सोशल मीडिया पर एक पोस्ट बहुत वायरल हो रही है जिसमें लिखा जा रहा है कि पपौरा स्थित दयोदय गोशाला के पास ही सैकड़ों की संख्या में गायों के शव पड़े हुए हैं। कई शवों को जानवर नोंच रहे हैं, तो कुछ गायों के कंकाल बन गए हैं। ऐसे में अब शासन की गोशाला व्यवस्था के साथ ही गायों पर खर्च हो रहे बजट को लेकर सवाल उठ रहे हैं।
पपौरा स्थित दयोदय गोशाला की एक महिला कर्मचारी ने ही एक महीने में करीब १०० गायों की मौत होने की और उनके शव जंगल में फेंकने की बात कही है। गायों को लेकर प्रशासनबिलकुल भी सतर्क नजर नहींआ रहा है और न ही कोई व्यवस्था की जा रही है।
यह भी दावा किया गया है कि
गौरतलब है कि टीकमगढ़ शहर से सटे हुए पपौरा में दयोदय गोशाला संचालित है। वर्तमान में इस गोशाला में करीब 1700 गोवंश है। इस गोशाला में लगातार ही गायों की मौत हो रहीं हैं। एक माह के अंदर ही इस गोशाला में करीब 500 से ज्यादा गायों की मौत हो गई है। गोशाला प्रबंधन ने साक्ष्य छिपाने के उद्देश्य से गौवंश के शवों को गोशाला से करीब दो किलोमीटर दूर रमन्ना के जंगल में फिकवा दिया। ताकि गोशाला प्रबंधन की यह करतूत उजागर न हो। गौवंश की इतनीअधिक संख्या में मौत भूख- प्यास से हुई है या फिर ठंड से। यह पूरामामला जांच का विषय है। यह हालात दयोदय गोशाला के ही नहीं, बल्कि श्रीकृष्ण गोशाला मामौन, अंतौरा बड़ागांव, श्रीनगर गोशाला, रामनगर भगवंतपुरा, करमासन, हटा सहित विभिन्न गोशालाओं के बने हुए हैं।
और यह कहा गया कि पपौरा स्थित दयोदय गोशाला जैन समुदाय द्वारा संचालित की जाती है। पपौरा ट्रस्ट मंदिर द्वारा इस गोशाला के लिए जमीन दी गई थी। इसके बाद यहां पर करीब सन 2000 में गोशाला की शुरूआत हुई और तब से गौवंश रखे जा रहे हैं। वर्तमान में 1700 से अधिक गोवंश इस गोशाला में हैं। शासन द्वारा करीब 12 लाख रुपयेसालाना फंड भी दिया जाता है। इसके साथ ही जन- सहयोग से करीब 12 से 15 लाख रुपएएकत्र किया जाता है। इसकी बकायदा एक समिति बनी हुई है। लेकिन अब गोवंश की लगातारमौत होने के बाद कई सवाल उठ रहे हैं। समिति पर विभिन्न आरोप भी लग रहे हैं।
पर टीकमगढ़ के डीएम एसडीएम आदि कई ने मौके पर जाकर वस्तु स्थिति की जानकारी प्राप्त की उससे यह फैक्ट चेक सामने आया जो आपके समक्ष है
“गायों की दवाई भी हम करते हैं। गायों की मौत होने के बाद हम उन्हें रमन्ना के जंगल में फिकवाते हैं। ठंड के कारण ही 125 से ज्यादा जानवर मर चुके हैं। ठंड के कारण ही यह गाय मरी हैं। हम यहां पर गायों का गोबर करते हैं। साथ हीउनकी दवाई से लेकर सब ध्यान देते हैं। मृत होने पर गायों को उठवाकर जंगल में फेंकते हैं।”
– जशोदा बाई, कर्मचारी, दयोदय गौशाला पपौरा
“लखौरा, बड़माड़ई, पठा, सहित नगर- पालिका कर्मचारी और अन्य स्थानों पर गोवंश की मौत होने के बाद उनके शव रमन्ना के जंगल में डाल जाते हैं। हमारी गोशाला में मृत्युदर काफी कम है। कर्मचारी ने जल्दबाजी में 100 से ज्यादा गायों की मौत होने की बात कही है। जबकि 10- 12 गायों की मृत्यु ही हुई होगी। वह भी आयु पूरी होने पर या एक्सीडेंटल स्थिति में। अब इतने कंकाल या शव कहां से आए, यह मुझे नहीं पता।”
-बबलू बुखारिया, अध्यक्ष, दयोदय गौशाला पपौरा
“सरकार और प्रशासन को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि जिनके भाव गौ सेवा के हैं, उन्हें इस कार्य को सौंपे, जो इसे अपना परम कर्तव्य समझें। व्यक्ति अपनी एक-एक इंच जमीन के लिए हत्या तक कर देता है। ऐसे कई मामले सामने आए हैं, लेकिन
बेजुबान गोवंश के लिए आरक्षित गौचर की भूमियां बच नहीं रही हैं। मैं कहना चाहता हूं कि अगर गौशाला में 100 गाय की क्षमता है, तो 100 हों। रमन्ना के जंगल में इस प्रकार से कंकाल और शवों को कुत्ते नोंच रहे हैं, तो जांच होकर मुकदमा दर्ज हो जाना चाहिए। इसके लिए अगर जरूरत पड़ी, तो आंदोलन भी होगी। गौ सेवक इसमें पीछे नहीं हटेगा।”
– मुन्नीलाल यादव, गौसेवक, टीकमगढ़