मात्र 13 वर्ष का दीक्षार्थी हार्दिक समदड़िया- करोड़ों कमाने वालों की बजाय करोड़ों का त्याग करने वाले होते हैं ज्यादा खुशनसीब – राष्ट्र संत चंद्रप्रभ जी

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17 मार्च 2024 / फाल्गुन शुक्ल ए अष्टमी /चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी/
जोधपुर। कायलाना रोड स्थित संबोधि धाम में 12 मार्च 2024 को मात्र 13 वर्ष की उम्र में दीक्षा अंगीकार करने वाले हार्दिक समदड़िया का राष्ट्रसंत ललित प्रभ जी सागर, राष्ट्र संत चंद्रप्रभ जी महाराज और डॉ. मुनि शांति प्रिय सागर जी के सान्निध्य में सकल जैन समाज और संबोधि धाम ट्रस्ट मंडल द्वारा हार्दिक अभिनंदन और सम्मान किया गया।

संत चंद्र प्रभ जी ने कहा कि दीक्षा आत्मा से परमात्मा बनने की दिव्य सीढ़ी है। करोड़ों कमाने वालों की बजाय करोड़ों का त्याग करने वाले ज्यादा खुशनसीब होते हैं, क्योंकि इंसान चाहे जितना कमा ले, लेकिन फिर भी कमाने से तृप्ति नहीं मिल पाती है, पर त्याग करने से परम संतोष और परम सुख की अनुभूति हो जाती है। जहां आजकल के बच्चे मोबाइल और इंटरनेट की दुनिया में डूबे हुए रहते हैं, ऐसी स्थिति में अमीर परिवार से 13 वर्ष की उम्र में दीक्षा लेने वाले हार्दिक समदड़िया हम सबके लिए आदर्श है। जो बच्चे छोटी उम्र में दीक्षा और संन्यास के मार्ग पर कदम बढ़ा लेते हैं, वे ही आने वाले कल में समाज का अद्भुत कल्याण करके चले जाते हैं। इंसान जैसे-जैसे बड़ा होता है, उस पर मोह माया उतने ही हावी होती चली जाती है, पर छोटी उम्र में संसार का त्याग करना बेहद आसान होता है। ऐसे बच्चे ही आगे जाकर के किसी ध्रुव जी, नचिकेता जी, प्रहलाद जी, अतिमुक्तक जी, विवेकानंद जी, शंकराचार्य जी, तरुण सागर जी और ललित प्रभ सागर जी की तरह धरती के महान अवदान बन जाते हैं।

उन्होंने कहा कि आज की दुनिया में सब लोग भौतिकता में उलझे हुए और डूबे हुए हैं ऐसी स्थिति में कुछ जीव ही संसार से अध्यात्म की ओर बढ़ जाते हैं। हम संसार के प्रति सम्यक दृष्टि जगाएं और संसार में रहते हुए भी आध्यात्मिक फूल खिलाएं। जो कमल के फूल की तरह जीते हैं वही सबके लिए आदर्श बन जाते हैं। कितनी गजब की बात है कि लोग संतों को प्रणाम करना तो जानते हैं पर खुद संत नहीं बन पाते हैं। हर इंसान को संत बनने की और संन्यास लेने की आवश्यक भावना रखनी चाहिए। ऐसी भावना रखने वाले लोग ही संसार में नैतिक जीवन जी पाते हैं। अगर कोई मुझसे पूछे कि मुझे अगले जन्म में क्या बनना है, तो मैं कहूंगा कि या तो इस जन्म में मेरा मोक्ष हो जाए अन्यथा अगले जन्म में फिर संत बनने का सौभाग्य प्राप्त करूं। इस दुनिया में अगर कोई सबसे ज्यादा सुखी है, तो संत ही सुखी है, उन पर चिंता, तनाव क्रोध के निमित्त बेहद अल्प मात्रा में प्रभावित करते हैं।

दीक्षार्थी हार्दिक ने कहा कि मेरे जीवन का सौभाग्य है कि मुझे छोटी सी उम्र में जैन धर्म में दीक्षित होने का सौभाग्य प्राप्त हो रहा है। जीवन बहुत छोटा है, जो देखते ही देखते समाप्त हो जाता है। जो समय पर जागृत हो जाते हैं, वही परमात्मा को उपलब्ध हो जाते हैं।

इस अवसर पर संबोधि धाम के महामंत्री अशोक पारख, मंत्री देवेंद्र गेलड़ा, ओमकार वर्मा, अमराराम कुमावत, वर्धमान स्थानकवासी संघ अध्यक्ष सुकन राज धारीवाल, विवेक भंसाली, संगीता कोठारी, शैलेश कोठारी, महेंद्र भंसाली जैसलमेर जैन तीर्थ ट्रस्ट ने भी दीक्षार्थी के अभिनंदन में अपने विचार प्रस्तुत किए।

खरतरगच्छ महिला मंडल द्वारा दीक्षा जीवन पर नृत्य प्रस्तुत किया गया। इस दौरान एंजल कोठारी ने भी भाव नृत्य प्रस्तुत किया।