।