टाइम्स ग्रुप की चेयरपर्सन श्रीमती इंदु जैन का 84 साल की उम्र में 13 मई 2021 को निधन हो गया। वे एक प्रमुख भारतीय मीडिया शख्सियत थीं। वह भारत के सबसे बड़े मीडिया समूह, बेनेट, कोलमैन एंड कंपनी लिमिटेड की चेयरपर्सन थीं, जिसे टाइम्स समूह के नाम से जाना जाता है। वह आजीवन आध्यात्मिक साधक, अग्रणी परोपकारी, कला की विशिष्ट संरक्षक और महिलाओं के अधिकारों की समर्थक थीं। 13 मई 2021 को उन्होंने अंतिम सांस ली। टाइम्स ग्रुप की चेयरपर्सन कोरोनो वायरस से जूझ रही थीं और पिछले कुछ दिनों से अस्पताल में इससे लड़ रही थीं। उनके विचारों को उनके ही अखबार के एक लेखक ने उपरोक्त शीर्षक वाले लेख में बड़ी ही सुंदरता से पिरोया है। वह लेख सान्ध्य महालक्ष्मी के 21 मई 2021 के अंक में प्रकाशित भी हुआ। उस अंक में हमें प्राप्त ढेरों श्रद्धांजलि संदेश भी प्रकाशित किये गये।
नवभारत टाइम्स समूह, भगवान महावीर मैमोरियल समिति के सदस्यों के अथक प्रयासों से जूम पर 22 मई 2021 को एक विराट सभा का आयोजन किया गया जिसका नाम था – ‘श्री मां इंदु जैन स्मृति उत्सव’। उसमें जैन संतों के साथ-साथ जैनेत्तर समाज के प्रख्यात संतों, उद्योगपतियों, समाजसेवियों, टाइम्स हाऊस के मूर्धन्य मीडिया वर्ग, अमरीका, लंदन से जैन संस्थाओं के अध्यक्ष एवं भगवान महावीर मैमोरियल समिति के सदस्यों ने इंदु मां के मृत्यु महोत्सव पर उनके विराट व्यक्तित्व का गुणगान किया, जिसे हजारों लोगों ने यू-ट्यूब लाइव के माध्यम से लाइव देखा और उनके जीवन से अनेक प्रेरणायें लीं। करीब साढ़े तीन घंटे चले इस वृहद स्मृति उत्सव का कुशलता से संचालन श्री राजीव जैन सीए ने किया और इसे जैन समाज के इतिहास के पन्नों पर अंकित करने के लिये लिखित दस्तावेज के रूप में प्रस्तुत करने का उद्यम दरियागंज के प्रसिद्ध उद्योगपति, समाजसेवी, भाजपा के कर्मठ नेता, सहयोग दिल्ली के अध्यक्ष श्री मनोज जैन ने किया जो भगवान महावीर मैमोरियल समिति के कर्मठ सदस्य भी हैं। उनका प्रयास रहता है कि ऐसे कार्यक्रमों का फायदा ज्यादा से ज्यादा पाठक वर्ग को मिलें, श्री मनोज जैन के सौजन्य से ही सान्ध्य महालक्ष्मी आपके लिये स्मृति सभा की पूरी कवरेज यहां दे पा रहा है।
श्री मां इंदु जैन स्मृति महोत्सव
नवभारत टाइम्स समूह, भगवान महावीर मैमोरियल समिति के सदस्यगण और समस्त जैन समाज के महानुभाव भाई नरेन भीखूराम जैन, मुदित जैन, सुभाष ओसवाल, पुनीत जैन, अखिलेश जैन, रवि जैन, सुशील जैन एडवोकेट, डॉ. एम.पी. जैन, मनोज जैन, नरेश आनंद जैन, अनिल जैन, आदीश जैन सीए, शैलेन्द्र बडवानी, एल.एल. अछाछा, राजीव जैन सीए, अनिल जैन एफसीए आदि ने श्री मां इंदु जैन स्मृति उत्सव का जूम पर सफलतापूर्वक आयोजन किया।
जूम चैनल पर संचालन करते हुए श्री राजीव जैन ने शासनपति भगवान महावीर के चरणों में कोटिश: वंदन करते हुए, सान्निध्यकर्ता मुनिवरों एवं गुरु भगवन् के चरणों में वंदन करते हुए सभा का प्रारंभ किया। उन्होंने कहा जीव नहीं जानता कि वह कहां से आया, कहां जाएगा? संसार में कुछ ऐसी भव्य – पुण्य आत्माएं जन्म लेती हैं, वे अपने जीवन काल में इस प्रकार के प्रश्न उपस्थित कर देती हैं, उत्सुकता पैदा होती है कि मेरा वास्तविक स्वरूप क्या है, मैं कौन हूं? मैं जन्म से पहले क्या था और इस मृत्यु के बाद क्या होगा? जो इस खोज को शुरू करेगा, उसे इस प्रश्न का उत्तर जरूर मिलेगा। जिस भव्य जीव के जीवन में शुद्ध स्वरूप उसे अपने वास्तविक स्वरूप का ज्ञान हो गया उसका जन्म से लेकर मरण तक की यात्रा उत्सव हो गई और मृत्यु उसके लिये महोत्सव। ये ऐसा जीव है, ऐसा विद्यार्थी है जो पूरे वर्ष भर पढ़ाई करता है, और जो ऐसा मेधावी छात्र है, उसे परीक्षा यानि मृत्यु की घड़ी में उसे किसी प्रकार का भय नहीं होता क्योंकि उसे मालूम है कि वो उत्तीर्ण होने वाला है, उसकी उच्च गति होगी। आज (22 मई 2021) को हम एक ऐसी ही भव्य आत्मा आदरणीय परम श्रद्धेय श्री मां इंदु जैन के स्मृति उत्सव में इस सभा में उपस्थित हुए हैं। टाइम्स हाउस की चेयरमैन श्रीमती इंदु जैन ने अपना जीवन बहुत ही शांत भाव में जिया। सबकुछ साधन उनको उपलब्ध थे, फिर भी उन्होंने स्वयं की खोज प्रारंभ की, स्वयं को पाया, पहचाना। 13 मई 2021 को इस नश्वर शरीर और इस शरीर से जुड़े सभी नाते-सम्बंध और उपाधियों को छोड़कर इस नश्वर संसार से महापरायण कर गई। मां की इच्छा थी कि किसी भी स्थिति में मेरी मृत्यु का शोक न मनाया जाए। मेरी मृत्यु तो एक उत्सव है, मेरी अध्यात्मिक यात्रा अनादि से अनंत है। इसलिये हम आज उनकी श्रद्धांजलि सभा न कहकर श्री मां इंदु जैन स्मृति महोत्सव के नाम से रूप दिया है।
भाई मनोज जैन (सोनू आटर््स, दरियागंज) भगवान महावीर मैमोरियल समिति के सदस्य, भाजपा नेता एवं सहयोग दिल्ली के अध्यक्ष ने मंगलचारण में णमोकार महामंत्र का वाचन करते हुए कहा कि मंत्र नवकार हमें प्राणों से प्यारा है, ये वो है जहां जिसने लाखों को तारा है।
इंसानियत को आगे कर यदि धर्म को थोड़े समय के लिये पीछे कर दें, तो धरती शायद स्वर्ग बन जाए
श्री अनिल जी जैन सीए : इंदु मां के नाम से ही मंद-मंद मुस्कान व वात्सल्य भरी छवि का छायांकन प्रत्येक मन और मस्तिष्क स्वयमेव हो जाता है। उनकी स्मृति में इस अद्भुत वर्चुअल उत्सव में जो कोरोना काल में हो रहा है। देश-विदेश से जुड़े धर्मगुरू, राजनेता, उद्योगपति, जूम, पारस टीवी और यू-ट्यूब, अनेक मीडिया द्वारा जुड़े दर्शकों को यह सम्मानित मंच स्नेहपूर्वक नमन, वंदन करता है। वर्ष 1999 का वह दिन आज भी याद है जब साहु अशोक जैन जी के देवलोकगमन होने पर लालकिले के प्रांगण पर शोक नहीं, अशोकोत्सव मनाया गया। तभी आपने टाइम्स हाउस के साथ भगवान मैमोरियल की बागडोर संभाली। तदुपरांत वर्ष 2000 में गुजरात में भारी भूकंप आया और मेरे साथ टाइम्स रिलीफ की एक टीम गुजरात पहुंची, गुजरात का भ्रमण किया और अनेक ध्वस्त मकानों का पुनर्निर्माण कराया और उसके बाद डिसास्टर मैनेजमेंट जैसे विषय पर देश और समाज को तैयार भी किया। मेरे प्रति उनके प्रति स्नेह और वात्सल्य छिपा नहीं है। सामाजिक मसलों पर वह अक्सर कहती थी कि इंसानियत को आगे कर यदि धर्म को थोड़े समय के लिये पीछे कर दिया जाए, तो शायद इसी मृत्युलोक पर स्वर्ग स्थापित हो जाए। वे एक स्प्रीच्युल स्पीकर थी।
मां का लिखे पत्र को पढ़कर पता लगा कि विधि द्वारा निर्धारित बिन मुहूर्त का उत्सव है मृत्यु और जीवन जीने की कला का विस्तार मृत्यु तक होना चाहिए। यह संदेश हम सबको दिया। प्रत्येक दिन हर्ष एवं उल्लास से पूर्ण हो और भेदभाव और शिकायत से दूर होना चाहिए।
कुछ ऐसी करनी कर प्यारे, जैन धर्म न बारंबार मिले
इंदु मां की दुआएं लेते जा, इंदु ऐसी बारंबार मिले
श्री नरेन भीखूराम जैन : वात्सल्य व अध्यात्म से पूर्ण इंदु मां कहां है? मृत्यु की कला को ही जानना है, तो इंदु मां को ढूंढो। जैन धर्म व भारत के सभी समस्त धर्मों की शिरोमणि अहिल्या बाई जैसी बन, ऐसी महान विचारों वाली थी मां इंदु । उनके विचार ‘मेरी मृत्यु पर शोक कोई नहीं मनाएगा’- ऐसी महान आत्मा का आज हम स्मृति उत्सव मना रहे हैं। जब तीर्थंकरों का समोशरण होता है, जब निर्वाण को प्राप्त करते हैं तीर्थंकर तो उस समय उत्सव होता है। ये उसी प्रकार एक ऐसी परिस्थिति है। इंदु मां का जन्म 1936 में फैजाबाद, लखनऊ में हुआ। उनका विवाह मान्यवर श्री अशोक जैन जी से हुआ जो टाइम्स आॅफ इंडिया के मालिक थे। सन् 1999 में उन्हें टाइम्स ग्रुप का चेयरमैन बनाया गया। उसके बाद उन्होंने सामाजिक व धार्मिक संस्थाओं को काफी प्रेरित किया। भगवान मैमोरियल समिति का कार्यभार संभाला। भारत सरकार ने उन्हें पद्मभूषण से सम्मानित किया। यूनाइटेड नेशंस में उन्होंने एक अद्भुत संबोधन दिया। वूमेन एम्पावरमेंट अवार्ड, कारपोरेट गर्वनेंस अवार्ड, कंट्रीब्यूशन टू मीडिया अवार्ड जैसे अनेक अवार्ड हिंदुस्तान की जनता और सरकारों ने दिए। आज जहां हंसी होगी, उन्हें वहीं पाया जाएगा। उन्होंने आने वाली पीढ़ियों को ‘आर्ट आॅफ लिविंग’ के साथ ‘आॅर्ट आॅफ डाइंग’ की राह दिखाई। उन्होंने मृत्यु को उत्सव के रूप में मनाया जाए, ऐसा मार्गदर्शन दिया। इंदु मां ने अपने जीवन में बहुत सुंदरता से उल्लेख किया है कि गुरु ओशो ने कहा था कि जिंदा जा नहीं सकता, मुर्दा बता नहीं सकता। स्वर्ग और नरक की खोज किसने की, इस बात को समझकर उन्होंने हर कार्य पूजा रूप से किया है। उनकी अंतिम इच्छा थी कि उनके जाने के बाद ये खबर किसी को न बताई जाए। वे कहती थी एक दिन उड़ जाऊंगी, आग – मिट्टी- पानी और हवा से लंबे समय तक मिलने के लिये। सभी धर्मों के प्रति उनका असीम आदर था। उनके निवास पर कई धर्मगुरुओं का आना-जाना था, जिसमें आचार्य महाप्रज्ञ जी, आचार्य तुलसी जी, श्री रवि शंकरजी, बाबा रामदेवजी, सद्गुरु महाराज जी व अन्य गुरुओं के प्रति उनकी बावना अद्भुत थी। कई गुरुओं ने उनके निवास पर धर्मचर्चायें की व विश्राम किया, जिनके कारण इंदु मां ने उनके नामों पर अपने घर के अलग-अलग कक्षों में उन कमरों के नाम रखें और आज भी रखें हुए हैं। श्री मां इंदु बहुमुखी विचारों वाली महारूपा थी जिनका भारत के सभी लोगों के प्रति आदर के साथ समता, व्यवहार, अध्यात्म, संस्कृति एवं समाज सेवा का मिश्रण था। हर परिस्थिति में वे साक्षी बनकर रहती थी। कहती थी बाहर नाटक है, सत्संग में वे जिज्ञासु थी। उनकी वाणी मधुर थी। हमेशा कहती थी शिवो हम शिवो हम, कहकर प्रेरित करती थी और खोजती थी सत्य को। श्री मां इंदु का कहना था नई सदी में अहिंसा नया धर्म होगा। ये सपना वही देख सकता है, जो स्वयं को जीवन में त्याग, सेवा, सच्चाई को अपनाता हो और इंदु मां ने इसे खूबी से अपनाया है। आपके जीवन को जीने की कला और जीवन को छोड़ कर जाने में मृत्यु उपरांत मृत्योत्सव आपका व्यक्तित्व व धार्मिक सौंदर्य अतुलनीय रहा है। आप जैसी रत्न, जैन गौरव, दयावान, अनोखी प्रतिभा वाली इंदु मां को नमन है।
निर्मल आत्मा ही समयसार है
आचार्य श्री प्रज्ञ सागरजी महाराज : इंदु मां के आचार्य श्री विद्यानंद जी के साथ अनेक प्रसंग सुने। आचार्य श्री उनकी बहुत प्रशंसा करते थे कि साहु अशोक जी के साथ और उनका साथ देने में इंदुजी का योगदान बहुत प्रशंसनीय रहा करता था। इंदु जी ने समयसार का बहुत अच्छा अध्ययन किया था। आचार्य श्री के साथ समयसार की गाथाओं पर तत्वचर्चाएं चलती थी। जब-जब आचार्य श्री उनके घर जाया करते थे, तो समयसार की, आत्मा की निर्मल आत्मा ही समयसार है- ये लाइन उन्हें बहुत ही पसंद आया करती थी। वो अध्यात्म प्रेमी थी। वैभव, संपदा सबके बीच में रहते हुए भी उन्हें अध्यात्म बहुत प्रसिद्ध था और अध्यात्मिक लोग भी बड़े पसंद थे। बाहर आडंबर उनको पसंद नहीं था। लेकिन अध्यात्म का ज्ञान जहां मिलता था, उनसे बहुत मिलकर के धर्म चर्चाएं किया करती थी। ऐसी मां के समान इंदु, जैन समाज के लिये अशोक साहु जी के बाद भी वे अनेक धार्मिक कार्यों से जुड़ी रही। उन्होंने महावीर मैमोरियल के माध्यम से चारों समाजों दिगंबर और श्वेतांबर समाज को मिलाने का भरपूर प्रयास किया और एक मंच पर लाकर के दोनों समाज के द्वारा भगवान महावीर का उत्सव और महोत्सव आयोजित किये। कुंद कुंद भारती में भी अनेकों बार उनका आना-जाना होता रहा। उन्होंने अपने जीवन काल में जो भी किया वह अपने मन से किया, किसी के दबाव में आकर नहीं किया। उनको यह बिल्कुल निश्चित पता था कि यह शरीर नाशवान, क्षणभंगुर है, आत्मा अजर-अमर है। इसलिये वह कहती थी कि मैं तो न कभी मरी हो, न मरूंगी। मृत्यु एक महोत्सव है, उसका आलिंगन करना चाहिए। धर्म का फल भी मरने के बाद ही मिलती है। सद्बुद्धि मिलना, सद्धर्म मिलना, मोक्ष मिलना क्या जिंदा अवस्था में मिल सकता है। मनुष्य पर्याय से हम इन चीजों की उत्पत्ति करते हैं और उसका फल जाने के बाद होता है। जैसा उन्होंने कहा था कि मैं तो इस आसमान में, इस वायु में, इस अग्नि में सबमें समा जाऊं, इस प्रकार की जो भावना है वह निश्चित रूप से विशालता की भावना है। इन सबमें मेरा प्रेम, मेरा ज्ञान समा जाए, प्रकृति के प्रति मेरा समता भाव हो। हम सबको चाहिये कि हम सब मिलकर उनके बताये गये आदर्श कार्यों को आगे बढ़ायें तथा जिनशासन की प्रभावना करें। जो उन्होंने साहु अशोक जी के साथ मिलकर पूरे विश्व में दिगंबर-श्वेतांबर को एक करके किया है, वहीं काम हम आगे करें। कुछ न कुछ ऐसे अच्छे कार्य करें कि उनकी स्मृतियां सदा बनी रहीं। आज की यह संवेदना सभा में उस आत्मा के प्रति संवेदना होती है जो पवित्र होती है, उज्ज्वल कार्य करती है। जिस आत्मा की सद्गति होती है। तो इंदु जैसा उनका नाम, वह चंद्रमा की तरह सदा चमचमाने वाली, तारों के बीच में दुनिया के बीच में ऐसा उनका आज हम सब लोग मृत्यु महोत्सव मना रहे हैं। इसी को हमारे शास्त्रों में हम लोग सल्लेखना, संथारा कहते हैं। जो अजर और अमरता का स्वाद चख लेता है उसी का समाधिमरण है। ऐसा ही स्वाद इंदु जी ने घर में रहकर अनुभव किया है।
जहां पर भी हिंसा का स्थान हो,
उसमें पैसे का इन्वेस्टमेंट नहीं करना
गुरुदेव श्री नयपद्म सागरजी महाराज : मृत्यु को महोत्सव के रूप में मनाना, यह जीवन की अध्यात्म की बृहद भूमिका है। पुण्यशाली परम श्राविका इंदु जी जैन, उनका अध्यात्म के प्रति लगाव और संतों के उपदेशों को स्वयं के जीवन में जीवंत मनाते हुए अनेक आत्माओं के कल्याण के लिये उसका सम्यक प्रचार और प्रसार करना उनके जीवन का पवित्र लक्ष्य रहा। उनके विभिन्न विषयों पर वार्तालाप, उनके जीवन के भावों से पता चलता है कि उनके जीवन में साधु संतों का पधारना इंगित करता है कि उनका जीवन कितना पवित्र और निर्मल था। जीतो का उद्घाटन उनके माध्यम से हुआ। दिल्ली में उनके घर में दो दिन का निवास हुआ तो परिवार के सभी लोगों से चिंतन हुआ। उनका लक्ष्य था गुरुओं के प्रति हमेशा लगाव रहे। उनके घर में प्रवेश करते ही परमात्मा की प्रतिमा, कल्पसूत्र के सुंदर हस्तलिखित पांडुलिपि के चित्रों से लगता है कि कोई पवित्र श्रावक-श्राविका के घर में प्रवेश हो रहा है। उन्होंने बच्चों को बताया कि पैसे का निवेश ऐसी जगह नहीं करना जहां हिंसा हो। उनका ही विचार था कि एजुकेशन में हमें आगे बढ़ना है। जहां पर भी हिंसा का स्थान हो, उसमें पैसे का इन्वेस्टमेंट नहीं करना। अहिंसा के लिये इतनी जागृति थी। उनका धर्मगुरुओं से कहना था कि आप सभी धर्मगुरुओं को विश्व को अध्यात्मय बनाना है और केवल भारत देश विश्व शांति दे सकता है। वे धर्मप्रिय आत्मा, सम्पत्ति का अहंकार नहीं, आज हिंदुस्तान का नं. वन मीडिया का ग्रुप होने के बावजूद कभी उनके जीवन में, उनके सुपुत्रों के जीवन में ऐसा नहीं कि हम इतने बड़े ग्रुप के मालिक हैं। इस मृत्योत्सव को चिरंजीव बनाने की हम कोशिश करें, हम सभी मिलकर भगवान महावीर के सिद्धांतों को आगे बढ़ायें, अगर हमने अहिंसा को विश्व में फैलाने की कामयाबी हासिल की तो भविष्य में कोरोना जैसी बीमारी नहीं आएगी। तीन चीजों का आज आह्वान करूंगा – 1. परिवार में पुत्र-पुत्रियों के नाम गुरु भगवंतों के मुख से रखें। 2. गुरुदेव कहें, वहीं द्रव्य को सदुपयोग हो, ताकि हिंसा के माध्यम से हम नरक में दुर्गति में न जाएं। 3. भगवान महावीर मैमोरियल को एक चिरंजीव स्मृति बनाना है।
संतों के पास जाकर वो अध्यात्म ज्ञान के
मोतियों को प्राप्त करती थी
उपाध्याय श्री रविंद्र जी मुनि महाराज : इंदु जी जैन एक ऐसे परिवार की बहु बनी, जिस परिवार की बहुत ही गहरी और व्यापक विरासत रही। साहु परिवार धर्म, समाज, संस्कृति, साहित्य और रचनात्मकता का एक अनूठा संगम रहा है, जहां धार्मिक कार्य भी होते थे, समाज के विकास का चिंतन भी था, संस्कृति विकास के बहुत सारे आयाम उस परिवार में स्थापित थे और साहित्य का तो कहना ही क्या। भारतीय ज्ञानपीठ के माध्यम से सैकड़ों रचनात्मक ग्रंथ जो धार्मिक भी हैं और जरनल साहित्य से भी भरे पड़े हैं। वर्तमान में भी हो रहा है। इतने सबकुछ विशेषताओं का एक परिवार उनको विरासत के रूप में मिला। भगवान महावीर के 2600वां जन्म कल्याणक जब वर्ष 2001 में मनाया जा रहा था और राजधानी दिल्ली में कई प्रकार के आयोजन चल रहे थे, उस समिति की चेयरमैन होने के नाते तकरीबन हर कार्यक्रम में, हर मीटिंग वे उपस्थित होती थी और चारों मुख्य परंपराओं को इकट्ठा करके उन्होंने भगवान महावीर के 2600वें जन्म कल्याणक वर्ष को बहुत सुंदर रीति से मनाने का सुंदर कार्यप्रकल्प उन्होंने किया। दिल्ली के एक जैन स्थानक में आ. श्री शिवमुनि महाराज विराजमान थे, उनके दर्शनार्थ इंदु जी पधारी, तो मैंने उन्हें नजदीक से देखा कि उनके मन में धर्म, अध्यात्म, साहित्य, संस्कृति के प्रति बड़ी गहरी जिज्ञासा थी। आ. श्री शिवमुनि जी म. ने अनेक प्रकार के अध्यात्मिक प्रश्नों का समाधान इंदुजी को प्रस्तुत किया। अनेक विशेषताओं का संगम होने का परिणाम है कि भारत सरकार ने उन्हें सन् 2016 में पदमभूषण से सम्मानित किया और भारत के राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने उन्हें यह सम्मान प्रदान किया। अध्यात्म की खोज उनकी प्यास थी और अध्यात्मिक खोज के लिये वे केवल जैन परंपरा के सभी आचार्यों के पास जाती-आती थी, लेकिन जैनेत्तर विद्वानों – आचार्यों, संतों के पास भी जाकर वो अध्यात्म के ज्ञान के मोतियों को प्राप्त किया करती थी। भेद विज्ञान को जानने की कला उनकी थी और हमारे यहां जैन ग्रंथों में बार-बार कहते हैं कि जिसने जीव-अजीव,जड़ और चेतन के भेद को जान लिया, समझो उसने अध्यात्म के मूल को जान लिया। उदाहरण है कि दाल और छिलका – दाल अलग है और छिलका अलग है। ये नश्वर शरीर अलग है और चैतन्य आत्मा अलग है। इस भेद-विज्ञान को इंदु जी ने जाना था, इस बात की झलक पूरे हिंदुस्तान, विदेशों के अंदर उनके अंतिम पत्र के माध्यम से पता चल रही है। उस पत्र को पढ़कर पता चलता है कि जैसे किसी अध्यात्मिक संत की सोच होती है, ऐसी सोच उन्होंने अपने जीवन में विकसित किया था। ऐसे जीव का मरण, मरण नहीं मृत्यु महोत्सव बन जाता है।
जन्म उन्हीं का सार्थक है, जो मरण का नहीं
मुक्ति का द्वार खोल दे, मृत्यु को महोत्सव बना दे
आचार्य श्री लोकेश मुनि: बूंदे लाखों बरसती हैं, किंतु बूंद वहीं मोती बनती है जो स्वापि नक्षत्र में सीप के मुंह में डल जाती है। नक्षत्र अनगिनत होते हैं, लेकिन नक्षत्र वही पूजा जाता है जो कि शिकारी को सिद्धी के द्वार पहुंचायें। जन्म और जीवन लाखों-करोड़ों धारण करते हैं, लेकिन जन्म उन्हीं का सार्थक है जो मरण का नहीं मुक्ति का द्वार खोल दें और मृत्यु को महोत्सव बना दे। सुश्राविका इंदु जी ऐसी ही एक शख्सियत थी। उनके बारे में कहा जा सकता है कि वे सबसे बड़ी मीडिया समूह टाइम्स आॅफ इंडिया ग्रुप की चेयरपर्सन थी, विचारक थी, चिंतक थी, समाजसेविका थी और महिला सशक्तिकरण की आइकोन थी। उनके जीवन में सबसे बड़ी बात थी कि वो आध्यात्किम थी, यही कारण है कि उन्होंने सारे अध्यात्म जगत के महापुरुषों के साथ तारतम्य स्थापित किया था, चाहे जैन हो या जैनेत्तर हो। ये हम उनके द्वारा लिखित इनसाइकलोपीडिया इंडिया सेंट्स एंड सेगेट्स के दो खंड प्रकाशित हुए हैं, उसके अंदर देख सकते हैं। पिछले कई वर्षों से अनेक बार उनके साथ उनके निवास पर आध्यात्मिक संवाद का क्रम रहता था। उस बातचीत में उनका भाव रहता था कि भारत का पूरी दुनिया में गौरव, हमरा महिलाओं का सशक्तिकरण आदि-आदि ऐसे विश्व गुरू के रूप में भारत की भूमिका पर चर्चा हुआ करती थी। मृत्यु को महोत्सव बनाने की बात, जीवन जीने की कला तो अनेक जगह सीखने को मिलती है लेकिन जैन दर्शन में मृत्यु की कला भी सिखाई गई। इसको बहन इंदुजी ने आत्मसार किया। आइये 21वीं शताब्दी में कोरोना काल में जैन जीवन शैली को पूरा विश्व उसे ग्रहण करने को तैयार है, हम सब मिलकर के, प्रेजेंटेशन आॅफ टेकिंग का जमाना है, इस बात को हम आगे बढ़ें, तो बहन इंदुजी को सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
अध्यात्म से जुड़कर निरंतर आत्म कल्याण किया
आचार्य श्री श्रुतसागरजी : महानुभाव धर्मानुरागिनी इंदु जैन के धर्म ध्यान में निरंतर लीन रहती थी और व्यवाहर के कार्यों के साथ धर्म और अध्यात्म में बहुत रुचि रखती थी। निरंतर आत्म कल्याण में अध्यात्म से जुड़कर जैन धर्म की सभ्यता और संस्कृति के बहुत प्रयास किये। आचार्य श्री विद्यानंद जी मुनिराज की बहुत सेवा की। मेरा जब उपाध्याय पद हुआ था तब से निरंतर आती रहीं हैं। इन्होंने नश्वर शरीर को त्याग कर अध्यात्म के मार्ग में आगे बढ़ रही हैं और आगे भी उनकी आत्मा और ऊंचाइयों को प्राप्त करें, यहीं मेरा मंगल आशीर्वाद है।
एक तरफ व्यापार पटल के शीर्ष पर
दूसरी तरफ अध्यात्म को अपने हृदय में समेटे थीं
डॉ. हर्षवर्धन : श्रीमती इंदु जैन जी के स्वर्गवास से हृदय बहुत ही आहत है, मैं अपने को निशब्द महसूस कर रहा हूं। हर जीवन के साथ मृत्यु का अटूट सम्बंध है, यही संसार का शाश्वत नियम एवं ईश्वर की अटल व्यवस्था है। इस दुखद अवसर पर मैं उनके परिवार के साथ हूं, कृपया मेरी संवेदनाएं स्वीकार करें। श्रीमती इंदु जैन जी मात्र एक महिला नहीं थी, अपितु एक संस्था थी। उनका व्यक्तित्व बहुत विराट था। वे सफलता के जितना शीर्ष पर थी, उतना ही उनका जमीन से जुड़ाव था। एक तरफ वह व्यापार पटल के शीर्ष पर थी, दूसरी तरफ अध्यात्म की अथाह गहराई को अपने हृदय में समेटे रहती थी। ऐसा व्यक्तित्व बहुत कम देखने को मिलता है। महिलाओं का किस प्रकार उत्थान हो, समाज किस प्रकार अहिंसक और सदाचारी बने, मानवनीय गुण कैसे उतारे जाएं, इसका प्रेरक संदेश हमें इंदुजी के जीवन से मिलता है। उनके अंदर न केवल ‘सर्वे भवन्तु सुखिन:’ की भावना विद्यमान थी, अपितु अपने व्यवहारिक जीवन में भी उन्होंने इसे धारण किया हुआ था। सादा जीवन उच्च विचारों को उन्होंने पूर्ण रूपेण जिया था। धर्मार्थ कार्यों से उनका गहरा जुड़ाव था। वे धार्मिक लेखन से अपने सुविचारों को मानस पटल तक पहुंचाने का निरंतर प्रयास करती रहीं। वे कला की विशिष्ट संरक्षिका थीं। इंदु जी महिलाओं के अधिकारों की प्रबल समर्थक थीं तथा इसे सुनिश्चित करने के लिये वह सदैव अग्रणी भूमिका में रहीं। उनके लौकिक और धार्मिक कार्यों को देश और समाज ने हृदय से स्वीकार किया था। इसी का सुपरिणाम था कि भारत सरकार ने उन्हें पदमभूषण से सम्मानित किया। उनकी हृदय की विशालता और सबकी मंगल की भावना के कारण समाज ने उन्हें श्री मां से अलंकृत किया था। लौकिक जीवन में इससे बड़ा सम्मान नहीं हो सकता है। उन्होंने अपने कार्यों को इतना परहितकारी और विचारों को इतना पवित्र बना लिया था कि उनके जीवन से मृत्यु का भय तिरोहित हो गया था। इसीलिये उन्होंने अपनी मृत्यु पर शोक नहीं, अपितु इसे उत्सव के रूप में मनाने को कहा था। मेरा मानना है कि ऐसी महान भावनाएं हृदय में तभी पैदा होती हैं, जब किसी का जीवन लौकिक और परमेश्वर के प्रति पूर्ण रूपेण समर्पित हो तथा साथ ही सारी इच्छाओं और महत्वकांक्षाओं से मन मुक्त हो जाए। निश्चित रूप से कह सकता हूं कि वह एक महान आत्मा थीं। हालांकि श्रीमती इंदु जैन जी देह रूप में आज हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनके कार्य और सद्विचार उन्हें सदैव जीवित रखेंगे। उनके कार्य और विचार अनेक लोगों के लिये प्रेरणा और मार्गदर्शक बनेंगे।
कौन कहता है कि मौत आएगी, मैं मर जाऊंगी
मैं तो दरिया हंू, समुद्र में उतर जाऊंगी
पूज्य श्री चिदानंद सरस्वती जी (परमार्थ निकेतन, ऋषिकेश) : णमोकार मंत्र का सुंदर वाचन करते हुए उन्होंने कहा कि कौन कहता है कि मौत आएगी, मैं मर जाऊंगी, मैं तो दरिया हंू, समुद्र में उतर जाऊंगी। क्या जीवन था उनका। कुछ अलग मिट्टी से बनी थीं, हमारी संत इंदु मां। कैसी प्यारी मां, करुणा संवेदना कम्पैशन, ममता की प्रतिमूर्ति थी वो। परमार्थ निकेतन ऋषिकेश में गंगा के पावन तट पर मैं आज अपनी भावभीनी श्रद्धांजलि उस मां को अर्पित करता हूं। वे हमेशा हमारे दिलों में जीवंत रहेंगी, इंदु मां केवल ‘चेयरपर्सन’ ही नहीं बल्कि ‘चियरपर्सन’ भी थी। न जाने कितने दिलों को छुआ, कितनों को बदला, कितनों को ढाला, वे जब भी किसी से मिली, जब भी मिली दिल खोल कर मिली। एक अमिट छाप छोड़ती थी वो अपने अद्भुत व्यवहार से। बाहर से व्यस्त और भीतर से मस्त। बाहर से स्वस्थ और भीतर से भी स्वस्थ। संस्कृति और संस्कार की बात तो जानती थ, पर परिवार की बात भी जानती थी। उन्हें पता था प्यार से दुनिया चलती है, लेकिन संस्कारों से परिवार चलते हैं। इसलिये अध्यात्म और दर्शन के प्रति उनकी बड़ी गहरी रूचि थी। स्वामी प्रज्ञानंद जी से इंदु मां घंटों जिज्ञासा भरे मन से, उनसे शंका समाधान करती थीं, वो क्षण अद्भुत थे, वो जीवन भर करुणामयी ममतामयी मां तो थी, लेकिन वो बड़ी विदूषी, सहज और सरल थीं। वो अपने आप में कुछ अलग थीं, अद्भुत थीं, विलक्षण थीं। जो आया है उसे जाना है, यही शाश्वत नियम भी है। जो अपने लिये जीता है उनका मरण होता है और जो समाज के लिये जीता है उनका स्मरण होता है। और क्या मार सकेगी मौत उसे औरों के लिये जो जीता है, जिसका हर आंसू रामायण, प्रत्येक कर्म ही गीता है, ऐसी मां को श्रद्धांजलि देता हूं और गंगा मां से चूंकि उन्हें प्यार था, एक प्यारा सा रूद्राक्ष का पौधा उनकी स्मृति में आज यहां लगाएंगे।
उनका जीवन ही एक उत्सव था
स्वामी श्री ब्रह्मतेज जी : इंदु माता का जीवन ही एक उत्सव था, हमेशा जिनको भी उनकी स्मृति आती है, स्मरण करते हैं, उनको वही छवि याद आएगी जिस पर एक मुस्कुराहट हो और उत्साह हो हर चीज में। वो जब भी यहां हमारे आश्रम में रहती हैं, वह सत्संग सभा हो, ध्यान सभा हो, वे उत्साह के साथ सभी सेशन को अटेंड करती थी। हम सब लोग राह देखते थे, इंदु मां का। उनके जो प्रश्न होते थे, हमेशा अध्यात्म के, वेदांत के ही होते थे। इतनी जिज्ञासा के साथ में उन्होंने अपने जीवन में सरलता से रहती थी। किसी व्यक्ति के साथ कोई भेदभाव नहीं था, हर समय हमने उन्हें एक ही भाव में पाया। एक प्रसंग याद आता है, वे हमेशा सबको कैसे हंसाती रहती थी। एक बार गुरुदेव कोलकाता में थे, तब वह बहुत बड़ा पंखा ले आई और आकर बोली कि मैं आपकी सबसे बड़ी ‘फैन’ हूं। गुरुदेव बोले हमने तो पंख दिये थे आपको उड़ने के लिये और आप पंखा बनकर आ गर्इं। जब भी ध्यान सभा होती थी, हर मेडिटेशन में वे उत्साह के साथ आती और हमारे लिये वे प्रेरणास्रोत बनती। उनकी जैसी ध्यान के प्रति निष्ठा, वेदांत के प्रति आदर, नमन है ऐसी आत्मा को।
जैन कांफ्रेंस तन-मन-धन से मैमोरियल को
पूर्ण करने का इंदु जी का सपना पूरा करेगी
श्री पारस मोदी, आॅल इंडिया जैन कांफ्रेंस अध्यक्ष: मृत्यु पर शोक नहीं, उत्सव मनाया जाए, ऐसी हमारी उच्चतम भावना रखने वाली श्री मां, टाइम्स ग्रुप की चेयरपर्सन आदरणीय पदमभूषण श्री मां का देवलोकगमन 13 मई 2021 को हुआ। मां के बारे में जितना कहें, उतना कम है। मेरा दुर्भाग्य रहा कि मैं प्रत्यक्ष रूप से उनका आशीर्वाद नहीं ले सका, लेकिन श्री आॅल इंडिया स्थानकवासी जैन कांफ्रेंस एवं अन्य संस्थाओं द्वारा भगवान महावीर का स्मारक दिल्ली में बनाने के लिये एक समिति बनी भगवान महावीर मैमोरियल समिति। उस समिति में जैन कांफ्रेंस का भी बहुत बड़ा भाग रहा है और जैन कांफ्रेंस के प्रतिनिधि के रूप में संचालक महोदय राजीव जैन, जैन कांफ्रेंस के उपाध्यक्ष सुभाष जी ओसवाल वहां पर प्रतिनिधि करते हैं, उनके जरिये कई बार हमारी चर्चा हुई। उनके मुखारबिंद से मां श्री के बारे में बहुत कुछ सुनने और जानने के लिये मिला और ऐसे समय में सभी गुरु भगवंत, महानुभाव, महात्मन सभी जन मां को संवेदनाएं देने के लिये जूम पर उपस्थित हुए। मैं श्री आॅल इंडिया श्वेतांबर स्थानकवासी जैन कांफ्रेंस परिवार की ओर से श्री मां के चरणों में कोटिश: – कोटिश: वंदन नमन करता हूं तथा साहू परिवार एवं सभी संस्थाओं के वे आधार स्तंभ थे, ऐसी कई संस्थाएं जिनके नेतृत्व में चल रही थी, ऐसी मां को हम भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। कांफ्रेंस तन-मन-धन से मैमोरियल को पूर्ण करने का, जो इंदु मां का सपना रहा है, उसे पूरा करेगी।
समय रहते जो कार्य हो जाए वही समाज और जिनशासन के लिये प्रेरणादायक
श्री सुभाष जैन ओसवाल : मेरे जीवन का बहुत बड़ा सौभाग्य रहा कि ममता, वात्सल्य, स्नेह, प्रेम, प्यार की अद्भुत प्रतिभा इंदु मां का एक बार आशीर्वाद और मंगल भावनाएं मिलीं। मैंने बहुत निकट से उनके जीवन को देखा और उनके जीवन का जो लक्ष्य था कि मृत्यु पर विजय पाना, वो लक्ष्य, कहा कि मेरे मरने के बाद कोई शोक नहीं होना चाहिए, उत्सव मनाएं। तो मैं समझता हूं आज हमारे सब साथियों ने मिलकर ये उत्सव नहीं महा उत्सव मना रहे हैं, जिसमें इंदु मां को अपनी भावनाएं, अपनी श्रद्धा को नमन कर रहे हैं कि ऐसी मां का वरहस्त हमारे सिर से चला गया, लेकिन जो सपना उन्होंने सपना संजोया, जो सपने लिये, टाइम्स नाम भी बहुत सोच समझ कर रखा गया होगा। समयसार जो जैन आगम का बहुत बड़ा शास्त्र है, उसमें आता है कि समय का उपयोग कैसे किया जाए और ये इंदु मां हमें प्रेरणा देती थी कि समय रहते जो कार्य हो जाए वही समाज के लिये और जिनशासन के लिये प्रेरणादायक बनेगा। एक बार शाम का समय था, पांच-साढ़े पांच बजे उनके घर गये। श्री निर्मल कुमारजी सेठी, सतीश जी, राजीव जी, अनिलजी और मनोज जी मेरे साथ थे। मैंने कहा मीटिंग आज जल्दी समाप्त कर लीजिए जिससे भोजन घर जाकर कर सकूं। उन्होंने कहा कि भोजन पहले आप यहां करेंगे, फिर मैं बात शुरू करूंगी। ऐसी ममतामयी मां का जाना हमारे लिये, सबके लिये एक प्रेरणादायक, प्रेरणास्रोत बने।
इंदु मां वात्सल्य, प्रेम, सहयोग, संस्कार, सद्भावना की एक परिभाषा थीं
श्रीमती किरण चोपड़ा (पंजाब केसरी, चेयरपर्सन) : आज अगर मैं मां इंदु जैन या दीदी इंदु जैन के प्रति कुछ शब्द नहीं बोलूंगी, तो नारी सशक्तिकरण के लिये मेरी तरफ से गलत होगा। मैं अपने बड़े भाव और मन से आपको बताना चाहूंगी कि इंदु मां वात्सल्य, प्रेम, सहयोग, संस्कार, सद्भावना की एक परिभाषा थीं क्योंकि आप सब जानते हैं कि मैं जैन धर्म में बहुत विश्वास करती हूं। मेरा उनके साथ अनेक मंच शेयर करने का अवसर प्राप्त होता था। मेरे पति अश्विनी जी बताया करते थे कि मैं उनके आफिस जाता हूं तो घर का बना हुआ खाना खाता हूं। उनमें एक भावना थी कि दूसरों को अपनेपन का अहसास कराना, वह महिलाओं के लिये एक प्रेरणा थी, विशेषकर मेरे लिए। जब अश्विनी जी मुझे छोड़ कर गये, तो मेरे मन में बहुत भाव थे, मैं बहुत विचलित थी, एक साल तो मेरे आंसू ही नहीं रुक रहे थे, तब मुझे बहुत से लोगों ने कहा कि आप इंदु मां की तरफ देखों, उन्होंने भी अपने दोनों बेटों के साथ टाइम्स ग्रुप संभाला है, आप भी अपने तीनों बेटों के साथ पंजाब केसरी संभालों। वाकई वे महिलाओं के लिये एक प्रेरणा थीं। आज जहां भी हम खुशी देखेंगे, मुस्कुराहट देखेंगे, वहां आप इंदु जी को पाएंगें। मैं आज जीवन में उन्हें देखकर ही प्रेरणा लेकर आगे बढ़ रही हूं। सारे जैन समाज के लिये प्रेरणा हैं। परोपकार करो, अहिंसा में विश्वास करो, यही जैन धर्म है। जैन धर्म, धर्म नहीं है एक जीवन जीने की पद्धति है। इंदु जी को याद करते हुए उनकी समिति को साधुवाद देती हूं।
वटवृक्ष की भांति सबको अपनी छत्रछाया देती थीं
श्री पुनीत जैन : टाइम्स प्रकाशन की गौरवशाली मुखिया आदरणीय इंदु जी से करीब 40 वर्षों से भी अधिक समय से जुड़े रहने का सौभाग्य मुझे मिला। उनके स्नेह और मार्गदर्शन की छत्रछाया में मुझे बहुत कुछ मिला। जो भी हूं, जो भी उपलब्धियां हैं, वह सब उन्हीं की देन हैं, उनके द्वारा मिले इस प्रेम का मैं हृदय से आभारी हूं। कम्पनी के हर छोटे से छोटे कार्यकर्ता को उन पर गर्व था, वह एक वटवृक्ष की भांति सबको अपनी छत्रछाया देती, अपने मृदुल व्यवहार से सामने बैठकर बात करते समय व्यक्ति को सहज बनाकर उसकी बात को समझना उनकी अद्भुत क्षमता थीं। इंदु जी हमेशा कहती थी कि हमें ऐसे प्रयत्न करने चाहिए जिससे बच्चों और युवाओं को हर क्षेत्र में मजबूत बनाने के लिये और अधिक अवसर मिलें। वे कहती थीं कि जिनके हाथ में भविष्य का निर्माण है, उनकी नींव को मजबूत बनाओ। इसी अवधारणा को आधार बनाकर, इंदु जी के प्रोत्साहन पर ही दिल्ली एनसीआर में एक बैनेट टीम की स्थापना की गई थी, जिसमें आज हजारों छात्र-छात्राएं जीवन की अनेक विधाओं में अंतर्राष्ट्रीय स्तर की शिक्षा प्राप्त कर रही हैं। उन्होंने राष्ट्रव्यापी स्तर पर टाइम्स ग्रुप का एक महत्वकांक्षी प्रोजेक्ट भी शुरू किया था, न्यूज पेपर इन एजुकेशन। स्कूल की किताबों से बाहर निकलकर जीवन को देखने का एक इसमें नया ही अलग अंदाज था। मेरा सौभाग्य था कि मैं इस गौरवशाली कार्य में प्रारंभ से ही जुड़कर कुछ सार्थक कर पाया। इंदु जी को अपने जीवन में हर तरह का सुख और समृद्धि प्राप्त हुई थी फिर भी आपने अपने जीवन के प्रति ऐसा अनासक्ति का भाव था कि उन्होंने तो कह दिया कि मेरी मृत्यु पर शोक नहीं करना, उत्सव मनाना और जहां तुम खिल-खिलाओगे वहां इंदु को पाओगे। ऐसे समृद्धशाली जीवन के होते हुए भी विरक्ति का ऐसा भाव, तो भगवान महावीर और भगवान बुद्ध जैसी पुण्यात्माओं में हुआ है, वो भी राजपाट छोड़कर वैराग्य लेकर वन को चले गये थे और इंदु जी ने न सिर्फ अपनी सुख संपत्ति बल्कि शरीर को भी विरक्ति भाव से विरक्त करते हुए कहा था कि मेरी आत्मा को तो परमात्मा से सुखद मिलन हो जाएगा और उसके बाद आत्माविहीन शरीर का जैसा समझो, वैसा संस्कार कर देना। इंदु जी के जीवन जीने की कला और जीवन छोड़ जाने में मृत्यु की कला विलक्षण थी। इस तथ्य को वही समझ पाता है, जो इस महान आत्मा के साथ अपना समय बिता पाया था। आपकी यादें हमारे बीच हमेशा जीवंत रहेंगी।
उनकी शिक्षाएं अनूठी थीं
योगाचार्य सुरक्षित गोस्वामी : मुझे सौभाग्य प्राप्त हुआ था श्री मां को नजदीकी से जानने का, उनसे सीखने का और उनके आभामंडल को अनुभव करने का। असल में देखा जाए तो जीवन तो सभी जीते हैं, जीवन जीना हमारे हाथ में है, हम उसको कैसे भी जी सकते हैं। लेकिन इंदु मां ने जो जीवन जिया है, वह एक आदर्श जीवन है। उन्होंने जीवन को सबसे उंचे स्तर पर जिया है। अपनी चेतना को अनुभव करते हुए साक्षी रहकर जिया है। उनके जीवन का पल-पल उल्लास, उमंग और संतोष से भरा था। उनकी ममता भरी मुस्कान और सबके लिये प्रेम बड़ा अनूठा था। मैं तो देखता था कि उनके उठने-बैठने, बोलने-चालने, खाने-पीने सारे कार्यों में ज्ञान था, आनंद था। यदि जीवन का आधार हम देखें तो जीवन के तीन बड़ी जरूरी चीजें होती हैं जिसमें आहार, नींद और अध्यात्म। यदि इंदु मां की दिनचर्या को देखें तो उनकी दिनचर्या में जो आहार था, छोटे-छोटे आहार के माध्यम से छोटी-छोटी कटोरी में जो एक भोजन उनके सामने व्यंजन उनके सामने आते थे, वह एक उत्सव था, उन्होंने आहार को उत्सव बना दिया था। नींद भी देखें तो उनकी नींद छोटी-छोटी सहज निंद्रा, एक सहज समाधि के रूप में उन्होंने नींद को भी एक उत्सव बना दिया और अध्यात्म तो रोम-रोम में समाया हुआ था। ऐसा कोई भी स्तर नहीं था जीवन का, जहां पर उन्होंने अपने उच्च स्तर पर उसको न जिया हो। अध्यात्म की गहराइयों में वो उतरी और अध्यात्म को जिया है, अध्यात्म को बोला नहीं है। अध्यात्म को जीना कठिन होता है, अध्यात्म को बोल जाना सरल होता है। जो असली में जीना जानता है, जीने की कला जानता है, वहीं मरना जानता है, वहीं मरने की कला जानता है और जो मरने की कला जान गया वह मुक्त है। जो मरने से डरा है, वो मुक्त कैसे हो सकता है? वो मुझसे कहा करती कि मैं मरने से नहीं डरती, मैं तो उसे आलिंगन कर लेना चाहती हूं, मैं तो मौत का उत्सव करना चाहती हूं, क्योंकि वह जान गई थी अपने भीतर रहते हुए उस परम सत्य को चूंकि उन्होंने उस परम तत्व को लगातार अनुभव किया था। अपने संपर्क में आने वाले सभी व्यक्तियों के दिलों को उन्होंने छुआ है क्योंकि वो मधुरता और ममता से भरी थीं। उनके साथ बिताये गये जो पल हैं, उनका स्मरण करके मैं अपने आप को गौरवान्वित महसूस करता हूं। मैंने श्री मां से अध्यात्म की गहराईयों को पेश करने की जो उनका मेरे ऊपर जो एक शिक्षा थी, वो बहुत ही अनूठी थी। मैं रोज उनसे मिलने जाता और उनसे सीखता कि किस तरह जीवन को सबसे उंचे स्तर पर जी लिया जाए। तो श्री मां आज हमारे सबके भीतर उस दिव्यता के रूप में प्रकट हैं, उनकी जो भाव थे यदि हम उसी भाव को आगे लेकर चलें और उसी भाव के साथ अपने जीवन को जियें तो आज भी हमारे साथ लगातार जीवित हैं।
क्या बेहतर हो सकता है, बड़ी सहजता से बताती थीं
ए.पी. ख्याति, संपादक : आज हम इंदु माता का स्मृति उत्सव मनाने के लिये एकत्रित हुए हैं। देखिये जब किसी की स्मृति की बात आती है तो अक्सर लोग उसे एक उदास और शक के तौर पर देखते हैं, एक बिछुड़ने के अहसास की तरह देखते हैं और इस अनुभव के साथ देखते हैं कि जो व्यक्ति हमसे दूर चला गया है, उससे अब हमारा सम्पर्क नहीं हो पाएगा। लेकिन जो विवेकसंवत आस्था है जो जिस बात को इंदु माता ने बार-बार कही भी और अपने पत्र में लिखा भी और हम लोग जो मानते हैं कि किसी की स्मृति को संजोने का सबसे सही तरीका होना चाहिए, वह यही होना चाहिए कि हम उसकी स्मृतियों को ऐसे अनुभव के तौर पर देखें, जो हमारे जीवन में कुछ ऐसी चीजें जोड़कर गया जिन्हें हम बहुत ही कीमती और बहुत ही अपने उपयोगी पाते हैं। इंदु मां टाइम्स ग्रुप की चेयरमैन थीं और इस नाते वो भारत की सबसे प्रभावशाली थीं, लेकिन उनके साथ जो हमारा सम्बंध रहा, जो हमारा अनुभव उस लंबे सम्बंध का रहा है, वहां एक आश्चर्य तौर पर ऐसी यादों से भरा हुआ है, जिन्हें मैं बहुत ही ममतामयी, करुणामयी और बहुत ही एक सहृदय मानवी स्पर्श के तौर पर याद करता हूं। इंदु माता नवभारत टाइम्स की बहुत रेगुलर पाठक थीं, हमेशा वो नवभारत टाइम्स के संवाद के पृष्ठ पर खासतौर पर जो हमारा धार्मिक कॉलम होता है, जिसका नाम पहले ‘कल्पवृक्ष’ था और हम ‘स्पीकिंग ट्री’ भी कहते हैं, वो उसको पढ़ा करती थीं और नवभारत टाइम्स से जुड़ी जो चीज पंसद आती थी, उसका वह जिक्र करती थीं, जैसे उन्हें हमारे यहां की इलस्ट्रेशन बहुत पसंद हैं। इसी तरह उन्होंने हमें बार-बार यह भी बताया कि उन्हें क्या चीजें अच्छी लगती हैं और क्या चीजें और बहतर हो सकती थीं, जैसे कल्पवृक्ष के कॉलम को देखकर वह कहती थी कि उसमें बहुत आनंद नहीं आ रहा है, उसमें सरसता होनी चाहिए। तो जो एहसास था एक सरसता का, वह बहुत ही आत्मीय अंदाज से करती थीं। वे आदेश नहीं देती थी, आलोचना नहीं करती थीं, वो बहुत ही सहज अंदाज में बात करती थीं। क्या बेहतर हो सकता है, ये भी बताती थीं। ये तरीका उनका, अंदाज उनका, प्यार उनका हमारे साथ हमेशा बना रहा। इसके अलावा हमने जब भी पाया है वह यह है कि जो भी कोई उनके संपर्क में आया, तो वे उन यादों को बहुत ही बेशकीमती समझते हैं।
बिजनेसमैन, मीडिया पर्सनेलिटी की तरह नहीं , मां की तरह काम कराती थीं
श्री राजीव दोवल (टाइम्स फाउंडेशन): मैंने 10 साल श्रीमती इंदु जैन के साथ बहुत नजदीक रहकर काम किया। मैंने उनका वह स्वरूप देखा जो बिजनेसमैन का नहीं है और न ही मीडिया पर्सनेलिटी का है। वह बहुत ही सॉफ्टहार्ट थी, वो हमेशा से यह चाहती थी कि स्प्रीच्युल आॅर्गनाइजेशंस की मदद की जाए और उनके साथ काम किया जाए। वो मानती थी कि अगर स्प्रीच्युलेटी किसी तरह वर्क प्लेस में चली जाए, तो मालिक ज्यादा मोरलिस्टिक, ओनेस्ट होगा, लक्ष्य की तरफ जाएगा और ज्यादा अच्छा काम करेगा। उनका पूरा जीवन स्प्रीच्युलेटी के आसपास ही घूमता रहा। बड़े उद्योगपति, नेता आदि जो उनसे मिलने का समय मांगते थे, उन्हें छोड़कर वे छोटे एनजीओ से मिलना की इच्छुक रहती थी। मेरे लिये वे मां ज्यादा थी, बहुत अच्छी दोस्त थी। उन्होंने मुझे कभी स्टाफ नहीं समझा। मुझे ऐसा लगता था कि मैं अपनी मां के साथ काम कर रहा हूं। उनके प्रश्न इस तरह के होते थे कि परिवार में सब ठीक चल रहा है। उन्होंने मुझे टोंका कि ज्यादा देर कम्प्यूटर पर न बैठो, ठीक से बैठो, सीधा बैठो, पानी पी लो आदि, ये सब बातें के मां ही कह सकती है।
टाइम्स आॅफ इंडिया उनके नेतृत्व में कार्मर्शियल आॅगेनाइजेशन नहीं, सामाजिक आंदोलन बन गया
श्री मंगन प्रभात लोढा, मुबंई (लोढा डेवलपर्स, भाजपा मुंबई के अध्यक्ष) : मां इंदु जैन जी अपने जीवन में सुगंध बिखेरती रही और आज इस अनुमोदना सभा के बाद भी सालों साल तर हम सब उनकी अनुभूति लेते रहेंगे, उनके मार्ग पर चलते रहेंगे। उनको केवल जैन समाज के नेतृत्व के अंदर बांधना, उनके साथ अन्याय हो जाएगा। वो सारे भारत की एक ऐसी सामाजिक केन्द्र बन गई थी कि लोग उनको सुनकर, उनको देखकर, उनको पढ़कर प्रेरणा लेते रहते थे। मुंबई उनका कार्यक्षेत्र रहा, कई बार उनसे मिलने का मौका मिला। वो बहुत स्पष्टता से अपने विचार रखती थी, बहुत जल्दी निर्णय लेती थी। उनके प्रति मां का आदर रखने वाले लोग हजारों की संख्या में भारत के अंदर हैं। एक बार दिल्ली में मनोज जैन के साथ कुछ कामों से 10-15 दिन साथ में रहने का मौका मिला, तो जब-जब उनसे बात करते थे, तो उनके मन में अपने माता-पिता से ज्यादा इंदु जी के वो संस्मरण सुनाया करते थे। समझ में आता है कि वो कितना प्रभाव छोड़कर हम सब पर छोड़ कर गई हैं। मैं मुंबई की जनता की तरफ से, अपने परिवार की ओर से उनको श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं और ईश्वर से प्रार्थना करता हूं कि जो टाइम्स आॅफ इंडिया उनके नेतृत्व के कारण एक कार्मर्शियल आॅगेनाइजेशन नहीं, एक सामाजिक आंदोलन बन गया। उसकी हर खबर को अपनी खबर समझता था, शायद उसमें इंदु जी के बहुत बड़ा संस्कार का प्रभाव उनके परिवार पर, टाइम्स ग्रुप चलाने वाले लोगों पर था।
अनेकांतवाद को अपने जीवन में उतारा
श्री कन्हैयालालजी : इंदु जैन जी के ऊपर भगवान की बड़ी कृपा रही, उनको इतना बढ़िया तन दिया, उससे ज्यादा बढ़िया उनको मन दिया। साधना से उन्होंने अपने मन को इतना साधा, इतनी वैभवशाली परिवार के अंदर होने के बावजूद भी उन्होंने हमेशा पैसा को कैसे बचाना चाहिए, यह हम सबको सीखना चाहिए। एशिया की सबसे धनी महिला थी, टाइम्स आॅफ इंडिया वर्ल्ड का मीडिया में दूसरे पायदान पर है। उनका दुनिया की प्रथम 27 धनी महिलाओं में नाम आता है, उसके बावजूद उनका इतनी सहज रह पाना, उन्होंने वास्तव में जैन धर्म में मरण को जो समझा है, उससे हमें सीख लेनी चाहिए। जहां भी उन्हें ज्ञान, अध्यात्म मिलता था, उसे पंथवाद में नहीं बांधा। उन्होंने अनेकांतवाद को अपने जीवन में उतारा और संजोया। जीने की कला तो सभी जानते हैं, लेकिन इंदु जैन जी ने अपनी मृत्यु को भी मित्र बनाया। जब भी आचार्य महाप्रज्ञ या तुलसी जी दिल्ली आते थे, उनका बहुत सहयोग रहा। मैं उनका पूरे परिवार की ओर से, तेरापंथ परिवार की ओर से श्रद्धांजलि देता हूं।
भ. महावीर मैमोरियल समिति के दिवंगत सदस्यों को श्रद्धांजलि
श्री रवि जैन : भगवान महावीर के अहिंसा संदेश को पूरी भव्यता से दर्शाने के उद्देश्य को लेकर चले भगवान महावीर मैमोरियल समिति के कुछ प्रतिष्ठित व्यक्ति दुर्भाग्यवश आज हमारे बीच नहीं रहे। जैन समाज के भीष्म पितामह, समिति के सशक्त स्तंभ श्री निर्मल कुमार सेठी जी एवं श्री किशोर भाई सिंघवी जो इस संस्था के वाइज प्रेजिडेंट थे, पिछले दिनों हमारा साथ छोड़ गये। समिति के संस्थापक श्री सुरेश जैन अमेरिनो हमारे बीच नहीं रहे। समिति के सदस्य संजय जैन, एडवोकेट एल.सी. जैन भी जो हमारी संस्था से जुड़े थे उनका भी हाल में निधन हो गया। समिति उनके प्रति श्रद्धांजलि अर्पित करती है।
ऐसी आत्मा अपनी भव्यता और चांदनी के साथ
आने वाली पीढ़ियों को प्रकाशित करती रहेंंगी
श्री मणीन्द्र जैन : चन्दा सूरज तारे जुगुनू सबकी अपनी हस्ती है, जिसमें जितना नीर बुगदली उतनी देर बरसती है। इंदुजी जो चंदा का पर्याय हैं, उनकी जो हस्ती है वो कुछ दिनों के लिये नहीं है, जब तक चंदा रहेगा दुनिया के अंदर ऐसी आत्मा अपनी भव्यता और चांदनी के साथ हम सब लोगों को और आने वाली पीढ़ियों को प्रकाशित करती रहेंंगी। हम सभी संचित पुण्य से धरती पर आते हैं और अपनी-अपनी क्षमता के अनुसार कार्य करके धरती से चले जाते हैं। मैंने दो सीरियल बनायें, उनकी शूटिंग के लिये बाम्बे गया हुआ था, टाइम्स हाउस में उनसे मिलने गया तो उन्होंने पूरी स्टोरी पूछी, मैंने उनसे कहा कि हमारे सीरियल के लिये एडवर्टाइजमेंट जरूर दीजिएगा। उन्होंने कहा कि हमारे यहां दूसरे लोग देते हैं, मैं कैसे दे दूंगी, यह कहकर वह मुस्कराई। वहां से मैं निकला तो आफिस से फोन आया कि मणि जी एकाउंट नं. भेज दीजिए, एक चैक भेजना है। मैं उनकी मुस्कुराहट को उस समय समझ पाया। वे कितनी समर्पित थी अच्छे कार्य करने के लिये। मैंने आज अच्छे कपड़े भी इसलिये पहने हैं, क्योंकि मैं उनकी मृत्यु महोत्सव में आया है।
आत्मा अमृत और शरीर नश्वर है
श्री सुशील जैन एडवोकेट : आत्मा का अमृत और शरीर की नश्वरता जैन धर्म के मूलभूत सिद्धांतों में से एक है। जैन धर्म में मृत्यु अर्थ नहीं है, अपितु मात्र देह परिवर्तन है। श्रीमती इंदु जी इसी सिद्धांत को आत्मसार किया, इसीलिये वे चाहती थी कि उनकी मृत्यु का शोक नहीं, महोत्सव मनाया जाए। उन्होंने अपने जीवन को पूर्ण रूप से पूरी संतुष्टि से जिया। अपने नाम इंदु यानि चंद्रमा की तरह उन्होंने अपने परिवार को इस समाज को अपने सटीक स्वभाव और जिंदादिली से प्रकाशित किया। भावपूर्ण श्रद्धांजलि के साथ मैं कामना करता हूं कि उनकी अनश्वर आत्मा शीघ्र मोक्ष को प्राप्त हो।
कुछ ऐसे होते हैं, जो इतिहास बनाया करते हैं
श्री नरेश आनन्द जैन :
ऐ समय नदी की धार कि
जिसमें सब बह जाया करते हैं,
ऐ समय प्रबल तू पान अटल
पर्वत झुक जाया करते हैं
अक्सर दुनिया के लोग समय में
चक्कर खाया करते हैं
पर कुछ ऐसे होते हैं जो
इतिहास बनाया करते हैं।
ऐसा ही इतिहास बनाने वाली थी श्री मां इंदु जैन जिनका हम स्मृति उत्सव मना रहे हैं। इस महान आत्मा ने मृत्यु को उत्सव में परिवर्तित कर दिया। अपने वास्तविक रूप में स्वयं को देखने की कला को विकसित कर लिया था। आपने भगवान महावीर के अनेकांतवाद के सिद्धांत को अपने जीवन में पूर्ण रूप से चरितार्थ किया। आपने ज्ञान प्राप्त करने के लिये किसी भी मठ या परंपरा तक अपने आपको सीमित नहीं किया, जहां से मिला वह सहज भाव से ग्रहण किया। आपके निवास स्थान पर जाने का प्रसंग प्राय: रहता था। आपका वात्सल्य, सहज भाव, दूरदर्शिता, आत्मीयता मन को मोह लेती थी।
आत्मा के नजदीक जाना उनकी रुचि थी
स्वामी श्री रवीन्द्र कीर्ति जी : श्रीमती इंदु जैन का एक बार गणिनी ज्ञानमती माताजी के सान्निध्य में दिल्ली के राजा बाजार मंदिर में आना हुआ था। आपने एक घंटे तक बैठ कर भगवान मैमोरियल और अध्यात्म के संदर्भ में बहुत अच्छी चर्चा की। पूज्य गणिनी ज्ञानमती माताजी से आप बहुत प्रभावित रहती थीं क्योंकि साहू अशोक जी और इंदु जी कई बार पूज्य माताजी के पास आते रहे हैं, हस्तिनापुर भी आए हैं और श्रीमती इंदु जी का यह बहुत बड़ा सौभाग्य था कि उन्हें ऐसे घराने में साहू जी के परिवार में पुत्रवधु बनकर आने का सौभाग्य मिला। इस परिवार ने पूरे दिगंबर जैन समाज की अनेक संस्थाओं का नेतृत्व किया – साहू शांति प्रसाद जी श्रीमती रमारानी जैन जिन्होंने भगवान महावीर के 2500वें निर्वाण महोत्सव में बहुत अहम भूमिका निभाई थी और उसके बाद तीर्थक्षेत्र कमेटी के अध्यक्ष रहे। उनके पुत्र साहु अशोक जी ने तीर्थक्षेत्र कमेटी के अध्यक्ष रहकर तीर्थों के जीर्णोद्धार में अपनी अहम भूमिका का निर्वाह किया था। इस परिवार में इंदु जी का आना हुआ, टाइम्स आॅफ इंडिया की चेयरपर्सन बनकर उन्होंने जो समाज, देश की सेवा की है, समयसार की गाथाओं पर उन्होंने माताजी से चर्चाएं की। वे निश्चय में रहती थी। निश्चय का मतलब होता है आत्मा के नजदीक जाना। उनकी रुचि आत्मा के प्रति थी।
सबकी मुस्कानों में तुम मुस्काना,
श्री मां इंदु तुम हर पल मुस्काना..
श्री आदीश जैन सीए : जहां तुम खिलखिलाओगे, वहीं तुम इंदु को पाओगे। सम्पूर्ण मानवता के लिये ऐसी खुशहाली और समृद्धि की कामना करने वाली मां इंदु का स्मरण करते हुए, उनका गुणानुवाद करते हुए अपना गीत प्रस्तुत किया –
जिंदगी मौत है, मौत है जिंदगी,
सुख में भी, दु:ख में भी खिलती है जिंदगी।
मिथ्या है जो बाहर है, सच तो तेरे अंदर है
ये सच जिसने जाना है, उसका ये जमाना है।
श्री मां इंदु तुमने सिखलाया ये तराना,
सबकी मुस्कानों में तुम मुस्काना।
श्री मां इंदु तुम हर पल मुस्काना
विराट व्यक्तित्व
श्री सुखराज सेठिया : वात्सल्य की प्रतिमूर्ति बहुअयामी, व्यक्तित्व की धनी, मां इंदु जैन हमारे बीच नहीं रहीं। मैं अपने आपको सौभाग्यशाली मानता हूं, अनेक बार उनके निवास स्थान पर उनका सान्निध्य प्राप्त हुआ और उनका आभा मंडल जो बाह्य व्यक्तित्व है, भव्य ललाट और सबको प्रभावित करने वाली मुस्कान उसके साथ-साथ जो उनका भीतरी व्यक्तित्व था उतना ही पवित्र, स्नेह, आत्मीयता और सबके लिये प्रेरणा स्रोत, ऐसी पवित्र आत्मा इंदु जी उनका विराट व्यक्तित्व जैन समाज को अनेक वर्षों तक सफल नेतृत्व प्रदान किया और वो विशेष रूप से युवकों को बहुत महत्व देती थी। भगवान मैमोरिलय के बारे में हमेशा ही वह चिंतित रही कि किस तरह से यह भव्य स्मारक बनें। अध्यात्म के प्रति उनकी गहरी रुचि थी। इतनी बड़ी शख्सियत होते हुए भी संतों को वह आदर देती थी। ऐसी भव्य आत्मा के प्रति मैं अपने परिवार की ओर से, तेरापंथ समाज की ओर से, संपूर्ण युवा शक्ति के ओर से श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं।
अहिंसा, संयम और तप -ये तीन गुण ईश्वरीय गुण हैं
श्री सत्यनारायण जटिया (पूर्व केन्द्रीय मंत्री) : मां इंदु जी के बारे में सबने अपने भावों को व्यक्त किया। यह जो संयम है, उस संयम की पराकाष्ठा वास्तव में अहिंसा, संयम और तप ये तीन गुण ईश्वरीय गुण हैं। हम सब ईश्वर के अंश हैं, लेकिन इन गुणों को उजागर करने का जब-जब अवसर मिले, इन पर जो उतरे खरा, यह साधना का पथ है, यह श्रेष्ठता है। मृत्यु तो उत्सव है ही। मृत्यु के द्वार पर जब चलकर हम पहुंचे या मृत्यु ही आ जाए तो भयभीत नहीं होना चाहिए। ऐसा ही इंदु जी ने किया।
इंदु जी के जीवन के दो मूल मंत्र अनेकांतवाद – सम्यक् चारित्र
श्री अनिल जैन (अहिंसा टाइम्स) : मोक्षगामी मां इंदु जैन जी की स्मृति सभा में उपस्थित सभी साधुगणों, परिवार के सभी सदस्यों को और सभी अतिथियों को नमन, वंदन करते हुए कहा कि आज हम अतिविशिष्ट व्यक्तित्व को याद कर रहे हैं, जिनकी स्मृति सभा आयोजित किया है, उन्होंने जीते जी ही जान लिया था कि इतनी बड़ी सोच, इस विशाल संसार में, जहां हमारी इच्छायें कभी खत्म ही नहीं होती। उस संसार में एक व्यक्ति ने अपनी इच्छायें समाप्त करते हुए अपनी मृत्यु के बारे में इतनी असाधारण बात लिखी। उनके ऊपर सरस्वती जी, लक्ष्मी जी, दुर्गा जी की असीम कृपा थी। उन्होंने सभी तरह से संपूर्णता का जीवन जिया और इसके बावजूद उनके चेहरे पर एक विशालता, सौम्य भाव, एक सरलता मिलती थी। कभी ऐसा ही नहीं लगा कि हम कभी बड़ी पर्सनेलिटी से मिल रहे हैं। उन्होंने अपने व्यवहार से सब के ऊपर राज किया। अहिंसा फाउंडेशन के लिये मुझे उन्होंने आशीर्वाद भी दिया। उनके जीवन के दो मूल मंत्र थे – एक अनेकांतवाद और दूसरा सम्यक् चारित्र। वो हर बात को समझना चाहती थी, विभिन्न विचारों को समझना चाहती थी और सभी परिस्थितियों में उनके चेहरे पर एक ही तरह की मुस्कान रहती थी, शायद यही कारण था कि उन्होंने इतने विशाल उद्योग जगत में परिवार के साथ, समाज के साथ सुंदर सामंजस्य बनाकर रखा और फिर बाद में अपने जीवन में अध्यात्मिकता की ओर अग्रसर होती चली गई।
खुदी से जो जुदा हो गया,
खुदा की कसम
वो खुदा हो गया
श्री राजकुमार जैन ओसवाल (फरीदाबाद, अध्यक्ष बल्लभ स्मारक) : जन्म और मरण दो पहलू हैं जिंदगी के। भगवान महावीर को जब इंद्रों के इंद्र ने कहा कि प्रभु एक क्षण के लिये अगर टाइम को आगे पीछे कर लिया जाए, तो आपका जीवन बच सकता है। तो परमात्मा ने यही कहा था कि यह काल का चक्र है, अनादि काल से चला आ रहा है, ये न कभी ऐसा हुआ है, न कभी होगा। जिसने आना है, उसने जाना तो है ही। सबसे बड़ी विडंबना तब होती है, जब हमारे से कोई बहुत उच्च कोटि का, मानवता का मसीहा हमसे छिन जाता है और इस धरती में जो कि कलयुग का वक्त है, उसमें एक ऐसी भव्य आत्मा का चला जाना, धरती पर कमी आ जाती है। मां इंदु को दो-चार बार सुनने का मौका मिला। बहुत ब्रिलियंट थी, बहुत क्लीयर थी। एक शायर ने कहा है खुदी से जो जुदा हो गया, खुदा की कसम वो खुदा हो गया। अपने आप को उन्होंने बहुत ही स्प्रीचुअल उच्च लेवल पर चली गई थी। उन्होंने देश, राष्ट्र समाज के लिये बहुत कुछ किया, बड़ी प्रेरणा दी और ऐसी शख्सियतें बहुत सदियों बाद आती हैं। मां इंदु के लिये मैं इतना ही कहूंगा –
जिंदगी ऐसी बना जिंदा रहे दिलशाद तू
जब न हो दुनिया में दुनिया को आये याद तू।
योगी जीवन जिया है
बी.के. शिवानी : आज हम सब एक महान दिव्य आत्मा को याद करने, शुक्रिया करने, उनसे प्रेरणायें लेने के लिये इकट्ठे हुए हैं। हमारी आदरणीय बड़ी बहन कहें, श्रीमती इंदु जैन जी। घर गृहस्थ में रहते, काम कारोबार संभालते लेकिन योगी जीवन जिया है आपने और यह उदाहरण सिर्फ देश को ही नहीं विश्व को जरूरत है कि योगी जीवन हाई वाइब्रेशनल लाइफ स्टाइल जहां अध्यात्म, ध्यान, योग आपके जीवन का हिस्सा रहा है। सेवा भाव आपके जीवन का लक्ष्य रहा। आपने जीवन ऐसा जिया कि आपने जीवन के हर श्वास में बहुत दुआयें कमाई हैं। दुआयें कमाने की इच्छा नहीं थी, लेकिन कर्म ही ऐसे किये कि दुआयें तो मिलनी ही थी, मिलती थी और हमेशा मिलती रहेंगी। और हम सब को पता है कि जो अपने जीवन की यात्रा में दुआयें कमाते हैं, श्रेष्ठ कर्म करते हैं, परमात्मा से अपना संबंध समीपता बनाकर रखते हैं, योगी बनकर जीते हैं, उनके संस्कार शुद्ध सात्विक स्वच्छ संस्कार होते हैं और ऐसा जीवन जीकर जब आत्मा अपनी इस देह का त्याग कर आगे जाती है तो हम सब निश्चिंत हैं, क्योंकि हमें पता है कि आगे की यात्रा उनकी वो भी विश्व की सेवा को ही समर्पित होगी। दुनिया में लोग कहते हैं क्या लेकर गये अपने साथ, खाली हाथ लेकर आये थे, खाली हाथ लेकर चले गये। लेकिन हम सबको पता है न कोई खाली हाथ आता है और न ही खाली हाथ जाता है। सबुकछ जो दिखाई देता है यहां तक कि यह शरीर, परिवार और सारा नाम, मान, शान वस्तु वैभव ये सब तो न हम लाते हैं और न अपने साथ लेकर जाते हैं।
लेकिन आत्मा अपनी श्रेष्ठ कर्म और संस्कार लेकर आई थी और श्रेष्ठ कर्म और संस्कारों के कारण ही तो इस जीवन में भी हर संस्कार सेवा के लिये था, कल्याण के लिये था, स्व उन्नति के लिये था, आत्मिक उन्नति के लिये था तो फिर इस जीवन में भी उन संस्कारों को और निखारा, कर्मों को श्रेष्ठ बनाया और जैसे ही वो क्षण आया कि इस पुराने देह को त्यागना था, पंछी जैसे उड़ जाता था, वैसे उड़ गये। लेकिन उड़ कर कहां गये। आत्मा अपना नया शरीर लेती है और नये शरीर में यहां से अपने साथ क्या लेकर जाती है? संस्कार और कर्म। दोनों ही बहुत श्रेष्ठ थे तो जब श्रेष्ठ संस्कार और कर्म और सबकी दुआएं, प्यार और सम्मान लेकर जब आत्मा यहां से गई है तो ये तो निश्ति है कि उनका नया शरीर, नया परिवार और उनका नया भाग्य अति श्रेष्ठ होगा ही होगा। हम सब तो उनको सिर्फ शुक्रिया, शक्रिया और शुक्रिया कर सकते हैं, क्योंकि जो आत्मा ऐसे संस्कार लेकर जीवन जीती है, वह अनेकों पर ऐसा प्रभाव डालती है कि हम उस प्रभाव को नहीं भूल पाते, उन गुणों को नहीं भूल पाते और उस आत्मा को कभी नहीं भूल पाएंगे, लेकिन याद करेंगे दर्द के साथ नहीं, दुख के साथ नहीं, शुक्रिया और दुआओं के साथ। और सबसे बड़ी सौगात हम उनको ये देंगे कि हम उनके जीवन जीने के तरीके से हम शिक्षायें लेंगे कि अध्यात्म को, योग को, मेडिटेशन को अपने जीवन का हिस्सा बनाएंगे और सेवा को अपने जीवन का लक्ष्य बनाएंगे।
उच्च विचार थे, विचारों से समृद्ध थी
आर्यिका श्री स्वस्ति भूषण माताजी : ज्ञात हुआ कि साहु शांति प्रसाद जी के परिवार से श्रीमती इंदु जैन का आकस्मिक निधन हो गया। उनके विचार पर ही बड़ा अच्छा लगा, उच्च विचार थे, विचारों से समृद्ध थी और जितने भी इस परिवार ने इनके पूर्वजों ने जो इस संस्कृति के संरक्षण के लिये वृक्ष लगाये हुए थे, उनको भी बहुत अच्छी तरह से संचालित कर रही थी। इस परिवार के द्वारा भारतीय संस्कृति को संरक्षण देने के लिये भारतीय ज्ञानपीठ को जो स्थापना की गई वह आज बरकरार बहुत अच्छी तरह से आगे बढ़ रहा है और संरक्षण दे रहा है। इनके परिवार की तरफ से और भी बड़े-बड़े कार्य हुए हैं जिनके माध्यम से सभी लोगों को विशेष लाभ प्राप्त होता है। इनके पुत्र और पौत्र सभी लोगों को मंगल आशीर्वाद है, वे भी जहाजपुर ओं, इस अतिशय क्षेत्र के दर्शन करें और आपके परिवार ने जो यह पेड़ लगाया है उसको संरक्षित करें, बहुत अच्छी तरह से गंभीरता के साथ उसे आगे बढ़ायें जिससे सभी को लाभ मिल सकें। इंदु जी जहां भी हों, उनको आशीर्वाद है।
ज्ञानी आत्मा की बात करता है
तो अज्ञानी शरीर के लिये रोता है
महासाध्वी प्रीति सुधा जी महाराज : सन् 1974 में भ. महावीर का 2500 वां निर्वाण महोत्सव जब मनाया गया था, उस समय हमारे परम पूज्य सुशील मुनि जी म.सा. जिन्होंने विश्व धर्म सम्मेलन का बहुत बड़ा आयोजन किया था और उस समय साहु सांति प्रसाद जी को वहां बुलाया था और उनसे बातचीत हुई थी। मां इंदु जैन ने जाते-जाते कहा था कि मेरी शोक सभा मत मनाना, मृत्यु उत्सव मनाना। जो ज्ञानी होता है वो शरीर की नहीं, आत्मा की बात करता है। अज्ञानी शरीर के लिये रोता है और शोक सभा करता है। इंदु जैन सच्ची ज्ञानी थी। उन्होंने पहले ही कह दिया कि मेरी शोक सभा नहीं मनाना। क्योंकि आत्मा का कभी मरण होता नहीं है, वह तो अपनी जगह बदलती है। जाते-जाते मां इंदु जैन ने मैं आत्मा में पूर्ण विश्वास रखती हूं और मेरा पूर्ण विश्वास आत्मा की शक्ति पर है, इसके लिये उन्होंने कह दिया मेरा मृत्यु उत्सव मनाना।
ऊंची पसंद ऊंचे लोगों की, ऊंचा काम सदा ही भाया
माध्यम को भी ऊंचा रखा, ऊंचा धार्मिक ज्ञान सुहाया
ख्याल ऊंचे, हिम्मत ऊंचा, समस्त सारा कार्य निभाया
ऐसी इंदु मां की स्मृति में सबने अपना शीष झुकाया।
बहन अर्चना जैन के मंगल गीत से सभा का समापन हुआ –
जय जय महावीरा, जय जय महावीरा तारण हारा… त्रिशला नंदन,
भय दुख भंजन वर्द्धमान है नाम तुम्हारा।