दिव्य शक्ति सरस्वती स्वरूपा , जिनके जीवनकाल में अनेकों चमत्कार हुए -विश्व शांति अहिंसा क्रांति की प्रेरणा स्रोत– मां ज्ञानमती

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जैन संस्कृति में समय-समय पर महान आत्माओं का जन्म होता रहता है ,जैन समाज का यह अत्यंत गौरव रहा है कि बीसवीं शताब्दी पर एक महान आत्मा का शरद पूर्णिमा 22 अक्टूबर 1934 को जन्म हुआ ।
उस महान आत्मा का जीवन परिचय तो आप और हम बहुत पढ़ ,सुन और देख चुके हैं, उस महान आत्मा ने जैन संस्कृति के उत्थान हेतु सारे देश विदेश में अद्भुत अलख जगाकर जैन श्रावकों को ही नहीं अजैन बंधुओं को भी अपने कर्तव्यों से परिचित कराया , प्राचीन तीर्थों का पुनर्स्थापित किया। कठिन परिश्रम से लेखनी से 500 से अधिक ग्रंथ पुष्पदंत और भूतवली जैसे महान आचार्य महान आचार्यों के ग्रंथों की टीकाकरण करने का सप्रयास किया ।

वे महान आत्मा हैं जिन्होंने टिकैतनगर के श्रेष्ठी धर्म निष्ठ श्री छोटेलाल जी की धर्मपत्नी श्रीमती मोहनी देवी के दांपत्य जीवन के 13 संतानों में प्रथम पुष्प के रूप में जन्म लेने का सौभाग्य प्राप्त किया मैंना के रूप में।
युग प्रवर्तिका, चारित्र चंद्रिका, सिद्धांत चक्रेश्वरी, गणिनी प्रमुख भारत गौरव आर्यिका शिरोमणि, दिव्य शक्ति सरस्वती स्वरूपा श्री ज्ञानमती माताजी ने अपने जीवनकाल में जो भी लक्ष्य बनाया उन लक्षों ने सिर्फ उनके व्यक्तित्व कृतित्व को समाज के बीच स्थापित किया ,अपितु समस्त श्रावक समाज व संस्कृति को भी लाभ प्राप्त हुआ।

मैं यहां पर उनके विशाल कृतित्व व व्यक्तित्व पर विस्तृत प्रकाश तो नहीं डाल पाऊॅगा ।
लेकिन संक्षिप्त में उनके जैन धर्म संस्कृति एवं विश्व शांति में जो योगदान रहा उसका हमारी वर्तमान पीढी को जानकारी कराना चाहूंगा ।

जैन संस्कृति में साहित्य सृजिक

के रुप में इतिहास की प्रथम आर्यिका हैं , जिन्हो का है जिन्होंने सर्वप्रथम 1955 में जिन सहस्त्रनाम स्तोत्र की रचना कर लेखनी का शुभारंभ किया जो सतत् चलता ही रहा और लगभग 400 ग्रथों से अधिक का सृजन कर संस्कृत संरक्षण में अहम भूमिका निभाक इतिहास कायम किया।

जैन धर्म अनादि निधन धर्म है नियम से हमारे तीर्थंकरों का जन्म अयोध्या एवं मोक्ष शिखरजी में होता है , इस हुण्डासर्पिणी काल दोष के कारण तीर्थंकर जन्मभूमि अलग-अलग स्थानों पर हुई उसी प्रकार निर्माण क्षेत्र ।

हमारे आचार्य भगवन्त कहते हैं कि भगवान ऋषभदेव- पुष्पदंत के पश्चात और भगवान शांतिनाथ से पूर्व जैन धर्म का लोप हुआ और भगवान शांतिनाथ ने हस्तिनापुर में जन्म लिया उसके पश्चात सतत् जैन धर्म आगे बढ़ता ही गया तभी से निरंतर प्रगति की ओर आगे बढ़ रहा है ,उसी प्रकार सर्व प्रथम पूज्य माता जी ने 3 तीर्थंकरों की जन्मभूमि हस्तिनापुर का चयन किया, माता जी द्वारा जम्बूद्वीप की रचना करवा दी, तभी से उपेक्षित जन्म भूमियों का विकास निरंतर जारी है , माता जी के विकास से पूर्व हस्तिनापुर पर शून्य रूप से यात्री जाते थे। तत्पश्चात 5 तीर्थंकरों की जन्मभूमि अयोध्या का चयन किया जैन-अजैन लोग केवल यही जानते कि अयोध्या राम जन्मभूमि है ,विकास के पश्चात अयोध्या का जैन मानचित्र पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर गुंजायमान हुआ।तत्पश्चात भगवान महावीर स्वामी की जन्म भूमि कुंडलपुर , नालंदा, बिहार उपेक्षित थी, उसका विकास करवाया और आज राज्य स्तर पर भगवान महावीर स्वामी का जन्म कल्याणक नंद्यावर्त महल कुंडलपुर में मनाया जाता है जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विख्यात हो रहा है ,तत्पश्चात राजगृही सिंहपुरी, सारनाथ ,काकन्दी आदि जन्मभूमिओं का विकास माताजी की प्रेरणा से हुआ ,अब भद्दलपुर भदिकापुरी के विकास जारी है । मैं यहां अधिक नहीं लिखते हुए केवल यह कहना चाहूंगा कि जो भी राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पूज्य माता जी ने प्रेरणा कर लक्ष्य बनाया वह सफल हुआ , इन सभी विकास योजनाओं में कार्यक्रमों में 108 विश्व की सर्वोच्च प्रतिमा के निर्माण में किसी एक व्यक्ति का पैसा नहीं लगवा कर जन- जन की राशि से ये सभी कार्य जो एक उत्कृष्ट आदर्श है।

उदाहरणार्थ जम्बूद्वीप ज्ञान ज्योति रथ, भगवान ऋषभदेव समवशरण श्री बिहार रथ प्रवर्तन, भगवान महावीर ज्योति रथ प्रवर्तन, राष्ट्रीय कुलपति सम्मेलन, भगवान ऋषभदेव अंतरराष्ट्रीय निर्वण महोत्सव, विश्व अहिंसा सम्मेलन , वर्ष 2021 में भारत की राजधानी दिल्ली के कनॉट प्लेस स्थित जैन मंदिर प्रांगण में 31 फुट उत्तंग चक्रवर्ती भगवान भरत जी की प्रतिमा स्थापित करवाना, अयोध्या विकास का क्रम जारी कर दिया है, आदि अनेकों कार्य करवाये पूज्य माता जी की प्रेरणा से ।

बंधुओं पूज्य माताजी दिव्य शक्ति सरस्वती स्वरूपा हैं उनके जीवनकाल में अनेकों चमत्कार हुए हैं, उन्होंने संपूर्ण विश्व में एक नया चिंतन प्रदान कर नया इतिहास रचा वो है प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर के अहिंसामय सिध्दांत जो आज विश्व को स्वीकार करने की आवश्यकता है ।पूज्य माता जी ने विश्व शांति की ओर हम सभी का ध्यान आकर्षित करके अहिंसा और धर्म के विभिन्न सिद्धांतों पर अमल करने की पहल की है ,उन्होंने प्रेरणा दी है कि मन की शांति ,परिवार की शांति, समाज की शांति और उसके उपरांत देश और विश्व शांति के लिए प्रयास प्रारंभ हो ,यह हमारा कर्तव्य है ।

पूज्य माता जी की प्रेरणा से 21 दिसंबर 2008 को विश्व शांति अहिंसा सम्मेलन का उद्घाटन महामहिम राष्ट्रपति महोदया प्रतिभा देवी सिंह जी पाटिल से जम्बूद्वीप हस्तिनापुर में कराया , वर्ष 2009 को शांति वर्ष के रूप में पूरे विश्व में मनाया और अहिंसा -शाकाहार से संबंधित कार्यक्रम आयोजित करवाये ।

पूज्य माता जी की प्रेरणा से ही 22 अक्टूबर 2018 को विश्व की सर्वोच्च 108 भगवान ऋषभदेव की मूर्ति स्थापित होने के पश्चात ऋषभदेवपुरम, मांगीतुंगी, महाराष्ट्र में विश्व शांति अहिंसा सम्मेलन देश के महामहिम माननीय राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद जी के मुख्य अतिथि में सफलतापूर्वक संपन्न हुआ ,इस प्रकार पूज्य माता जी की प्रेरणा सेअहिंसा क्रांति पैदा करने की आवश्यकता है।
सभी संस्था प्रमुखों को इस अहिंसा क्रांति के संबंध में कार्य करना चाहिए।

उदयभान जैन ,जयपुर M:94143 09696