आज तक नहीं सुना होगा कि किसी सिद्ध क्षेत्र के लिए भी, लॉटरी से पैसा इकट्ठा करना पड़ा और वह भी एक मुस्लिम शासक के सहयोग से

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20 फरवरी 2023/ फाल्गुन कृष्ण अमावस /चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी/
जानिए इतिहास की एक दिलचस्प कहानी गुजरात के जूनागढ़ की
वर्ष 1889 …जगह जूनागढ़.
अट्ठारह सौ सत्तावन की क्रांति के 32 साल हो गया था उस समय अंग्रेजों ने लगभग पूरे भारत पर कब्जा कर लिया था और बहुत से रियासतों अंग्रेजों के अधीन आ गए थे उसमें से एक रियासत गुजरात के जूनागढ़ की रियासत थी नवाब बहादुर खान जिस के नवाब थे
जूनागढ़ में ही ऊंची पहाड़ गिरनार है जहां पर हिंदू धर्म का सदियों पुराना दत्तात्रेय जी मंदिर है यहां सिर्फ हिंदू धर्म बल्कि जैन धर्म के भी कई देरासर है

आज जूनागढ़ के इस गिरनार पहाड़ पर जाने के लिए रोपवे है सीढ़ी है लेकिन पहले श्रद्धालु पहाड़ को यूंही चढ़ते थे महीनों लग जाते थे बहुत से लोग मर जाते थे या जंगली जानवर उनका शिकार कर लेते थे
फिर जूनागढ़ के नवाब के दीवान हरिदास बिहारी दास देसाई और नवाब के पर्सनल असिस्टेंट पुरुषोत्तम राय झाला एक दिन अनुकूल समय देखकर नवाब के समय समक्ष यह बात रखा की हिंदुओं को और जैनियों को गिरनार पर जाने में बहुत मुश्किल आती है बहुत से श्रद्धालु मारे जा रहे हैं तो क्यों ना हम ऊपर जाने के लिए सीढ़ी बनवा दें

फिर नवाब ने एक अंग्रेज इंजीनियर को अहमदाबाद से बुलवाया अंग्रेज इंजीनियर ने निरीक्षण करके बताया कि गिरनार के पहाड़ी तक सीढ़ी बनाने में कुल खर्च एक लाख तीस हजार रुपये आएगा
1889 में 1 लाख 30 हजार रुपये बहुत बड़ी रकम होता है इतना रकम सुनकर नवाब सन्न रह गया और उसने इंकार कर दिया

फिर हरिदास देसाई और पुरुषोत्तम राज झाला ने कहा कि नवाब साहब आप सरकारी खजाने से पैसा मत दीजिए हम लोग एक लॉटरी टिकट बाहर निकालते हैं जिसमें आकर्षक इनाम होंगे उस लॉटरी की कीमत हम ₹1 रखते हैं और मुझे उम्मीद है कि बहुत सारे लोग लॉटरी खरीदेंगे और उसी पैसे से हम यह सीडी बनवा लेंगे और लॉटरी के गजट में हम यह लिखेंगे कि हम यह लॉटरी किस उद्देश्य के लिए निकाल रहे हैं ताकि ज्यादा से ज्यादा हिंदू और जैन लोग यह लॉटरी खरीदें
इस पर नवाब ने अपनी सहमति दे दिया

फिर 11 सदस्यों की एक कमेटी बनाई गई इस कमेटी के प्रमुख बेचर दास बिहारी दास थे 1 अक्टूबर 1889 को ₹1 की कीमत की लॉटरी निकाली गई लॉटरी में पहला इनाम ₹40000 का था जिसे बाद में ₹10000 कर दिया गया और सबसे कम इनाम ₹5 का था उसके बाद जूनागढ़ के सरकारी राज्य गजट दस्तूरल अमल सरकार में इस लॉटरी की जहरात निकाली गई और इसमें सारी स्कीम लिखी गई और साथ ही साथ ऊपर लिखा गया इस लॉटरी के टिकट की कमाई से गिरनार के पहाड़ी पर हिंदू और जैन श्रद्धालुओं को जाने के लिए सीढ़ी बनाई जाएगी

टिकट में काफी आकर्षक स्कीम रखा गया था जैसे 12 टिकट एक साथ खरीदने पर टिकट फ्री, 100 टिकट बेचने वाले को 15% का कमीशन और यदि टिकट नहीं मिला तो नहीं बिका तो आप टिकट वापस करवा सकते हैं उसके बाद काफी लोगों ने लॉटरी खरीदना शुरू किया इसमें हिंदू मुस्लिम सिख यहां तक कि कई अंग्रेजों ने भी लॉटरी का टिकट खरीदा
उसके बाद 15 मई 1892 को रविवार के दिन लॉटरी का इनाम यानी विजेताओं की लिस्ट निकालना तय हुआ जूनागढ़ में हजारों लोग पूरे भारत से पहुंचे जूनागढ़ के फराज खान के मकान में लॉटरी की टिकट रखी गई लॉटरी कमेटी ने लॉटरी के नियमों में पारदर्शिता की बहुत शानदार जवाबदारी निभाई कुल 128663 टिकट बिके ₹10000 का ईनाम मुंबई में रहने वाली सविताबेन डाहयाभाई खांडवाला को लगा उन्होंने ₹10000 का इनाम गिरनार की सीढ़ी बनाने के लिए अर्पित कर दिया

1892 में ₹10000 यानी कि आज के 100 करोड़ के बराबर होगी दूसरा इनाम 2500 दो लोगों को मिला जो पंजाब के खुदाबख्श और लालचंद को मिला तीसरा इनाम ढाई हजार रुपए का नवसारी के बलवंत राय को मिला इस तरह लॉटरी बेचकर करीब एक लाख तीस रुपए इकट्ठे हुए और फिर अंग्रेज इंजीनियर की देखरेख में गिरनार के पहाड़ पर सीढ़ी बनाने का काम शुरू हुआ और सीढ़ी बनाने में कुल 19 वर्ष का समय लगा और आज हम जो गिरनार पर सीढ़ियों से चढ़ते हैं तो भूल जाते हैं कि हमारे पूर्वजों ने गिरनार पर सीढ़ी बनाने के लिए कितनी मेहनत किया था