पूज्य गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी जो कि वर्तमान में जैन जगत में एक सूर्य के समान गगन में दैदीप्यमान हैं। आज ऐसी पूज्य गणिनी श्री ज्ञानमती माताजी का 70वाँ आर्यिका दीक्षा दिवस मनाया जा रहा है। पूज्य माताजी ने आज से 69 वर्ष पूर्व चारित्रचक्रवर्ती आचार्यश्री शांतिसागर जी महाराज की अक्षुण्ण परम्परा के प्रथम पट्टाचार्य आचार्य श्री वीरसागर जी महाराज के करकमलों से राजस्थान के माधोराजपुरा (जयपुर) से दीक्षा प्राप्त कर आर्यिका ज्ञानमती को प्राप्त किया एवं नाम के अनुसार सारे विश्व में एक विराट साहित्य की शृंखला का सृजन किया, जो कि भूतो न भविष्यति। ऐसी ज्ञानमती माताजी जिन्होंने अपनी आचार्य परम्परा के सभी आचार्यों का दर्शन किया, जो कि बहुत बड़ी बात है। लगभग आज वर्तमान में 1600 साधु-साध्वियाँ विराजमान हैं, उन सबमें सबसे प्राचीन दीक्षित पूज्य ज्ञानमती माताजी हैं, ऐसी माताजी के चरणों में हम सभी शत-शत वंदन करते हैं।
आज सारे देश में पूर्णता के नाम पर गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी का नाम लिया जाता है, जिन्होंने एक नहीं, दो नहीं अनेक ग्रंथों का सृजन अपनी लेखनी के द्वारा करके समाज को एक बड़ा उपहार दिया है। पूज्य माताजी की प्रेरणा से तीर्थों का जीर्णोद्धार एवं विकास किया गया है। आइए हम जानें उनके बारे में-
जन्म, वैराग्य और दीक्षा
22 अक्टूबर सन् 1934, शरद पूर्णिमा के दिन टिकैत नगर ग्राम (जि. बाराबंकी, उ.प्र.) के श्रेष्ठी श्री छोटेलाल जैन की धर्मपत्नी श्रीमती मोहिनी देवी के दांपत्य जीवन के प्रथम पुष्प के रूप में ‘मैना’ का जन्म परिवार में नवीन खुशियाँ लेकर आया था। माँ को दहेज में प्राप्त ‘पद्मनंदिपंचविंशतिका’ ग्रन्थ के नियमित स्वाध्याय एवं पूर्वजन्म से प्राप्त दृढ़ वैराग्य संस्कारों के बल पर मात्र 18 वर्ष की अल्प आयु में ही शरद पूर्णिमा के दिन मैना ने आचार्यरत्न श्री देशभूषण जी महाराज से सन् 1952 में आजन्म ब्रह्मचर्य व्रतरूप सप्तम् प्रतिमा एवं गृहत्याग के नियमों को धारण कर लिया। उसी दिन से इस कन्या के जीवन में 24 घंटे में एक बार भोजन करने के नियम का भी प्रारंभीकरण हो गया।
नारी जीवन की चरमोत्कर्ष अवस्था आर्यिका दीक्षा की कामना को अपनी हर साँस में संजोये ब्र. मैना सन् 1953 में आचार्य श्री देशभूषण जी से ही चैत्र कृष्णा एकम् को श्री महावीरजी अतिशय क्षेत्र में ‘क्षुल्लिका वीरमती’ के रूप में दीक्षित हो गईं। सन् 1955 में चारित्र चक्रवर्ती आचार्य श्री शांतिसागर जी महाराज की समाधि के समय कुंथलगिरी पर एक माह तक प्राप्त उनके सान्निध्य एवं आज्ञा द्वारा ‘क्षुल्लिका वीरमती’ ने आचार्य श्री के प्रथम पट्टाचार्य शिष्य-वीरसागर जी महाराज से सन् 1956 में ‘वैशाख कृष्णा दूज’ को माधोराजपुरा (जयपुर-राज.) में आर्यिका दीक्षा धारण करके ‘आर्यिका ज्ञानमती’ नाम प्राप्त किया।
विराट साहित्य का सृजन-भगवान महावीर के पश्चात् 2600 वर्ष के इतिहास में किसी भी साध्वी ने इतने विपुल साहित्य का सृजन नहीं किया। लेकिन दिव्यशक्ति से ओत-प्रोत गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी जिन्हें माँ सरस्वती का वरदान प्राप्त है, उन्होंने एक नहीं, दो नहीं लगभग विभिन्न विधाओं में लगभग 500 ग्रंथों का लेखन करके समाज को दे दिया। लेखनी आज भी बंद नहीं है। निरंतर लेखन का कार्य प्रारंभ है। पूज्य माताजी के द्वारा समयसार, नियमसार इत्यादि की हिन्दी-संस्कृत टीकाएँ, जैनभारती, ज्ञानामृत, कातंत्र व्याकरण, त्रिलोक भास्कर, प्रवचन निर्देशिका इत्यादि स्वाध्याय ग्रंथ, प्रतिज्ञा, संस्कार, भक्ति, आदिब्रह्मा, आटे का मुर्गा, जीवनदान इत्यादि जैन उपन्यास, द्रव्यसंग्रह-रत्नकरण्ड श्रावकाचार इत्यादि के हिन्दी पद्यानुवाद व अर्थ, बाल विकास, बालभारती, नारी आलोक आदि का अध्ययन किसी को भी वर्तमान में उपलब्ध जैन वाङ्गमय की विविध विधाओं का विस्तृत ज्ञान कराने में सक्षम है।
धन्य हैं ऐसी महान प्रतिभावान सरस्वती माता!
दो बार डी.लिट् की उपाधि से अलंकृत-किसी महाविद्यालय, विश्वविद्यालय आदि में पारम्परिक डिग्रियों को प्राप्त किये बिना मात्र स्वयं के धार्मिक अध्ययन के बल पर विदुषी माताजी ने अध्ययन, अध्यापन, साहित्य निर्माण की जिन ऊँचाइयों को स्पर्श किया, उस अगाध विद्वत्ता के सम्मान हेतु डॉ. राम मनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय, फैजाबाद द्वारा 05 फरवरी 1995 को डी.लिट्. की मानद् उपाधि से पूज्य माताजी को सम्मानित करके स्वयं को गौरवान्वित अनुभव किया गया तथा दिगम्बर जैन साधु-साध्वी परम्परा में पूज्य माताजी यह उपाधि प्राप्त करने वाली प्रथम व्यक्तित्व बन गईं। पुन: इसके उपरांत 08 अप्रैल 2012 को पूज्य माताजी के 57वें आर्यिका दीक्षा दिवस के अवसर पर तीर्थंकर महावीर विश्वविद्यालय, मुरादाबाद में विश्वविद्यालय का प्रथम विशेष दीक्षांत समारोह आयोजित करके विश्वविद्यालय द्वारा पूज्य माताजी के करकमलों डी. लिट्. की मानद उपाधि प्रदान की गई।
विभिन्न आचार्यों एवं सामाजिक संस्थाओं द्वारा पूज्य माताजी को न्याय प्रभाकर, आर्यिकारत्न, आर्यिकाशिरोमणि, गणिनीप्रमुख, वात्सल्यमूर्ति, तीर्थोद्धारिका, युगप्रवर्तिका, चारित्रचन्द्रिका, राष्ट्रगौरव, वाग्देवी इत्यादि अनेक उपाधियों से अलंकृत किया गया है, किन्तु पूज्य माताजी इन सभी उपाधियों से निस्पृह होकर अपनी आत्मसाधना को प्रमुखता देते हुए निर्दोष आर्यिका चर्या में निमग्न रहने का ही अपना मुख्य लक्ष्य रखती हैं।
पूज्य माताजी की प्रेरणा से विकसित तीर्थ-पूज्य माताजी की पावन प्रेरणा एवं आशीर्वाद से विकसित अनेक तीर्थ हैं। जिनमें तीर्थंकर भगवन्तों की कल्याणक भूमियाँ मुख्य हैं।
हस्तिनापुर तीर्थ – जम्बूद्वीप
सर्वप्रथम चरण में हस्तिनापुर, जो कि दिल्ली के निकट में है। मेरठ जिले में स्थित है। हस्तिनापुर तीर्थ पर जबसे माताजी के चरण पड़े, उसकी काया ही पलट गई एवं अनेक राजनेताओं का आवागमन एवं माताजी जैसी दिव्यशक्ति का आगमन जैसे तीर्थ के लिए वरदान बन गया और दिन-दूनी रात चौगुनी तीर्थ प्रगति को प्राप्त होने लग गया। विश्व की अद्वितीय रचना जम्बूद्वीप का निर्माण एवं स्वर्णिम तेरहद्वीप रचना का निर्माण व अद्वितीय तीन लोक रचना का निर्माण प्रथम बार हस्तिनापुर में हुआ एवं तीर्थंकर शांति-कुंथु-अरहनाथ की 31-31 फुट ऊँची प्रतिमा विराजमान की गई एवं अनेक विकास के कार्य यहाँ पर किये गये।
प्रयाग तीर्थ
जैन आगम अनुसार वर्तमान चौबीसी के प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव ने सर्वप्रथम यहीं प्रयाग तीर्थ पर जैनेश्वरी दीक्षा ग्रहण की थी एवं भगवान ने इसी पुण्य भूमि पर किया। यहीं पर भगवान ऋषभदेव का प्रथम समवसरण भी आया था एवं प्रयाग में भगवान ऋषभदेव की तपस्थली का निर्माण कार्य किया गया, जिसमें मुख्यरूप से कैलाशपर्वत की रचना की गई, जिसमें त्रिकाल चौबीसी विराजमान की गई एवं वटवृक्ष के नीचे भगवान ऋषभदेव की ध्यानस्थ प्रतिमा को विराजमान किया गया एवं भगवान ऋषभदेव समवसरण जिनालय का निर्माण किया गया। आज इलाहाबाद के प्रमुख पर्यटन क्षेत्रों में इसकी गिनती होती है एवं इलाहाबाद एवं सारे देश से यात्रियों का तांता लगा रहता है।
कुंडलपुर
नंद्यावर्त महल तीर्थ, कुण्डलपुर जो कि एक मत के अनुसार जैनधर्म के 24वें तीर्थंकर एवं वर्तमान शासन नायक भगवान महावीर की जन्मभूमि है। पूज्य माताजी की दृष्टि इस ओर गई कि यहाँ पर 1100 वर्ष पुराना प्राचीन मंदिर तीर्थ पर स्थित है, लेकिन तीर्थ का विकास शून्य है। माताजी ने तीर्थ पर चरण रखे एवं उस दिन से इस तीर्थ की कीर्ति सारे देश के अंदर दिग्दिगंत हो गई। आज आने वाले प्रत्येक यात्री को कुण्डलपुर स्वर्ग की तरह प्रतीत होता है। कुण्डलपुर तीर्थ पर नंद्यावर्त महल बनाकर भगवान के जीवन से संबंधित विभिन्न पहलुओं को दशार्या गया है एवं बीचोंबीच भगवान महावीर का विशाल जिनालय निर्मित किया गया है, जिसमें भगवान की श्वेतवर्णी अवगाहना प्रमाण प्रतिमा को विराजमान किया गया है। वहीं दूसरी ओर त्रिकाल चौबीसी के 72 भगवन्तों का विशाल जिनालय निर्मित किया गया है। गगनचुंबी तीन शिखर से निर्मित यह तीर्थ अपनी छठा पूरे नालंदा जिले में बिखेरे हुए है। यहाँ आने वाला प्रत्येक नागरिक सुखद अनुभूति को लेकर लौटता है। नालंदा ही नहीं अपितु बिहार के प्रमुख पर्यटन को बढ़ावा देता है नंद्यावर्त महल तीर्थ। यहाँ पर यात्रियों के ठहरने के लिए 40 कमरे एवं सुन्दर भोजनशाला निर्मित है।
अयोध्या में विशाल जिनालयों का निर्माण
तीर्थ विकास के क्रम में अयोध्या में पाँच तीर्थंकर भगवन्तों ने जन्म लिया उन सब जन्मस्थानों पर विशाल जिनालयों का निर्माण पूज्य माताजी की प्रेरणा से करवाया जा चुका है, जिसमें मुख्यरूप से भगवान ऋषभदेव, भगवान अजितनाथ, भगवान अभिनंदननाथ, भगवान अनंतनाथ एवं भगवान सुमतिनाथ हैं। इसके अतिरिक्त काकंदी (गोरखपुर) उ.प्र. में भगवान पुष्पदंतनाथ के जन्मस्थान में विशाल मंदिर निर्माण एवं भगवान पुष्पदंतनाथ की विशाल पद्मासन प्रतिमा को विराजमान किया जा चुका है।
राजस्थान में श्री महावीर जी, माधोराजपुरा में पारिजात वृक्ष एवं गणिनी आर्यिका ज्ञानमती दीक्षा तीर्थ, जृम्भिका तीर्थ जमुई ग्राम (बिहार) में भगवान महावीर की केवलज्ञानभूमि पर विशाल प्रतिमा का निर्माण खुले स्थान पर किया गया है, जो कि मेनरोड से दर्शन होता है। सनावद (म.प्र.) में णमोकार धाम तीर्थ का निर्माण, पावापुरी, राजगृही, गुणावां जी एवं सम्मेदशिखर तीर्थों पर भगवन्तों की विशाल प्रतिमा से समन्वित विशाल जिनमंदिर का निर्माण किया गया है। विश्व प्रसिद्ध स्थान शिर्डी (महा.) में निर्मित कमल मंदिर में भगवान पार्श्वनाथ की विशाल पद्मासन प्रतिमा विराजमान की गई एवं तीर्थ सुन्दर तीर्थ विकसित किया गया।
मांगीतुंगी स्टेच्यू आॅफ अहिंसा
विश्व में सबसे अद्भुत 108 फुट भगवान ऋषभदेव मूर्ति निर्माण की प्रेरणा पूज्य माताजी के द्वारा सन 1996 में प्रदान की गई थी, जो कि अपने आप में एक चुनौती पूर्ण कार्य था। लेकिन पूज्य माताजी की दिव्यशक्ति ने उस कार्य को भी गति प्रदान करते हुए पूर्ण कर दिया। जो कि आज विश्व के पटल पर स्थापित हो गई है, जिसका महापंचकल्याणक 11 से 17 फरवरी 2016 तक व महामस्तकाभिषेक वृहद् स्तर पर सम्पन्न हो चुका है जिस महापंचकल्याणक में 125 दिगम्बर जैन संतों ने अपनी उपस्थिति एवं सान्निध्य प्रदान किया एवं लाखों लोगों ने सम्मिलित होकर अपने आपको धन्य किया। इसी क्रम में 06 मार्च 2016 को दिगम्बर जैन समाज की सबसे ऊँची प्रतिमा गिनीज बुक आॅफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज कर ली है। इसका सर्टिफिकेट समिति 06 मार्च को लंदन के आॅफिस से आकर कार्यकर्ताओं ने प्रदान किया। इसी उपलक्ष्य में संस्कृति युवा संस्थान के तत्त्वावधान में ब्रिटिश पार्लियामेंट लंदन द्वारा 02 जुलाई को पूज्य गणिनी श्री ज्ञानमती माताजी को भारत गौरव सम्मान से सम्मानित किया गया। यह जैन समाज के लिए अत्यन्त ही गौरव की बात है।
भ. भरत ज्ञानस्थली तीर्थ, दिल्ली
इसी क्रम में पूज्य माताजी के चरण राजधानी दिल्ली की ओर चल पड़े, जहाँ पर भगवान ऋषभदेव के ज्येष्ठ पुत्र चक्रवर्ती भगवान भरत ज्ञानस्थली तीर्थ का निर्माण किया गया, जिस पर भगवान भरत स्वामी की 31 फुट उत्तुंग प्रतिमा विराजमान की गई। जिसका पंचकल्याणक 16 से 20 जून 2021 तक हर्षोल्लासपूर्वक सम्पन्न किया गया। चक्रवर्ती भगवान भरत के नाम पर ही इस देश का नाम भारत पड़ा, क्योंकि आज वर्तमान में भारत देश के इतिहास में भगवान ऋषभदेव के पुत्र भरत का वर्णन अनेक ग्रंथों में सनातन एवं जैन ग्रंथों में प्राप्त होता है। पूज्य माताजी की प्रेरणा से नई दिल्ली के कनॉट प्लेस स्थित क्षेत्र में इस तीर्थ का निर्माण किया गया है, जो कि एक ऐतिहासिक कार्य है। तीर्थ निर्माण के पश्चात् देश के रक्षामंत्री श्री राजनाथ सिंह एवं अन्य केन्द्रीय मंत्री पूज्य माताजी के दर्शनों के लिए यहाँ पर पधारे। इस तीर्थ पर विराजमान प्रतिमा सारे देश के लिए सुख-शांति एवं समृद्धि का संदेश प्रचारित एवं प्रसारित कर रही है।
तव चरणों में झुके हैं सारे-इसी क्रम में पूज्य माताजी के पास प्रारंभ से ही अनेक राजनेताओं का आना-जाना रहा है, जिसमें मुख्यरूप से राष्ट्रपति श्री रामनाथ जी कोविन्द, ए.पी. अब्दुल कलाम, श्रीमती प्रतिभा देवी सिंह पाटील एवं डॉ. शंकर दयाल शर्मा, प्रधानमंत्री श्रीमती इन्दिरा गांधी, श्री राजीव गांधी, श्री नरसिम्हा राव, श्री अटल बिहारी वाजपेयी एवं अनेक प्रदेशों के राज्यपाल, मुख्यमंत्री एवं अन्य नेताओं ने पूज्य माताजी की विशेष चर्या एवं अद्भुत कार्यकलापों को देखकर प्रभावित हुए एवं पूज्य माताजी की चरण रज को प्राप्त करने के लिए अनेक स्थानों पर आकर दर्शन कर एवं उनका आशीर्वाद प्राप्त कर अपने को धन्य माना।
जहाँ शरदपूर्णिमा का चंदा अमृत बिखेरता है, उसी अमृतकण के रूप में चंदा से पूज्य गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी हमें प्राप्त हुई हैं, जिनकी विशेष छठा सारे देश को लाभान्वित कर रही है। आज जिस तरफ भी पूज्य माताजी के चरण पड़ जाते हैं, उनके साथ-साथ हजारों, लाखों चरण चल पड़ते हैं। ऐसी पूज्य माताजी जो कि दीर्घकालीन तपस्या के द्वारा अपने आपको तीर्थ बना लिया है, उनका दर्शन, उनका पूजन सभी के लिए लाभकारी है और हम सभी की यही मंगल कामना है कि माताजी दीर्घकाल तक इसी प्रकार से सारे विश्व को आलोकित करती रहें।
तुम जिओ हजारों साल, साल के दिन हो पचास हजार। इन्हीं कामनाओं के साथ पूज्य माताजी के चरणों में वंदामि।
– विजय कुमार जैन (मुख्य संयोजक अ.भा. दि. जैन युवा परिषद),जम्बूद्वीप-हस्तिनापुर