हरप्पन सभ्यता में वृषभ (बैल) के मुख के आकार के योगी का जो मुद्रण मिला है जिनके चारों तरफ हिंसक पशु है वे जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव (अरिहंत परमात्मा) ही है। क्योंकि ऋषभदेव का चिन्ह बैल है। अरिहंत परमात्मा को जिन भी कहा जाता है जिसका मतलब होता है विजेता।
चारों हिंसक पशु आत्मा के दोषों (कषायो) का प्रतीक है जैसे
हाथी-मान का,
हिरण-कस्तूरी के पीछे भागने के कारण माया का,
गेंडा- लोभ का और
टाइगर-क्रोध का प्रतिक है।
कुछ लोग इस सील को पशुपति शिव से जोड़ रहे हैं लेकिन पुराणों में शिवजी डॉमेस्टिक एनिमल्स से घिरे रहते थे। वाइल्ड(हिंसक) एनिमल्स से नहीं ।
मान,माया,लोभ,क्रोध के प्रतीक ये चार हिंसक पशु है।
और मध्य में बैठे वृषभ के मुखाकार के योगी पुरुष प्रथम तीर्थंकर, अरिहंत परमात्मा ऋषभदेव है।
हरप्पन सभ्यता जो 4500 साल से भी ज्यादा प्राचीन है वह मूलतः जैन सभ्यता थी।