इस पंचम काल में प्रतिष्ठित तीर्थंकर प्रतिमाओं से जल आना, क्या अपशकुन है , या प्रतिमा का साधारण स्वभाव, या रक्षक देवी देवताओं का अभिषेक

0
786

16 मई 2022/ बैसाख शुक्ल पूर्णिमा /चैनल महालक्ष्मीऔर सांध्य महालक्ष्मी/
समय-समय पर, इस पंचम काल में, मंदिरों में प्रतिष्ठित तीर्थंकर प्रतिमाओं से जल आता दिखता हैं । अभिषेक होने की घटनाएं, लगातार देखी जाती है । इस बारे में सबके अपने-अपने मत होते हैं। जैसा अभी हाल में, शनिवार के दिन, उन तीर्थंकर प्रतिमा से अभिषेक हुआ, जिनका यह दिन माना जाता है, जिनकी प्रतिष्ठा अभी हाल में , मुनि पुंगव श्री सुधासागर जी से हुई । यानी जबलपुर के हनुमान ताल बड़े मंदिर में तीर्थंकर मुनीसुव्रतनाथ प्रतिमा पर अभिषेक सिर और कान से लगातार, 5 घंटे होता रहा ।

घटना 9 मई की है , जब रात्रि लगभग 8:00 बजे के आसपास, उस अभी हाल में प्रतिष्ठित जिन प्रतिमा से जल की धारा बह निकली और यह अतिशय एक दो मिनट या कुछ घंटे नहीं, 5 घंटे लगातार होता रहा यानी रात्रि 1:00 बजे जाकर वह बंद हुआ। इस बारे में सब के अलग-अलग मत हैं। कोई इसे पाषाण का स्वभाव कहता है , कोई इसे शास्त्र का संकेत देकर अपशकुन बताता है और कई इसे उस जगह के रक्षक देवी देवताओं द्वारा किए गए अभिषेक का कारण बताता है ,

यानी तीन प्रकार के कारण हमारे सामने आ जाते हैं।
पहला कारण, जैन दर्शन के अनुसार – भद्रबाहु संहिता (पेज न. 253) के अनुसार तीर्थंकर प्रतिमा से पसीना / जल आना (देवो द्वारा अभिषेक समझना) चमत्कार नही अपितु विद्वेश / संघर्ष / विपत्ति आने की सूचना है। कृपया चमत्कार न समझकर अपितु चिंताजनक माने!

दूसरा वैज्ञानिक कारण – एक पाषाण विशेषज्ञ से इस विषय में मैंने चर्चा की थी। उन्होंने बताया कि पाषाण की खासियत यह होती है कि वह बहुत देर में ठंडा होता है और बहुत देर में गर्म होता है। जब सर्दी बहुत ज्यादा पड़ती है तब कभी कभी पाषाण के अंदर एकत्रित प्राकृतिक जल बाहर आ जाता है। यह एक प्राकृतिक क्रिया है। उदाहरण जैसे स्टील के गिलास में बिल्कुल ठंडा पानी डालने पर गिलास के बाहर पानी की बूंदे जम जाती है। प्रतिमा से बाहर पानी आने का एक कारण ये भी हो सकता है!

और तीसरा सबसे महत्वपूर्ण कारण, कि हम मंदिरों में तीर्थंकर प्रतिमाओं के आसपास दिव्य शक्ति की अनुभूति को नकार नहीं सकते । चाहे कैसा भी समय रहा हो । जब भी पूजा विधान आदि करते हैं या कभी कोई तीर्थंकर प्रतिमा एक जगह से दूसरी जगह ले जाते हैं , तो निश्चय ही वहां के रक्षक देवी देवताओं से हम अनुमति मांगते रहते हैं । यही नहीं , हमारे विधान को निर्विघ्नं हो , पूजा निर्विघ्नं हो, इसकी वअनुमति रक्षक देवी देवताओं से , यक्ष यक्षिणी से , जरूर मानते हैं ।

अगर ऐसा है तो इसका मतलब, उनकी उपस्थिति भी हम मानते हैं और निश्चय ही, होती भी होगी। तो क्या वह अभिषेक नहीं कर सकते या नहीं करते । इन तीनों कारणों में अनुबूझ पहेली है । चिंतन करना है , मनन करना है कि पंचम काल में यह अभिषेक किस कारण से दिखता है ।

सांध्य महालक्ष्मी , चैनल महालक्ष्मी आपके विचार भी चाहता है , जो आप हमारी ईमेल info@channelmahalaxmi.com पर अवश्य भेजें , जिससे इस बारे में आप लोगों के भी चिंतन को हम जान सके। इसकी पूरी रिपोर्ट मंगलवार 17 मई को चैनल महालक्ष्मी अपने विशेष एपिसोड में प्रातः 8:00 बजे जारी करेगा, देखना मत भूलिएगा।