जब होगी 49 दिनों तक #महाप्रलय, सबका महाविनाश और बचेंगे केवल 72 जोड़े, कब है वो दिन?

0
1279

26 मई 2022/ जयेष्ठ कृष्णा एकादिशि /चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी/

ज्येष्ठ कृष्ण द्वादशी (27 मई) – हमारे 14वें तीर्थंकर श्री अनंतनाथ जी का जन्म और तप कल्याणक, वैसे 20 तीर्थंकरों के जन्म-तप कल्याणक का एक ही दिन आते हैं। तीर्थंकर श्री संभवनाथ जी, तीर्थंकर श्री सुमतिनाथ जी, तीर्थंकर श्री अरनाथ और तीर्थंकर श्री महावीर स्वामी – इन चारों को छोड़कर सभी तीर्थंकरों के जन्म और तप कल्याणक एक ही दिन आते हैं।

पर यह ज्येष्ठ कृष्ण द्वादशी का दिन, हमारे 16वें तीर्थंकर श्री शांतिनाथ जी के जन्म-तप, मोक्ष कल्याणक से ठीक दो दिन पहले, वह दिन भी जिस दिन इस धरा पर महाप्रलय की शुरूआत होगी। वह महाप्रलय, जिसमें सबकुछ समाप्त हो जाएगा। कब आएगी वह महाप्रलय?

जी हां, ठीक 39,552 वर्षों बाद, जिस महाप्रलय में केवल 72 जोड़े ही पूरी धरा पर बचेंगे। वो प्रलय आयेगी, भरत और ऐरावत क्षेत्र में, और इन क्षेत्रों के भी आर्यखण्ड में, इसमें यह क्षेत्र भी सम्मलित है, जिसमें हम और आप रहते हैं। भरत – ऐरावत क्षेत्र के 6 खण्डों में 5 मलच्छ व एक आर्य खण्ड होता है, और इस ढाई द्वीप में 5 भरत – 5 ऐरावत क्षेत्रों के 5-5 आर्य खण्ड हैं।

अवसर्पिणी काल, जो इस समय चल रहा है, उसमें दु:खमा – दु:खमा काल के 49 दिन कम, 21 हजार वर्ष बीत जाने के बाद यानि, अभी दु:खमा (पंचम) काल के 18552 वर्ष के बाद, 21 हजार वर्ष और उसमें 49 दिन शेष रहने पर पूर्ण विनाशक महाप्रलय की शुरूआत होती है।

इन 49 दिनों के पहले 7 दिन तक विनाशक अतितीव्र वायु (भयंकर आंधी – तूफान) चलती है, जिससे वृक्ष और पर्वत सभी नष्ट हो जाते हैं, टूट जाते हैं। ऐसे समय मनुष्य-पक्षु-पक्षी, वस्त्र और सुरक्षित स्थान के लिये तड़प जाते हैं, विलाप करते हैं। उस समय 72 जोड़ी गंगा-सिंधु नदियों की वेदी और विजयार्थ में प्रवेश करते हैं। देव और विद्याधर दर्याद्र होकर उनको, यानि 72 जोड़ों को उन प्रदेशों में जाकर रखते हैं।
अगले 7 दिन, गंभीर गर्जना सहित बादल क्षार जल की वर्षा करते हैं।
तीसरे सप्ताह में, गंभीर गर्जना सहित बादल जहरीले जल की वर्षा करते हैं।
चौथे सप्ताह में, बादलों से धुंआ बरसता है।
पांचवें सप्ताह में बादलों से तीव्र धूल बरसती है।
छठे सप्ताह में बादल और उग्र रूप लेते हुये ओले नहीं, कई गुना बड़े पत्थर बरसाते हैं।

43 से 49वें दिन, प्रलय में भयानक अग्नि बरसती है, जो इस भरत-ऐरावत क्षेत्र की भूमि को जलाकर नष्ट कर देती है। इन पत्थरों व अग्नि की वर्षा से इस पृथ्वी पर जो अतिक्रमण हुआ है, यानि बढ़ी हुई भूमि अपने पूर्ववर्ती स्कंध स्वरूप को छोड़कर लोकांत तक पहुंच जाती है। इस समय ये आर्यखंड शेष भूमियों के समान दर्पण तल के सदृश कांति से स्थित धूल एवं कीचड़ की कलुषता से रहित हो जाता है। क्या आपको मालूम है कि तब मनुष्यों का कद और आयु कितनी होती है, तब कद सिर्फ एक हाथ यानि डेढ़ फुट और आयु घटकर मात्र 15 वर्ष होती है, (इस समय 100 वर्ष मानी जाती है)। यह प्रलय आषाढ़ माह की पूर्णिमा को समाप्त होती है।

फिर 49 दिनों तक, यानि श्रावण कृष्ण एकम से भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी तक सुखोत्पादक वर्षा होती है, उत्सर्पिणी काल की शुरूआत होती है, वो 72 जोड़े विजयार्थ पर्वत की गुफाओं से बाहर निकलकर वृक्षों के फल, मूल पत्ते खाते हुये क्षुधा मिटाते हैं और नये काल की शुरूआत होती है।