26 मार्च 2023/ चैत्र शुक्ल पंचमी /चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी/ सुदीप कुमार जैन
जैन-अध्यात्म-जगत् के वयोवृद्ध एवं बहुआयामी-विशेषज्ञताओं के धनी विद्वद्वर्य डॉ. हुकमचंद जी भारिल्ल, जयपुर का आज रात्रि में शयनावस्था में बिना किसी तरह की आकुलता-विशेष के देह-परिवर्तन हो गया है। शारीरिक-स्वास्थ्य कमजोर था ही, परन्तु उसमें किसी विशेष-बीमारी की जगह वयोवृद्ध-अवस्था ही मुख्य-कारण था। वे अंतिम-दिन तक यथासंभव सक्रिय रहे और संस्था के कार्यों में मार्गदर्शन देते रहे। वे स्वाध्याय, मनन-चिंतन, लेखन, मार्गदर्शन आदि में संलग्न रहे। उन्होंने टोडरमल स्मारक नामक संस्था को तो अकल्पनीय-ऊँचाइयों तक पहुँचाया ही था, अनेकों संस्थानों के वे सूत्रधार रहे। उनके निर्देशन एवं शिक्षण से मुमुक्षु-जगत् के सहस्राधिक-शास्त्री-विद्वान् बने। अनेकों प्रतिष्ठाचार्य, विधानाचार्य, प्रबन्धन-कौशल के धनी विद्वान् तो बने ही, चारों अनुयोगों की अलग-अलग विधाओं के विद्वान् भी अपनी-अपनी रुचि व योग्यता के अनुसार उनके मार्गदर्शन में बने और समाज में देश-विदेश में धर्मप्रचार आदि कार्यों में संलग्न रहे।
श्रेष्ठिवर्य विद्वान् पं. नेमीचंद जी पाटनी आगरावालों के साथ उनकी युति अनुपम रही। जहाँ पाटनी जी एक उच्चस्तरीय उद्योगपति होने के कारण प्रबन्धन-कौशल के विशेषज्ञ थे, तो समाज की नब्ज़ के मर्मज्ञ डॉ. भारिल्ल जी ने आध्यात्मिक सत्पुरुष श्री कानजी स्वामी के पावन-सान्निध्य में जैन-आध्यात्मिक-तत्त्वज्ञान की रुचि एवं प्रशिक्षण प्राप्त किया और अपने बुद्धिकौशल के बल पर उन्होंने ऐसे प्रयोग किये कि बहुत कम समय में ही वे उनके विश्वस्त विद्वानों में आ गये।
पं. टोडरमल जी पर पीएच. डी. करने के बाद तो श्रेष्ठिवर्य पूरणचंद जी गोदिका, जो कि पं. टोडरमल जी की ही वंश-परम्परा में थे और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक सफल रत्न-व्यापारी एवं उद्योगपति थे, ने पं. टोडरमल जी की स्मृति में जयपुर में पं. टोडरमल स्मारक भवन की स्थापना की और उसके संचालन के लिये बहुआयामी-योग्यता के धनी डॉ. भारिल्ल जी को चुना। एक ओर आध्यात्मिक सत्पुरुष श्री कानजी स्वामी का स्नेहिल-आशीष और दूसरी-ओर श्रेष्ठिवर्य पूरणचंद जी गोदिका का वरद-हस्त, इस युति के साथ डॉ. भारिल्ल जी की प्रतिभा और कौशल ने जैनसमाज में एक नये युग का सूत्रपात कर दिया।
उन्होंने आध्यात्मिक सत्पुरुष श्री कानजी स्वामी के आशीर्वाद एवं अपने कौशल के प्रयोग से सम्पूर्ण विश्व में फैली हुई जैनसमाज का व्यापक-संपर्कसूत्र स्थापित किया और स्वयं सर्वत्र भ्रमण करते हुये जैनधर्म एवं तत्त्वज्ञान का प्रचार-प्रसार करते रहे। उन्होंने इस दिशा में अनेकों युगान्तरकारी-प्रतिमान स्थापित किये।
आज उनकी अनुपस्थिति न केवल मुमुक्षु-जगत् में, बल्कि सम्पूर्ण जैनसमाज में एक अपूरणीय-रिक्तता का सृजन कर रही है। विद्वान् अनेक हैं, समाजसेवी भी अनेकों हैं। परन्तु डॉ. भारिल्ल अपने आप में अनूठे थे, उनकी विशेषताओं की पूर्ति कोई अन्य नहीं कर सकता है। वे अनुपम व्यक्तित्व के धनी थे।
दिवंगत-भव्यात्मा को सुगतिगमन बोधिलाभ एवं शीघ्र निर्वाणप्राप्ति की मंगलभावना के साथ श्रद्धासुमन समर्पित कर रहा हूँ।