भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई में जिन्होंने सत्य और अहिंसा के बल पर भारत को सैकड़ों वर्षों की अंग्रेजों की गुलामी से स्वतंत्र कराया, ऐसे राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी का जीवन जैन संस्कारों से प्रभावित था।
जब मोहनदास करमचन्द गाँधी ने अपनी माता पुतलीबाई से विदेश जाने की अनुमति माँगी, तब उनकी माँ ने अनुमति प्रदान नहीं की, क्योंकि माँ को शंका थी कि यह विदेश जाकर माँस आदि का भक्षण करने न लग जाये।
उस समय एक जैन मुनि बेचरजी स्वामी के समक्ष गाँधीजी के द्वारा तीन प्रतिज्ञा (माँस, मदिरा व परस्त्रीसेवन का त्याग) लेने पर माँ ने विदेश जाने की अनुमति दी। इस तथ्य को गाँधीजी ने अपनी आत्मकथा सत्य के प्रयोग, पृ. ३२ पर लिखा है।