17 सितम्बर 2022/ अश्विन कृष्ण सप्तमी /चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी/
॰ पहली बार दिगम्बर संतों की संख्या 1600 के पार
॰ 25 सालों में दोगुने हो गये आचार्य व क्षुल्लक, एक तिहाई रह गये उपाध्याय
॰ गणिनी आर्यिकायें हो गई आठ गुणा
॰ साधनारत श्रमणों में लगभग एक चौथाई एक ही संघ के
॰ पिछले वर्ष फिर सबसे ज्यादा समाधिमरण
ज्वलंत प्रश्न
1. क्या अब हो रही आचार्य व गणिनी आर्यिकायें बनने की होड़?
2. अब पंच परमेष्ठी के उपाध्याय पद को कर दिया गौण?
3. क्या टूट गई आचार्य पद देने की प्राचीन परम्परा?
सांध्य महालक्ष्मी हर वर्ष की तरह, इस बार भी आपको साधनारत दिगम्बर श्रमणों के आंकड़े दे रहा है, वो भी पहली बार 24 वर्षों के, इतने आपने कहीं नहीं देखे होंगें
पहली बार दिगम्बर संत 1600 के पार
जब इस संकलन को शुरु किया सन् 1999 में तब दिगम्बर संत 790 थे, 2005 में एक हजार को पार किया, 2018 में 1500 को पार कर, अब 2022 में यह संख्या सबसे ज्यादा 16 सौ को पार करके 1601 पहुंच गई। इसका मुख्य कारण रहा इस वर्ष दी गई 112 दीक्षायें, इनमें सबसे ज्यादा एक साथ 11 क्षुल्लक दीक्षायें आचार्य श्री विद्यासागर जी द्वारा नेमावर में 09 जून को दी गई। इन 1600 में से आचार्य श्री विद्याासागर जी से दीक्षित सबसे ज्यादा हैं, लगभग एक चौथाई।
आचार्य श्री हैं दोगुने से ज्यादा
वर्ष आचार्य
1999 50
2011 77
2016 104
2021 107
2021-22 में 5 आचार्य, 2 पट्टाचार्य और एक बालाचार्य पद दिया गया और इन आचार्यों की संख्या अब तक की सर्वाधिक 107 तक पहुंच गई। 24 वर्ष पूर्व 1999 में 50 का आकड़ा छुआ था। 2016 में अधिकतम 104 आचार्य परमेष्ठी पद पर थे, पर इस वर्ष 107 के साथ नई ऊंचाई को छू लिया। पहले आचार्य पद छोड़ते हुए अपना आचार्य पद देते थे, पर अब एक-एक आचार्य 5-10 आचार्य पद दे रहे हैं। यहां तक की दूसरे आचार्य से दीक्षित मुनिराजों को भी। शास्त्र इस पर मौन है, पर क्या यह स्वस्थ परम्परा है?
उपाध्याय परमेष्ठी पद गौण होता जा रहा है
शायद अब आचार्य उपाध्याय पद पर मुनिराजों को प्रतिष्ठित करने की बजाय सीधे आचार्य बनाना चाह रहे हैं या फिर उनके मुनि शिष्यों की यही चाह होती है। 2003 में 17 उपाध्याय थे और 5 एलाचार्य, 2012 में 14 एलाचार्य 16 उपाध्याय थे। पर अब 2021 में मात्र 8 उपाध्याय ही है। सबसे वरिष्ठ उपाध्याय संभवत: उपा. श्री गुप्तिसागर जी है जिनकी दीक्षा आचार्य श्री विद्यासागर जी से हुई थी।
500 का आंकड़ा छू रहे मुनिराज
वर्ष मुनि
1999 260
2004 335
2011 401
2021 499
इस सदी के शुरु में मुनिराजों की संख्या 260 थी, 2004 में 300 के पार, 2011 में 400 के पार और अब 2021-22 में 500 का आंकड़ा छूने से एक कम है। निश्चय ही यह आनंद का विषय है, पर जिस तरह शिथिलाचार व अनाचार की घटनायें सामने आ रही है, उससे यह भी बात जोर पकड़ रही है, कि दीक्षा से पहले कड़ी परीक्षा हो तथा साधु संघ का महिलाओं से अलग हो, एकल विहार बंद हो। पर इस ओर कोई गंभीरता नहीं दिखती।
गणिनी आर्यिकायें हुई आठ गुणा
विद्वानों के अनुसार शास्त्रों में गणिनी आर्यिका पद का उल्लेख नहीं मिलता। सबसे वयोवृद्ध, ज्ञानवृद्ध, गणिनी आर्यिका वर्तमान में श्री ज्ञानमति माता जी हैं, जो कि दिगम्बर संतों में सबसे लंबी अवधि से दीक्षित हैं। 1999 में मात्र 9 गणिनी आर्यिकायें थी, 2006 तक गिनती 10 की रही और फिर तेजी से बढ़ना शुरू हुआ। वर्तमान में 51 गणिनी आर्यिकायें हैं यानि 24 वर्षों में 8 गुणा बढ़ोतरी। सबसे तेजी से गणिनी आर्यिकाओं की संख्या बड़ी है।
पिछले वर्ष फिर सबसे ज्यादा समाधिमरण
2020-21 में 86 दिगम्बर संतों का समाधिमरण हुआ, उसका कारण भी था, महामारी कोरोना, जिसके कारण यह वर्ष की अब तक की सबसे बड़ी संख्या रही। पर लगातार अब दूसरे वर्ष 2021-22 में भी 86 संतों का समाधिमरण जरूर स्तब्ध करने वाला है। जुलाई में 09, अगस्त में 04, सितम्बर में 06, अक्टूबर में 10, नवम्बर मं 7, दिसम्बर में 12, जनवरी में 9, फरवरी में 7, मार्च में 11, अप्रैल में 06, मई में 06 व जून में 04 समाधिमरण की सूचना मिली।
– शरद जैन –
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यह पूरा लेख तथा और भी अनेक चिंतन हेतु लेख 36 पृष्ठीय सांध्य महालक्ष्मी के कलरफुल क्षमावाणी अंक 2022 में पढ़िए
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