आरण स्वर्ग में आयु पूर्ण कर 9वें तीर्थंकर श्री पुष्पदंत जी का जीव काकंदी नगरी के महाराज सुग्रीव की महारानी श्रीमती जयरामा देवी के गर्भ में फाल्गुन कृष्ण नौमी को आया। उसके 6 माह पहले से ही सौधर्म इन्द्र की आज्ञा से कुबेर ने दिन के तीनों पहर राजमहल पर साढ़े तीन करोड़ रत्नों की वर्षा कर दी थी। श्री चन्द्रप्रभु भगवान के नब्बे करोड़ सागर बीत जाने के बाद मंगसिर एकम को आपका जन्म हुआ।
आपकी आयु दो लाख वर्ष पूर्व थी और कद था 600 फुट ऊंचा। श्वेत रंग के पुष्पदंत जी ने 50 हजार वर्ष 28 पूर्वांग राज्य किया, फिर एक दिन महल की छत से आकाश में उल्कापात देखकर आपके भीतर वैराग्य की भावना बलवती हो गई और मंगसिर शुक्ल एकम को अनुराधा नक्षत्र में पुष्पक विमान से सूर्यप्रभा पालकी से पहुंचे, आपके साथ एक हजार और राजाओं ने अपना राजपाट त्याग दीक्षा ले ली। पंचमुष्टि केशलोंच कर नागवृक्ष के नीचे आपने तप धारण कर लिया।
आपको प्रथम आहार शैलपुर नगर के राजा पुण्यमित्र को देने का सौभाग्य मिला और चार वर्ष के कठिन तप के बाद कार्तिक शुक्ल द्वितीया (जो इस वर्ष 06 नवम्बर को है) को पुष्पक वन के बहेदा वृक्ष के नीचे अपराह्न काल में केवलज्ञान की प्राप्ति हो गई।
तीर्थंकर पुष्पदन्त जी का है ज्ञान कल्याणक , काकन्दी ( वर्तमान नाम –गाँव कहाऊँ जिला देवरिया ) में हुआ था | आज के ही दिन संध्या के समय मूल नक्षत्र में नागवृक्ष के नीचे केवलज्ञान की प्राप्ति हुई थी | यहाँ जिनालय नहीं है , लगभग 2000 वर्ष प्राचीन मानस्तंभ है
कुबेर द्वारा तत्काल 8 योजन विस्तृत समोशरण की रचना की, जिसमें श्री विदर्भजी प्रमुख सहित 88 गणधर, दो लाख गंधर्व, 1500 पूर्वधर मुनि, 1,55,500 शिक्षक मुनि, 8400 अवधिज्ञानी मुनि, 7500 केवलज्ञानी मुनि, 13,000 विक्रियाधारी मुनि, 7000 विपुलामति मुनि, 6600 वादी मुनि, 3.80 लाख आर्यिकाओं के साथ दो लाख श्रावक और चार लाख श्राविकायें आपकी दिव्य ध्वनि का लाभ लेते थे। आपका केवलीकाल एक लाख पूर्व 28 पूर्वांग 4 वर्ष रहा।
फिर आयु कर्म क्षीण करते हुये चारों अघातियां कर्मों के नाश हेतु श्री सम्मेदशिखरजी पहुंच गये। भाद्रपद शुक्ल अष्टमी को अपराह्न काल में खड्गासन मुद्रा से सुप्रभकूट से एक हजार मुनिराजों के साथ आप एक समय में सिद्धालय में विराजमान हो गये। इसी कूट से एक करोड़ 90 लाख 480 मुनिराज मोक्ष गये हैं।
बोलिये 9वें तीर्थंकर श्री पुष्पदंत जी के केवलज्ञान कल्याणक की जय-जय-जय।