पूरे वर्ष में क्या ऐसा कोई पखवाड़ा है, जिसमें कम से कम चार कल्याणक आयें और वो चारों ही अलग-अलग तीर्थंकर के, पर एक से

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24 पखवाड़ों में से एकमात्र पखवाड़ा, जिसमें आते हैं
केवल ज्ञान कल्याणक, 6 दिन में चार

हां केवल एक ही पखवाड़ा है, जो इस समय चल रहा है, पौष माह का शुक्ल पक्ष और दशमी से पूर्णिमा तक के 6 दिनों में चार तीर्थंकरों को केवलज्ञान की प्राप्ति हुई।

दशमी (12 जनवरी) : 16वं तीर्थंकर श्री शांतिनाथ जी
16 वर्ष के कठोर तप के बाद पौष शुक्ल दशमी (जो इस बार 12 जनवरी को है) को हस्तिनापुर के आम्रवन में नदी वृक्ष के नीचे अपराह्नकाल में केवलज्ञान की प्राप्ति हुई।

24,984 वर्ष के केवली काल में 54 किमी विस्तार के समोशरण की कुबेर द्वारा रचना की गई। श्री चक्रायुध सहित 36 गणधरों द्वारा दिव्यध्वनि आगे पहुंचती गई।

एकादशी (13 जनवरी) : दूसरे तीर्थंकर श्री अजितनाथ जी

12 वर्षों के तप के बाद पौष शुक्ल एकादशी (जो इस बार 13 जनवरी को है) को अयोध्या के सहेतुक वन में सप्तवर्ण वृक्ष के नीचे सायंकाल में केवलज्ञान की प्राप्ति हुई। कुबेर द्वारा तुरंत 138 किमी विस्तार वाले विशाल समोशरण की रचना की। आपका केवलीकाल एक लाख वर्ष पूर्व, एक पूर्वांग और 12 वर्ष का रहा। आपके श्री सिंहसेन प्रमुख गणधर सहित 90 गणधर थे।

चतुर्दशी (16 जनवरी): चौथे तीर्थंकर श्री अभिनंदननाथ जी

18 वर्ष तक के कठोर तप के बाद पौष शुक्ल चतुर्दशी (जो इस बार 16 जनवरी को है) को अयोध्या में ही, उग्रवन में सरल वृक्ष के नीचे अपराह्न काल में केवलज्ञान की प्राप्ति हुई। कुबेर द्वारा तुरंत सौधर्मेन्द्र की आज्ञा से 126 किमी विस्तार के समोशरण की रचना की गई। आपका केवलीकाल एक लाख पूर्व, 7 पूर्वांग 18 वर्ष का रहा। श्री वज्रनाभि सहित आपकी सभा में 300 गणधर थे।

पूर्णिमा (17 जनवरी): 15वें तीर्थंकर श्री धर्मनाथजी

एक वर्ष के कठोर तप के बाद पौष पूर्णिमा (जो इस बार 17 जनवरी को है) को रत्नपुरी नगरी के सहेतुक वन में दधिपर्ण वृक्ष के नीचे अपराह्न काल में केवलीज्ञान की प्राप्ति हुई। कुबेर ने 60 किमी विस्तृत समोशरण की रचना की। श्री अरिष्ट सेन जी सहित 33 गणधर थे।

अब 6 दिनों में से चार ज्ञान कल्याणक दिवस, भावना भायें, हमारे भीतर के अज्ञान तिमिर को दूर भगायें।