दूसरों की बजाय अपने भरोसे बुलंद करो, सच्चे दोस्त दर्जी की तरह होते हैं, मुफ्त में रफू करते हैं- उपाध्याय श्री गुप्ति सागर

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04 मई 2024/ बैसाख कृष्ण एकादशी /चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी/शरद जैन /
‘चेहरा दिल का सूचक होता है। जैसे होंठो के लिए सत्य ब्रांडेड है, आंखों में दया ब्रांडेड है, वैसे ही हाथों के लिए दान ब्राडंड है, जितना दोगे, उतना लौटता जाएगा। भामाशाह-चामुण्डराय, विद्यासागरजी सब चले गये, पर उनके उपकार सदा जीवित हैं। उनके चेहरे की मुस्कुराहट भी ब्रांडेड है। ब्रांडेड चीज ही हाथों में प्रेम है’, ये शब्द थे उपाध्याय श्री गुप्तिसागर मुनिराज के भव्यातिभव्य श्री 1008 पारसनाथ जिनबिम्ब पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव में, जिसका आयोजन नार्थ यूनिवर्सिटी के स्पोर्ट्सस काम्पलेक्स के वातानुकूलित हॉल में हुआ।

वहीं पर विराजमान आचार्य श्री विद्यासागरजी की मूर्ति की मुस्कुराहट, उनको हर हृदय में जीवंत कर रही थी। इसे संकटहरण पारसनाथ दिगंबर जैन मंदिर, राणा प्रताप बाग के 800 गज के हॉल में विराजमान किया गया। यह मंदिर 2 हजार गज में बना है, जिसके लिये पवन जैन गोधा परिवार पूरी तरह से समर्पित है। पास की 500 गज जमीन और लेने का भी शुभारम्भ कर दिया गया है, मेन रोड पर होने से सबको इसके दर्शन होते हैं। मकराना के पत्थर से ओडिशा के 70 कारीगरों द्वारा लगभग एक माह लगातार काम चलता रहा, जिसने इसको आकर्षक रूप प्रदान किया और जब यहां चौबीसी विराजमान हो रही थी, तब इन्द्र देव वर्षा करते, अपने आनंद का उत्सव मना रहे थे।

उपाध्याय श्री ने कहा कि साहसिक कार्य बड़ा हो या छोटा, उसको दूसरे के बल पर कभी आरंभ न करना, अपने भरोसे पार जाने के लिये चाहे गंगा में भी कूद पड़ो, पर दूसरे के भरोसे, घुटनों पानी में भी पांव मत रखना, अपने भरोसे बुलंद करके ही आगे बढ़ना।

Face is the index of heart दिल में क्या बीत रही है, चेहरा सब बता देता है। जब जरूरत पड़े तो दोस्तों के पास जायें। सुना है दोस्त हौंसलों के दर्जी होते हैं, मुफ्त में रफू कर देते हैं।
उन्होंने फिर प्रश्न किया कि सच्चे दोस्त कौन होते हैं, वही चत्तारि शरणं पवज्जामि – अरिहंत, सिद्ध, साधु, धर्म की शरण में जाना। इनसे आपको इलाज मिल जाएगा, अन्य कोई शरण की आवश्यकता नहीं है। गुरुदेव कहते थे कि जनसम्पर्क से बचो, कम से कम बोलो, बोलो भी तो कल्याण के लिये बोलो, वर्ना कुछ मत बोलो।

तुम हीरो, हिरोइन, नेता को देखकर, वैसा ही बनने की कोशिश जरूर करते हो, पर संत को देखकर संत की तरह क्यों नहीं बनना चाहते।

संकटहरण पारसनाथ के बहुत जिनालय बने हैं, उन्होंने बहुत सहा है, और जो सहता है, उसकी खुशबू दूर तक फैलती है। उन्होंने यह भी बताया कि IAS इंस्टीट्यूट की एक शाखा यहां पर भी होगी।