किले की तरह प्रतीत -अद्वितीय शासनोदय तीर्थ – मुगल ,अवधि, मराठा और ब्रिटिश अवधि, साथ ही भारत की स्वतंत्रता के बाद की छवियां

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17 अगस्त 2022/ भाद्रपद कृष्ण षष्ठी/चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी/
बड़ा मंदिर ( हनुमानताल मन्दिर) जबलपुर में एक ऐतिहासिक जैन मंदिर है,, जो हनुमानताल तालाब के किनारे पर है, जो जबलपुर का मुख्य केंद्र हैं .मुनिपुंगव सुधासागर जी द्वारा इसका नाम शासनोदय तीर्थ वर्ष २०२२ में रखा गया हैं
इतिहास
भट्टारक सोनागिरि के बलात्कर गण मूल संघ के हरिचंद्रभूषण ने 1834, 1839, और 1840 में प्रतिष्ठान आयोजित किए। सोनागिरी के भट्टारकों ने पनागर के पास के जैन केंद्र का भी प्रशासन किया, जहां नरेंद्रभूषण ने 1797 में प्रतिमाएं स्थापित कीं, सुरेंद्रभूषण ने 1822 में प्रतिष्ठा और 1838 में आचार्यभूषण की स्थापना की थी.

मंदिर जी में कलचुरी अवधि (10-12 वीं शताब्दी) से कई छवियां हैं, जिसमें भगवान आदिनाथ की एक अलंकृत रूप से तैयार की गई छवि भी शामिल है। इसमें कई मुगल भी हैं। अवधि, मराठा अवधि और ब्रिटिश अवधि की छवियां, साथ ही भारत की स्वतंत्रता के बाद स्थापित की गई छवियां थी।

मंदिर जी का दौरा आचार्य शांतिसागर ने 1928 में किया था, जो कई शताब्दियों के बाद इस क्षेत्र के पहले दिगंबर जैन आचार्य थे। वह कटनी में चातुर्मास्य के बाद पहुंचे और दमोह के लिए रवाना हुए। बाद में उन्होंने टिप्पणी की कि मंदिर एक किले की तरह बनाया गया था.
स्थापत्य
हनुमानताल बड़ा जैन मंदिर, जबलपुर, झील के किनारे का प्रवेश द्वार मंदिर कई शिखर के साथ एक किले की तरह प्रतीत होता है। मूल रूप से 1686 ई. में निर्मित, 19वीं सदी में इसका जीर्णोद्धार किया गया था, मंदिर में 22 मंदिर (वेदी) हैं, जो इसे भारत का सबसे बड़ा स्वतंत्र जैन मंदिर बनाता है। चित्र कलचुरी काल से लेकर आधुनिक समय तक के हैं। कांच के काम के साथ मुख्य कमरा 1886 में भोलानाथ सिंघई द्वारा बनाया गया था, जिन्होंने पहले दो हितकारिणी सभा स्कूलों को शुरू करने में भी मदद की थी। इस कमरे में जैन देवी की एकमात्र छवि थी , पद्मावती, जिसकी अभी भी मध्य भारत में पूजा की जाती है। यह जबलपुर में मुख्य जैन मंदिर है, भगवान महावीर के जन्मदिन पर वार्षिक जैन जुलूस यहां से शुरू होता है और बड़ा फुहारा में समाप्त होता है। दैनिक शास्त्र-सभा और शाम की कक्षाएं आयोजित की जाती हैं।

वर्ष २०११ में मुनिपुंगव सुधासागर जी महाराज ने भगवन आदिनाथ की मूर्ति जो मंदिर जी में द्वारपाल जैसी विराजित थी उन्होंने उस मूर्ति का स्थान परिवर्तन कर उसे मंदिर जी के मुख्य द्वार के सामने तालाब की ओर मुख कर विराजित करवाया और अखंड भक्तामर पाठ का नित्य पाठ किया जा रहा हैं जिससे मंदिर में श्रीवृद्धि होकर वर्तमान में भव्यता को प्राप्त हो चूका हैं जो अद्वितीय हैं .आज रोज हज़ारों की संख्या में दर्शनार्थ श्रदालु आते हैं और अपनी मनोकामना पूरी करते हैं .

आज यह मंदिर जी ने अतिशय क्षेत्र का विशाल रूप ले लिया हैं .नीचे के खंड में सर्वप्रथम पार्श्वनाथ की पद्मासन विशाल मूर्ति हैं ,इसके बाद अतिशयकारी आदिनाथ भगवन की मूर्ति जो परिकर सहित अद्वितीय हैं जिसके दर्शन करने में सम्मोहन होता हैं .मनोकामना पूरी होती हैं ,जिसमे नित्य पूजन अभिषेक भव्यता के साथ होती हैं और रात्रि में भकामर आरती संगीतमय होती हैं जो आनंदकारी होती हैं .

इसके बाद ६ बेदियों में अनेकों तीर्थंकरों की भव्य मूर्तियां विराजित हैं जिनमे नित्य पूजन प्रक्षालन होता हैं .
ऊपरी मंजिल में वृद्जनो के लिए लिफ्ट लगी हैं ,बाकी सामान्य सीढ़ियों से जाने में कोई परेशानी नहीं होती .ऊपर की माला में पहुंचते ही आपको अति मनोज्ञ संगमरमर के पाषाण की २४ बीसी के सदर्शन के साथ अनेको बेदियों में सुसज्जित मूर्तियों के दर्शन का मन आल्हादित होता हैं .इसके साथ अत्यंत आकर्षक और मनमोहक भगवन मुनिसुव्रत नाथ की मूर्ति चित्ताकर्षक हैं .

इस समय शासनोदय तीर्थ किसी तीर्थ ,अतिशय क्षेत्र से कम नहीं लगता और ऐसा लगता वास्तव में इतनी सुन्दर कलात्मक मूर्त्यों का दर्शन अद्भुत हैं .
मुनि पुंगव सुधासागर जी की प्रेरणा और उनके आशीर्वाद का ही फल हैं जो दिन दूना रात चौगना श्री वृद्धि कर रहा हैं और हो रही हैं .यह विश्व की अनमोल धरोहर हैं .
विद्यावाचस्पति डॉक्टर अरविन्द प्रेमचंद जैन संरक्षक शाकाहार परिषद् A भोपाल 462026 मोबाइल ०९४२५००६७५३