सान्ध्य महालक्ष्मी / 22 सितंबर 2021
जैन समाज ने गिरनार सुरक्षा की जिम्मेदारी भारतवर्षीय दिगम्बर जैन तीर्थक्ष्ोत्र कमेटी को सौंप दी और पिछले 60-70 सालों में तीर्थक्ष्ोत्र कमेटी ने गुजरात हाइकोर्ट में 8 याचिका डालने के अलावा क्या – क्या उपलब्धियां प्राप्त की हैं, उसके लिये अध्यक्ष महोदय, शिखर चंद पहाड़िया जी से सम्पर्क पर कमेटी के गुजरात अंचल के अध्यक्ष पारस जैन बज ने स्वयं सम्पर्क किया और हर सवाल का स्पष्ट जवाब दिया। उन्होंने माना कि कहां-कहां तीर्थक्षेत्र कमेटी की चूक, जैन समाज के लिये महंगी पड़ गयी और अब नेमिनाथ टोंक के लिये नई जगह की तलाश क्यों की गई? अब तक क्या दूसरी से पांचवीं टोंक पर क्या कोई कार्य किया, यात्रियों की, टोंक की सुरक्षा के लिये क्या किया? सारी सच्चाई इसके बारें में जो उन्होंने स्वीकार किया, वह हैरान करने वाला है।
मैदान में खड़े हैं समर्पण के लिये
तीर नहीं तरकश में, लड़ने के लिए
विश्वास कीजिए अदालत में बार बार पहुंची तीर्थक्षेत्र कमेटी शायद पूरा होमवर्क किये बगैर। किसी यात्री ने सूचना दी, अवैध निर्माण हो रहे फोटो वायरल की, और तीर्थक्षेत्र कमेटी ने याचिका डाल दी। अब तक 8 डाल चुकी है, पर आज तक एक प्रमाण हाथ में नहीं है कि इसी टोंक से 22वें तीर्थकर मोक्ष गये। स्वामित्च का कोई अधिकार नहीं, आज तीर्थक्षेत्र कमेटी स्वीकार करने लगी है कि हमारे पास अब तो क्या, सौ-दो सौ सालों से एक सबूत नहीं है कि पांचवीं टोंक हमारी है, अगर किसी के पास हो तो हमें दे, यानि आज से पहले कमेटी ने यह कभी स्वीकार नहीं किया और न ही समाज के सामने इस बात को रखा, लगता है बिना हथियार खड़े हैं, बस मानो आत्मसमर्पण की तैयारी कर ली।
समाज को बताने की जहमत क्यों उठायें
नेतृत्व हमें दिया, आप चुप हो जायें
सांध्य महालक्ष्मी गिरनार मामले में एक श्वेत पत्र समाज से साझा करने की अपील करता रहा है, फिर दोबारा कहा। इस पर तीर्थक्षेत्र कमेटी का मानना है कि बहुत लापरवाही हुई, पर जैन समाज को नहीं बताना चाहते, क्योंकि सामने वाले के लिये यह हथियार बन जायेगा। गल्तियों को छिपाने के लिए इससे अलग जवाब नहीं है कमेटी के पास। अगर आज जैन समाज के पास नहीं, तो पांचों बड़ी संस्थाओं, विद्वतजनों को जरूर बता कर, उन पर कार्रवाही की जानी चाहिये थी, जिन्होंने बड़ी गल्तियां की है, पर आज गल्तियां मानते हैं, पर दोष का ठीकरा किस पर फोड़े?
60 साल पहले तीर्थक्षेत्र कमेटी सो गई
पांचवी टोंक दूसरे की हो गई
जी हां, आपको शायद यह पता ही नहीं होगा, बताया भी नहीं, जिसको नेतृत्व की जिम्मेदारी सौंपी, जिसको मैदान में लड़ने भेजा, वो लड़ने की बजाय छिपकर सो गया और दूसरे ने जीत लिया मैदान और अब हम पूछ रहें हैं क्यों चूके चौहान। जी हां, जिस टोंक के लिये हमारी सौ साल से पुरानी कमेटी लड़ रही है, जो यह मानती है कि उसके मालिकाना हक का कोई सबूत नहीं है, फिर भी आजादी के बाद उसका रजिस्टेÑशन नहीं कराया और 60 साल पहले वैष्णव समुदाय ने दत्तात्रेय टोंक के नाम से पंजीकरण करा लिया यानि किरायेदार ने मकान मालिक को ही घर से निकाल दिया और इतनी लापरवाही की, कि रजिस्ट्रेशन के समय अपनी तरफ से विरोध तक नहीं कराया, जिससे पंजीकरण ना हो, ऐसी कमेटी को क्यों सौंपी कमान, जिसे नींद और कुर्सी के अलावा, नहीं और कोई काम।
गिरनार बचाने के लिये दिया करोड़ों का दान,
दूसरी से पांचवी टोंक पर नहीं किया, एक धेले का काम
जैन समाज दानवीर है और हर आह्वान पर दान के लिये द्वार खोल देता है। तीर्थक्षेत्र कमेटी का दावा है कि उन्होंने गिरनार के नाम पर आज तक एक पैसे का दान नहीं लिया। वह तो तीर्थ संरक्षण के लिये दान की अपील ही मंच पर करती है, पर गिरनार के लिये कभी नहीं। जवाब गजब का है, क्योंकि हकीकत में आज तक तीर्थक्षेत्र कमेटी द्वारा दूसरी, तीसरी, चौथी, पांचवी टोंक की सुरक्षा, संर्वधन या यात्रियों की सुविधा के लिये ऊपर एक पैसा भी नहीं खर्च किया।
तीर्थक्षेत्र कमेटी का तो यह तक कहना है कि नीचे बनी दोनों धर्मशालाओं ने पिछले 15 सालों में सौ गुना विकास कर लिया, पर उनके द्वारा भी ऊपर एक पैसा नहीं खर्च किया गया। बंडीलाल कारखाने द्वारा पहली टोंक पर जीर्णेाद्वार जरूर किया गया। पर उसमें आगे कोई नहीं बढ़ा तभीतो प्रधानमंत्री भी अब कहते हैं यहां नीचे जैन मंदिर भी है। आचार्य निर्मल सागर जी के ट्रस्ट ने नीचे धर्मशाला और अन्य जगहों पर लाखों करोड़ लगाये, पर ऊपर टोंक पर एक पैसा नहीं। आप ही समझ लीजिये आपके दान का क्या शानदार उपयोग।
दूर बैठकर गिनाते रहे दावे अनेक
मौके पर नहीं, सुरक्षा-सुविधा एक
गजब की बात है, जैन यात्री बार-बार दुहाई देते रहे कि ऊपर हमारी सुरक्षा की कोई व्यवस्था नहीं, कोई सुविधा उपलब्ध नहीं कराई जा रही। इस पर तीर्थक्षेत्र कमेटी का रटा रटाया एक ही जवाब रहता है यात्री ज्यादा आयेंगे, तभी तीर्थ सुरक्षित रह पायेगा। पर उस कमेटी ने अपने गिरेबान में कभी झांकने की कोशिश ही नहीं की। सालों से सुरक्षा की कमान सौंपी गई है, पर गिरनार में एक कार्यालय आज तक नहीं खोला, तीर्थक्षेत्र कमेटी ने वहां एक कर्मचारी तक की, आज तक नियुक्ति नहीं की। अब कौन समझाये कि बिना मैदान में खड़े होकर जंग नहीं जीती जाती, पर हमारी कमेटी घर बैठ कर सोशल मीडिया पर, अपने मंचों पर, जीतना अच्छी तरह सीख चुकी है।
यात्रियों से अवैध निर्माण का पता चलता
घर से निकल ‘कमेटी’ फिर अदालत को चलता
सांध्य महालक्ष्मी ने तीर्थक्षेत्र कमेटी से स्पष्ट पूछा कि जब पिछले 20 सालों में बार-बार, पांचवी टोंक पर अवैध निर्माण की सूचनायें आती रही है और जब-जब ऐसी आवाज कुछ तेज हो जाती है, तीर्थक्षेत्र कमेटी की मुम्बई में नींद खुलती है और एक नई याचिका गुजरात हाइकोर्ट में डाल देती है। गिनती अब आठ हो चुकी है। तीर्थक्षेत्र में ही गुजरात के अध्यक्ष पारस जैन बज स्वीकार करते हैं कि तीर्थक्षेत्र कमेटी ने कभी ऊपर की वीडियो ग्राफी / फोटोग्राफी कराने का प्रयास नहीं किया। बस यही शौचनीय स्थिति है, कि इस अवैध निर्माण के प्रति गंभीरता की। तभी तो 25 साल पहले तक, नेमिनाथ भगवान की टोंक कही जाने वाली पांचवीं टोंक अब बकायदा पूरी तरह दत्तात्रेय टोंक बना दी गई, वो भी विभिन्न चरणों में।
पांचवी टोंक के पास तीर्थक्षेत्र कमेटी को
जगह नहीं मिली, एक ने अब ढूंढ दी, तो बांछे खिली
कमेटी के गुजरात अध्यक्ष पारस जैन बज ने सांध्य महालक्ष्मी से बातचीत में स्वीकार किया कि वैष्णव सम्प्रदाय की मजबूती पांचवी टोंक से महज 200 सीढ़ी दूर बना कलिकुंड है, जहां कुछ पंडे रहते हैं और वैष्णव यात्रियों के लिये नि:शुल्क भोजन की व्यवस्था है। पर तीर्थक्षेत्र कमेटी पिछले साठ सालों में एक जगह नहीं ढूंढ पाए। सपष्ट है कि उसने गंभीरता से कभी लिया ही नहीं, बस हाथ पर हाथ धरकर बैठे रह गये।
पारस बज जी स्पष्ट कहते हैं- अब 50७52 फुट यानि 2600वर्ग फीट की जगह ढूंढी है। इस बात को दोहराते हुये वे कहते हैं कि आप अब भी कह सकते हैं, इस जगह को मैंने स्वयं ढूंढा है, तीर्थक्षेत्र कमेटी ने नहीं। अब डेढ़ माह पहले गुजरात सरकार के संबधित विभाग को उसे लेने के लिये अर्जी भी दी है। तीर्थक्षेत्र कमेटी की 27 अगस्त को एक जूम मीटिंग भी हुई, जिसमें लिये गये निर्णयों का खुलासा नहीं हो पाया है।
नेमिनाथ टोंक कहलाएगी, नई जगह
क्या यह समर्पण की तैयारी की है वजह
सांध्य महालक्ष्मी ने सवाल किया कि क्या यह 2600 वर्ग फीट जगह, कहीं पांचवी टोंक से अधिकार वापस लेने का समझौता तो नहीं? इस पर पारस जी भरोसा देते हैं कि ऐसी आशंका आपकी हो सकती है, पर तीर्थक्षेत्र कमेटी की नहीं। पर साथ में यह कहना नहीं भूलते कि अगर हमें पांचवी टोंक के लिये भविष्य में कोई समझौता करना भी पड़ा तो पहले समाज के बीच जायेंगे।
लगता नहीं आपको कि आत्म समर्पण के लिये कोई मैदानी तैयारी आज शुरु हो गई है। तीर्थक्षेत्र कमेटी लाख इंकार करे। जब नई जगह को नेमिनाथ टोंक कहेंगे, वहां पूजा और गार्ड की पूरी व्यवस्था करेंगे। यानि जहां करनी थी, वहां तो कुछ किया नहीं, अब नई जगह पर होगा। एक ही जगह पर दो टोंके तो नेमिनाथ नाम से हो नहीं सकती, आपको लगता नहीं, कोई गोलमाल है।
यहांं दें हथकरघा आदि रोजगार
सुरक्षित करने का हो सकता आधार
आचार्य श्री विद्यासागर जी ने 18 वर्ष पहले इस तीर्थ सुरक्षा के लिये हथकरघा आदि रोजगार के अवसर, गरीबजन परिवारों को यहां बसाना आदि कुछ उपाय बताये थे। तब तो तीर्थक्षेत्र कमेटी के कानों में जूं न रेगी। अब जब सांध्य महालक्ष्मी ने पुन: स्मरण कराया, तो पारस जी बोले, आपके सुझाव बहुत बढ़ियां है, इनके बारे में कुछ करेंगे।
केवल अवैध निर्माण पर लड़ाई
1947 की स्थिति पर क्यों आवाज नहीं उठाई?
गुजरात हाइकोर्ट में आठों याचिकायें अवैध निर्माण को लेकर लगाई गई, पर यह समझ से बाहर है कि क्यों आज तक ळँी ढ’ंूी२ ङ्मा हङ्म१२ँ्रस्र (रस्रीू्रं’ ढ१ङ्म५्र२्रङ्मल्ल२) अू३ 1991 के अंतर्गत क्यों नहीं अदालत पहुंचे, जिसके अंतर्गत 15 अगस्त 1947 की स्थिति कायम रखने का स्पष्ट उल्लेख है और तब वहां दत्तात्रेय की मूर्ति भी नहीं थी। इस पर पारस जी का कहना है कि वे दीवार में उकेरी तीर्थंकर प्रतिमा को ‘दत्तात्रेय’ मानते हैं।
इस पर जैन समाज आसानी से स्पष्ट कर सकता है कि पद्मासन मुद्रा की पहचान तीर्थंकर प्रतिमा की ही होती है और ऐसी हजारों प्रतिमायें पूरे विश्व में हैं। कमेटी की इस पर चुप्पी समझ से बाहर है।
तीर्थक्षेत्र कमेटी की ओर से ‘पारस जैन बज’ ने सांध्य महालक्ष्मी से लम्बी चर्चा में स्पष्ट स्वीकार किया कि अतीत में तीर्थक्षेत्र कमेटी से बहुत लापरवाही हुई है, पर अब उसको कहने का क्या फायदा? सांध्य महालक्ष्मी चैनल महालक्ष्मी की अवाज पूरे जैन समाज तक पहुंचती है, तो इस बार में तीर्थक्षेत्र कमेटी का सहयोग दें।
(क) गिरनार तलहटी में धरना देने के लिये, कलेक्टर को ज्ञापन देने के लिये लोगों को 25-50 के समूहों में तैयार करें।
(ख) जिस किसी के पास इस टोंक / क्षेत्र का जैन समाज के प्रति प्रमाण हो, तो वो सामने लायें।
गिरनार के लिये क्या हम तैयार
धरना देंगे, पायें वापस अधिकार
बड़ी कमेटियों ने अब तक नहीं तोड़ी चुप्पी
बहुत गल्तियां की अतीत में, पर उन पर रोने का अब कोई लाभ नहीं मिलने वाला। जहां पर हैं, वहां से एक नई शुरूआत तो कर सकते हैं। तीर्थक्षेत्र कमेटी के गुजरात अध्यक्ष पारस जैन बज ने चैनल महालक्ष्मी से चर्चा के दौरान एक अपील की, कि आपके सबसे ज्यादा चर्चित लोकप्रिय चैनल व सांध्य महालक्ष्मी से लोगों का आह्वान करें कि गिरनार पर अपने अधिकार वापस लाने का तीर्थक्षेत्र कमेटी के साथ मिलकर एक सार्थक प्रयास करें।
उन्होंने कहा कि वंदना मार्ग की तलहटी पर 30-40 लोग मिलकर धरना देंगे, फिर कलेक्टर को मिलकर ज्ञापन दिया जाएगा। टोंक पर अवैध निर्माण हटाया जाये और हमें अर्घ्य चढ़ाने का अधिकार मिले। इसके लिये पूरे देश से जैन बंधु जुड़े जिससे यह आंदोलन कुछ राज्यों का नहीं, पूरे देश का है। राजकोट तक जैन बंधुओं को अपने खर्च से पहुंचना होगा और उसके बाद आने-जाने, ठहरने-खाने-पीने का खर्च पारस बज जैन ने स्वयं वहन करने की घोषणा की है।
चैनल महालक्ष्मी के एक आह्वान पर गुजरात, महाराष्ट्र, यू.पी. राजस्थान, हरियाणा, बिहार, मध्यप्रदेश, कर्नाटक, दिल्ली से 100 से ज्यादा जैन बंधुओं ने तुरंत वहां पहुंचने के लिये सहमति दे दी, कुछ ने तो 10 से 50 को साथ लाने तक का वायदा किया।
पर अफसोस यह है कि तीर्थक्षेत्र कमेटी की इस मुहिम में अन्य बड़ी कमेटी ने जैसे किनारा कर रखा है। हमारा विनम्र अनुरोध है कि सभी अपने-अपने, दो-दो प्रतिनिधि जरूर भेजें, जिससे अपने सिद्धक्षेत्र बचाने के मजबूत प्रयास अदालती स्तर के साथ सामाजिक पटल पर भी हो।
अगर आप भी तैयार हैं तो – अपने नाम-पते के साथ लिखें कि मैं भी गिरनार आने को तैयार हूं तथा व्हाट्सअप करें 9910690823
तीर्थक्षेत्र कमेटी के साथ मिलकर आगे की सूचना दी जाएगी।