॰ बहुत कागजों में, पोस्टरों में, जुबान से कह लिया, कर लिया, अब कुछ सतही कार्यवाही भी हो
॰ बाहुबल नहीं तो, कानून बल जानों, हक के लिए लड़ो
15 सितम्बर 2022/ भाद्रपद कृष्ण अमावस /चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी /शरद जैन/
‘अगर कोई भिड़ जाते हैं तो भले ही 500 साल लग जायें, राम मंदिर बन ही जाते हैं। आप 50 साल तो कोशिश कीजियें और जाग गये हो तो 50 साल क्या, 500 साल क्या, 5000 साल भी लगे तो भी गिरनार दिगंबर जैन तीर्थ घोषित होना ही चाहिए।’ ये हुंकार रूपी शब्द, एक शंखनाद के प्रेरक रूप में आचार्य श्री सुनील सागरजी महामुनिराज द्वारा सन्मति समवशरण धर्म सभा मंडप, ऋषभ विहार में तब कहे, जब हमारा जैन समाज अखण्डता के नारे लगाता खण्ड-खण्ड होता जा रहा है और उसकी कमजोरी, दूसरों के लिये हमारे तीर्थ कब्जाने लूटने का मानो एक कारण बन गया है।
अहिंसा का पाठ विश्व को पढ़ाने वाले जैन समाज आज क्या इतना कायर, डरपोक, कमजोर, असहाय तो नहीं हो गया? अपने घरों की बखूबी रक्षा करने वाला जैन अपने चल-अचल तीर्थ की रक्षा के कर्तव्य पथ से क्यों विमुख हो गया, डरता है क्या? इसीलिये आचार्य श्री सुनील सागर जी कहते हैं ‘आप कोई मोम के पुतले नहीं हो, अगर ऐसे ही हथियार डालने लगे तो निश्चिित ही जिंदगी की किसी लड़ाई को नहीं जीत सकते। अगर आज नहीं जागे, तो मिट जायेंगे खुद ही, दास्तां तक नहीं होगी, हमारी दास्ताओं में…’
वक्त है कि एक हो जाओ। राजनीति के बाजार की दुकानों के शटर चुनावी हलचल से पूरे खुले हुए हैं, आर्थिक जगत में जैनों का बोल-बोला तो पहले से ही है, संस्कृति जगत में जैन वैभव अमूल्य है, जिसे मिटाने की, बदलने की कोशिशें जारी हैं। विरासत को लूटने की कवायद 8 वीं, 9वीं सदी में जो शुरु हुई वो आजादी के 77 वें साल में भी बदस्तूर जारी है।
ऐसे में आचार्य श्री सुनील सागर जी मुनिराज ने वर्षायोग स्थापना से ही मानो तीर्थ संरक्षण का बीड़ा उठा लिया और समयसार से शरीर आत्मा का भेद विज्ञान पर समझाते, समाज को तीर्थों की सुरक्षा के लिए भी जूझने का आह्वान बार-बार नहीं, लगातार किया। अब उन्हीं के आशीर्वाद व उद्बोधन से तथा ऋषभ विहार कमेटी के सहयोग से चैनल महालक्ष्मी, सांध्य महालक्ष्मी ने इस रविवार 17 सितंबर को दोपहर दो बजे से सायं 5 बजे तक ‘तीर्थ बचाओ धर्म बचाओ’ के तहत जैन धर्म तीर्थ संरक्षण कानूनी परिपेक्ष्य में कैसे? इसमें उन विषयों को गंभीर रूप से लिया गया है, जिस पर समाज जानकारी चाहता, कुछ पूछना चाहता है,
1. जैन तीर्थों के लिये पूजा के स्थान अधिनियम,1991 किस रूप में लागू है, क्या जो हमारे तीर्थों व मूर्तियों का स्वरूप बदल दिया गया है, वह वापस पूर्व की स्थिति में लाये जा सकते हैं?
2. ऐसे तीर्थों के मामले जिनमें न्यायालयों या कार्यालयों से स्टे, निर्णय आदि हमारे पक्ष में हो चुके हैं, पर सत्ता के दबाव में या प्रशासनिक उदासीनता या लापरवाही या अन्य बहुसंख्यक लोगों के दबाव में उन आदेशों का क्रियान्वयन या पालन नहीं हो रहा है, जैसा गिरनार प्रकरण, गोम्मटगिरी आदि में हो रहा है, तो इसका प्रभावी व मौके पर क्रियान्वयन कैसे हो?
3. जैन मूर्तियां जो पुलिस या न्यायालयों के मालखानों या म्यूजियमों में रखी है, वे कैसे प्राप्त हों?
4. जैन धर्म स्वत्रंत धर्म है, हिन्दू धर्म से पूर्णत: अलग धर्म है, इस संबंध मे अब तक विभिन्न न्यायालयों से हुए सभी निर्णयों का विवरण व सूची?
5. संविधान व अन्य अधिनियमों में जैन धर्म, मंदिर, मूर्ति, आयतन आदि व जैनों के संरक्षण व सुरक्षा के प्रावधानों का विवरण
6. वर्तमान में मंदिर / तीर्थ कैसे सुरक्षित रहें तथा साधुओं का विहार व प्रवास कैसे सुरक्षित रहे
7. जैन तीर्थ, मंदिर व ट्रस्ट के संबंध में RTI के तहत कोई कार्यवाही कैसे हो सकती है या इससे छूट मिली हुई है?
8. गिरनार प्रकरण की स्थिति व वांछित कार्यवाहियों पर विशेष चर्चा
9. सोशल मीडिया पर या मंचों पर चल अचल तीर्थ पर गलत बोलने वालों के प्रति क्या कार्यवाही
ऐसे अनेक ज्वलंत मुद्दो पर कानूनी आंकलन व निदान उपाय
इन पर विशेषज्ञों द्वारा प्रकाश डाला जायेगा, जिनमें रिटायर्ड जज, वकील, पूर्व आयुक्त आदि गणमान्य जन होंगे। यही नहीं इस अवसर पर जहां हर विषय पर आचार्य श्री का दिशा निर्देश व हमारे कर्तव्य अबोध की जागृति का मांगलिक उद्बोधन होगा, वहीं आप सभी की उपरोक्त विषयों पर, अपनी शंका जिज्ञासा का भी विशेषज्ञों से हर संभव समाधान प्राप्त कर सकते हैं।
हां, यह सभा उन सभी के लिये उपस्थित होने हेतु आवश्यक है, जो जैन तीर्थों के प्रति गंभीर रहते हैं, मन में कुछ करने का जज्बा है, हृदय कुछ करने को लालायित रहता है। ऐसी हर कमेटी, संस्था, चाहे राष्ट्रीय स्तर की हो या स्थानीय स्तर की, कोई मंदिर की कमेटी हो या कोई हम -आप जैसे कोई समाज श्रावक हो, क्यों कि आचार्य श्री बार-बार अपने उदबोधन में कहते हैं कि ‘एक ऐसी भी टीम होनी चाहिए, जो मौके -बेमौके भिड़ने की हिम्मत रखे, जिनकों संतों का आशीर्वाद हो, जो जूझने के लिए तैयार हो। क्योंकि जिन तीर्थों के साथ समाज जीवंत होता है, पहचान होती है, अगर वो ही नहीं रहेंगे, तो अगामी पीढ़ियों को क्या बतायेंगे?’
आइयेगा जरुर, अपने बहुमूल्य समय से कुछ समय निकालकर क्योंकि समाज, धर्म, संस्कृति के प्रति भी जैन कुल में जन्म लेने के बाद हमारा भी कर्तव्य है चल-अचल तीर्थों की सुरक्षा का। आचार्य श्री कहते भी हैं कि हर तीर्थ की सुरक्षा हो, मेरी आवाज पूरी दुनिया तक पहुंचे, आप जागे या ना जागे, दुनिया में कोई तो ऐसा होगा जो जैन धर्म के लिए अपनी जान अर्पित करने के लिये तैयार हो जाये, तब तक इसको आप लोग संभाल लें।
इस संदर्भ में और जानकारी के लिये 9720471212, 9811695459, 9350042532, 9910690823 पर सम्पर्क कर सकते हैं -सहयोग जरूरी, लगे तो लड़ो, तीर्थों की सुरक्षा के लिये गंभीर हैं, तत्पर हैं, पर आगे बढ़ने की जरुरत हैं। एक कदम हम चलें, एक कदम आप, कारवां अपने आप बढ़ता जायेगा।