50 वर्ष के संयमी मुनिराज श्री हेमचन्द्र विजय जी का हृदय गति रुकने से 89 वर्ष की उम्र में समाधि पूर्वक कालधर्म

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राजकोट में 19 मई 2021 को प्रातः 4.30 पर गुरु वल्लभ समुदाय के योग निष्ठ 50 वर्ष के संयमी मुनिराज श्री हेमचन्द्र विजय जी का हृदय गति रुकने से 89 वर्ष की उम्र में समाधि पूर्वक कालधर्म हो गया।

किसी पीड़ा के अभाव में उनका पंडित मरण हुआ। अंत तक पूर्ण जाग्रति की अवस्था थी।

अतीत 15 वर्ष से उनकी सांसारिक पुत्री साध्वी कमलप्रभा जी अपने शिष्य परिवार के साथ उनकी सेवा में थी। उन्होंने सेवा का अद्भुत उदाहरण प्रस्तुत किया है। श्री हेमचन्द्र विजय जी के सांसारिक सम्बन्ध में पुत्र तथा शिष्य आचार्य श्री यशोभद्र सूरीश्वर जी ने अपने पिता गुरु की 30 वर्ष तक साथ रहकर सेवा की। उन्हीं की परवरिश के कारण आचार्य यशोभद्र सूरि जी अनेक विषयों के पारंगत बने तथा समाज एवं धर्म के क्षेत्र में यश प्रतिष्ठा के साथ आचार्य पद पर आरूढ़ हुए।

श्री हेमचन्द्र विजय जी की सांसारिक सम्बन्ध में पुत्री साध्वी कीर्ति प्रभा जी ने शिष्य परिवार के साथ उनकी 10 वर्ष तक सेवा की।

जंडियाला गुरु (अमृतसर – पंजाब ) में आपका जन्म सन 1932 में आशा देवी बाबूराम जी दुग्गड़ के घर हुआ। 1949 में विवाह महिमा वंती ( साध्वी श्री गुण प्रभा श्री जी – सुपुत्री श्री रला राम जी मुनहानी गुजरांवाला ) से रोपड़ में हुआ। आपके भाई गुज्जर मल जी तथा बहन कमला वन्ती थी।

आपने सपरिवार लुधियाना से 500 लोगों की उपस्थिति में दीक्षा के लिए महाभिनिष्क्रमण किया तब लुधियाना के जन जन की आँखों में अश्रु धारा बह रही थी। वो अद्भुत दृश्य कोई भूल नहीं सकता।

आपकी दीक्षा मुनि श्री पुण्य विजय जी के वरद हस्त से वालकेश्वर मुंबई में हुई जिसमे आपके सुपुत्र को यशोभद्र विजय के नाम से आपका शिष्य घोषित किया किया।

आप गुरु वल्लभ के शिष्य महातपस्वी पन्यास श्री बलवंत विजय जी का शिष्य घोषित किया गया। दीक्षा दिन वैशाख सुदी 13 संवत 2027 दिनांक 8.5. 1971
आपने 50 वर्ष के दीक्षा पर्याय में शासन के बहुत कार्य किये। आपने अंत समय तक स्वाध्याय किया। इसी आत्म रमणता के कारण वे एक अच्छे साधक थे। आपका दीक्षित परिवार जिन शासन की खूब प्रभावना कर रहा है।