बीमारियों को शरीर से कैसे दूर भगाएं, अभी तक हम समझ नहीं पाएं, शरीर बनाया बीमारियों का घर – 95 फीसदी का कारण ‘मैं’ स्वयं हूं

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9 सितम्बर 2022/ भाद्रपद शुक्ल चतुर्दशी /चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी/
शीर्षक पढ़कर एक बार चौक तो जायेंगे, पर जब चैनल महालक्ष्मी की कलम सांध्य महालक्ष्मी के पन्नों को रंगीन करती है, तो चिंतन को हकीकत की तह तक पहुंचने में, गहराई तक पहुंचने की कोशिश जरूर करती है, वो भी लीक और परम्परा से हटकर।

पयुर्षण- जी हां, संवत्सरी और दशलक्षण का गठजोड़, जो जोड़ने की कोशिश भी की, पर गांठ लगी रह गई, यानि बस कहने को सामूहिक पयुर्षण, 8 जमा 10 दिन यानि अब 18 दिन का पयुर्षण, जिसमें संतवाद, पंथवाद के प्रदूषण को समाप्त करने की आशा बंधी है।

पयुर्षण मनाया, पर फिर नहीं अपनाया, पर मंथन करने से पहले वर्तमान की तस्वीर देखते हैं, व्यक्ति से समाज से राष्ट्र तक, तो हकीकत की तह पर इस बात से इंकार ही नहीं कर सकते। आज हम सब अनेक मुसीबतों, तकनीकी परेशानियों, मानसिक समस्याओं, गहराती बीमारियों जैसे आतंकवाद, प्रदूषण, भ्रष्टाचार, महंगाई, मिलावट, कर चोरी, हेराफेरी, अमीर चढ़ता, गरीब गिरता, बढ़ता अंतर, लूटपाट, गर्भपात, भ्रूण हत्या, बढ़ों से चोरी, छोटो से सीनाजोरी, छुआछात, अपने को उठाना नहीं पर दूसरे को गिराना, पारिवारिक कलह, तनाव, डिप्रेशन, हार्ट अटैक, लव जिहाद, धर्म परिवर्तन, सुसाइड, अनिद्रा, असमान छूती बेरोजगारी दर, रोड रेज, धर्म के नाम हिंसा उन्माद आदि किसी से छिपी नहीं है। केन्द्र हो या राज्य सरकारें या सामाजिक शीर्ष कमेटियां, सभी इनसे निजात पाने के फार्मूलें ढूंढते रहते हैं।

इनमें से 95 फीसदी का कारण ‘मैं’ स्वयं हूं। अगर व्यक्तिगत रूप से देखे तो 95 फीसदी इसका कारण बाहर नहीं मेरे भीतर है, जबकि वो मेरा नहीं है, पर मैंने ना चाहते हुए भी उसे अपने भीतर जगह दी है, चस्पा कर लिया है। इन अनबूझी पहेलियों को आईये सुलझाने की कोशिश करते हैं सांध्य महालक्ष्मी की कलम से।

शीर्षक पर लौटते हैं, 18 दिनों का ‘पयुर्षण मनाया’- हां, हर जैनी यह जरूर कहेगा, लेवल ऊंचा नीचा हो सकता है, पर मनाया सबने। पर शीर्षक के दूसरे मार्ग पर पयुर्षण अपनाया नहीं। जी हां, यह सांध्य महालक्ष्मी का चिंतन है, क्योंकि जब पयुर्षण अपना लिया, उसके बाद क्षमावाणी की जरूरत ही नहीं पड़ेगी। जब रात का अंधेरा सूर्य की रोशनी से भाग जाये, फिर दीपक की क्या जरुरत?

हां, तो हमने अपने दुश्मनों को अपने भीतर जगह दे रखी है, जिससे आज वो सब समस्यायें पैदा हुई हैं, जो ऊपर लिखी हैं। राजनीतिक गलियारा आतंकवाद, भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, ब्लैकमनी, मंहगाई, मिलावट, कर चोरी, ब्लैक मार्केटिंग से जूझ रहा है,
तो वही सामाजिक स्तर पर पंथवाद, लिंगभेद, साम्प्रदायिकता भ्रूण हत्या, लव जेहाद, भेदभाव ने अपनी जड़ें जमा ली हैं।
पारिवारिक माहौल में रिश्तों में दरार, बड़Þों का असम्मान, टूटते परिवार, जरा सी बात पर तलाक, बढ़ता कलह, घटता विश्वास और आपसी भाईचारा वर्तमान में बाढ़ की समस्या की तरह फैलता जा रहा है।
व्यक्तिगत स्तर पर भी हम अछूते नहीं है, हार्टअटैक, ब्रेन हेमरेज, किडनी फेल, डिप्रेशन, हाई ब्लडप्रेशर, अनिद्रा, सिरदर्द, सुसाइड में से कोई ना कोई हर के अंदर चौकड़ी मार कर बैठा है। अब इन सबसे निजात पानी है, तो नीचे से सफाई शुरु करनी होगी यानि स्वयं से, अपने से यानि पयुर्षण को मनाना नहीं, अपनाना होगा।

क्रोध को टाटा- क्षमा को लाओ, बीमारी को दूर भगाओ। जी हां, सबसे पहले पयुर्षण के पहले दिन की बात करें क्षमा से ज्यादा, क्रोध का बढ़ता प्रभाव, वैसे विश्वास कीजिए क्षमा के बिना, ना तो जी सकते हैं और जन्म के साथ ही क्षमा को लिये आते हैं। क्या आप जानते हैं? आज भारत में 89 फीसदी और विश्व में 86 फीसदी लोग तनाव से पीड़ित हैं। हर दस में से नौ भारतीय, और इसका सबसे बड़ा कारण है क्रोध और सबसे अचूक इलाज है ‘क्षमा’।

शास्त्रों की, संतों के प्रवचन से अलग, वैज्ञानिक कारणों को आधार बनाते हैं, क्योंकि आज हमें ना भगवान की, ना संतों की, ना शास्त्रों की बातों पर विश्वास है, केवल डॉक्टरों की, जो लाखों की वसूली करता है और इन 90 फीसदी में से दस फीसदी को भगवान भरोसे छोड़ भी देता है। वैज्ञानिक तर्क ये ही बात करते हैं, गुस्सा करने से धमनियों में कैल्शियम डिपोजिट हो जाता है, जो रक्त के आवागमन को बाधित कर ब्रेन हेमरेज का कारण तीन गुना बढ़Þा देता है। यह रिपोर्ट हमारी नहीं, वाशिगंटन यूनिर्वसिटी की है।

3D medical background with male head and brain on DNA strands

इसी तरह डब्लूएचओ की रिपोर्ट के अनुसार आज विश्व में 350 करोड़ के लगभग मेंटल डिसआर्डर यानि दिमागी परेशानी से पीड़ित हैं। हर साल इतनी मौतें क्रोध व इससे संबधित कारणों से हो जाती हैं, जितनी कोरोना से नहीं हुई।
तो क्या सोचा है आपने, अरे शास्त्रों की नहीं मानते तो कोई बात नहीं, अपनी हेल्थ और वेल्थ के लिये तो क्रोध को जीवन से भगाओं। क्षमा अपने आप आ जायेगी।

जो मानते हैं स्वयं को सबसे बड़े हैं,
वे धर्म से अभी बहुत दूर खड़े हैं

अचानक ‘निजानुभव शतक’ में आचार्य श्री विद्यासागर जी द्वारा लिखी ये लाइनें याद आ गई। अगर दूसरे धर्म उत्तम मार्दव को अपना लिया होता तो निश्चित आज पंथवाद-संतवाद-मंदिरवाद बंटवारा खत्म हो गया होता।
अहंकार – मान – अभिमान – सम्मान – बस यही कारण है दिल की बीमारियों के लिये। आचार्य श्री श्रुतसागर जी ने सांध्य महालक्ष्मी को अभी पिछले सप्ताह भेंट में बताया कि एंग्जायटी, मानसिक व हार्ट की बीमारियां इसी कारण हैं
हकीकत में उत्तम मार्दव मंदिरों, सभाओं में मना तो लिया पर अपनाया आज तक नहीं। बंटने की पटकथा अगर कभी लिखी गई या लिखी जा रही है तो वह इसी ऊंची मूंछ के कारण, अपने अहम की पुष्टि के लिये।

स्वीकारों, मैं पापी हूं, मैं दुरात्मा हूं
क्या कह रहा है सांध्य महालक्ष्मी, मायाचारी कर रहा है। पर हम यह नहीं कह रहे, यह तो प्रवचन में आचार्य श्री विद्यासागरजी ने कहा, अब शायद हजम हो जाये। आचार्य श्री की वाणी 100% शास्त्र सम्मत, पर आचार्य श्री को हम सब मानते हैं, पर उनकी नहीं मानते। यह जो मायाचारी चालाकी, अंदर कुछ बाहर कुछ, वाली बातें हमारे पेट को खराब करती है, पेट की बीमारियों की जड़ यही मायाचारी है। डॉक्टरों से टैस्ट करवाकर फिर मंहगे इलाज कराने वाले, हमारे ही स्वभाव रूपी रामबाण आर्जव को उजागर नहीं कर पाते। प्रकृति से हमें कितना बढ़िया वरदान मिला है, सब दवा हमारे भीतर ही स्वभाव के रूप में और धक्के खाते हैं हम बाहर में।

लोभ बीमारियों का बाप
शुगर, लकवा, कंपकपाना इसका कारण पढ़ते हैं – लोभ पाप का बाप बखाना, पर हेल्थ वेल्थ के मार्डन ख्याल के लोग, बीमारी से डरते हैं, पर पाप से नहीं। जबकि पाप ही बीमारी की जड़ है। आचार्य श्री श्रुत सागर जी ने सांध्य महालक्ष्मी को बताया कि यह लोभ शारीरिक शक्ति को कमजोर करता है, हाथ पैर कंपकंपाने लगते हैं। यहां तक कि लकवा तक किसी अंग को जकड़ लेता है और सबसे खतरनाक बात है दुनिया में हर छठा शुगर से बीमार भारत में है और गिनती के हिसाब से चीन के बाद दूसरे नम्बर पर आता है भारत। आज भी भारत में साढ़े सात करोड़ से ज्यादा शुगर से पीड़ित हैं, जो 10 सालों में ही दोगुने हो जायेंगे। इस शुगर का कारण है लोभ, बटोरो-बटोरो, दिन रात जोड़ो।

डॉक्टर वकील के चक्कर लगते हैं। जमा किया पैसा, खर्च होते ज्यादा देर नहीं लगती और अगर हम आवश्यकता तक सीमित रहे, कल-परसों के लिये जोड़ें, पर अगली दो पीढ़ियों तक जोड़ने के फेर में स्वास्थ्य को ही ना ले डूबे।
क्रोध, मान, माया, लोभ चारों कषाय हमारे स्वभाव के विपरीत है और सभी गंभीर बीमारियों की जड़ है। An Apple a day keeps Doctor away नहीं कहना, अब तो कषायों को मत फटकने दो पास, स्वस्थता का सदा रहे साथ।
बस इसीलिये कहा कि हमने पयुर्षण मनाया, पर फिर नहीं अपनाया।

बुरा लगा हो तो कृपया क्षमा कीजियेगा।
– शरद जैन –

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यह पूरा लेख तथा और भी अनेक चिंतन हेतु लेख 36 पृष्ठीय सांध्य महालक्ष्मी के कलरफुल क्षमावाणी अंक 2022 में पढ़िए
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