92 वर्ष की आयु वाली आर्यिका दुर्लभ मति माताजी की दुर्लभ समाधि साधना का 20वां दिन, बिना अन्न जल ग्रहण किये 22 वां उपवास

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वात्सल्य वारिधि आचार्य श्री 108 वर्द्धमान सागर जी महाराज के निर्यापकत्व में कर्नाटक के कोथली में 92 वर्ष की आयु वाली आर्यिका श्री 105 दुर्लभ मति माताजी अपनी दुर्लभ मानव पर्याय को सार्थक करते हुए दुर्लभ मोक्ष पद की प्राप्ति हेतु यम सल्लेखना की दुर्लभ साधना की ओर अग्रसर है।

आज दिनांक 10 अक्टूबर 2021 को माताजी के यम सल्लेखना का 20वां दिन है। वर्तमान काल मे किसी भी दिगम्बर साधु की यम सल्लेखना का ये सबसे अधिकतम समय है। इससे पहले वर्ष 1996 1997 में कोलकाता में गणिनी आर्यिका श्री सुपार्श्वमती माताजी के निर्यापकत्व में आर्यिका श्री अंतर मति माताजी की यम सल्लेखना के 19 वें दिन समाधि सम्पन्न हुई। अहो धन्य है ऐसे अतिशय धारी दिगम्बर संत जो ऐसी उत्कृष्ट यम सल्लेखना को धारण कर समाधि करते है।

यम सल्लेखना: दिगम्बर जैन शास्त्र में सल्लेखना धारण का क्रम बताते हुए नियम सल्लेखना और यम सल्लेखना का वर्णन किया गया है। नियम सल्लेखना अर्थात धीरे धीरे क्रम पूर्वक आहार में ली जाने वाली वस्तुओं का त्याग करना और यम सल्लेखना अर्थात चारों प्रकार के आहार यानी अन्न जल आदि सभी प्रकार की वस्तुओं का जीवन पर्यंत के लिए त्याग कर समाधि को प्राप्त करना। शास्त्रों में वर्णन है कि ऐसी उत्कृष्ट यम सल्लेखना को धारण करने वाला जीव नियम से 7 8 भव में मोक्ष प्राप्त करता है।
आर्यिका दुर्लभ मति माताजी ने उसी दुर्लभ मोक्ष गति को प्राप्त करने का कार्य संपादित किया है।

साधारण अवस्था में मनुष्य के लिए 4 5 दिन से अधिक अन्न जल के बिना रह पाना असंभव है और दुर्लभ मति माताजी जो 92 वर्ष की आयु वाली है वो 22 दिन बिना अन्न जल ग्रहण किये पूरी तरह से सचेत अवस्था मे है और पूर्ण चेतना को धारण कर समाधि की और अग्रसर है।
संस्तरारोहण का आशय – संस्तर से आशय क्षपक साधु जहाँ बैठते है लेटते है उस स्थान का आरोहण करना स्वीकार करना
संस्तारारोहण कहलाता है
संयोग देखिए कि गृहस्थ अवस्था मे 12 जून 2015 को 12 वर्ष की नियम सल्लेखना आर्यिका श्री सरस्वती मति जी से कोथली में ली तथा कोथली में 29 जुलाई 21 को दीक्षा ली

92 वर्ष की उम्र में 22 दिन का निर्जल उपवास संभवत पहली साधना है
देखिये आज यम सल्लेखना के 20वें दिन दिनांक 10 अक्टूबर 2021 के दिन – आचार्य श्री वर्द्धमान सागर जी महाराज के चरणों में एवं समस्त संघ के सान्निध्य में निर्मल परिणाम के साथ जिनेन्द्र देव की वंदना का दृश्य।

समाधि अमृत है शान्त व समतामयी परिणामों से की गई साधना उपासना है, कृष्ट पीड़ा दुख दर्द बीमारी को सहते हुए निर्मोही होना व ममत्व का त्याग करके अपनी चेतना को जागृत व जीवन्त रखना महान दुर्लभ परीक्षा है , यही कठिन श्रमकारी परीक्षा देने के लिए हमारे ऋषि मुनि सन्त सारा जीवन कृष्टो को सहते हैं कभी उफ़ भी नहीं करते है ,समतामय परिणामों की साधना ही समाधि साधना है , अपनी स्मृति के अन्तिम समय तक स्वय को स्व स्वरूप में लीन रखना ही सम्यक आत्म समाधिस्थ होना है ।

राकेश सेठी कोलकाता 9830255464, राजेश पंचोलिया इंदौर