जीवन की सारी गंदगी को अपनी दस-धर्म रूपी तरंगों के द्वारा बाहर करता, आत्मकल्याण का #दसलक्षण महापर्व – आचार्य अतिवीर मुनिराज

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30 अगस्त 2022/ भाद्रपद शुक्ल तृतीया /चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी/
दसलक्षण (पर्युषण) पर्व साल में तीन बार आते हैं जो माघ, चैत्र, भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी से प्रारम्भ होकर चतुर्दशी तक चलते है| दसलक्षण पर्व एक ऐसा पर्व है, जो आदमी के जीवन की सारी गंदगी को अपनी दस-धर्म रूपी तरंगों के द्वारा बाहर करता है और जीवन को शीतल एवं साफ-सुथरा बनाता है। दसलक्षण पर्व में धर्म के दस लक्षणों को जीवन में अंगीकार कर आत्मकल्याण का मार्ग प्रशस्त होता| धर्म के दस लक्षण निम्न प्रकार हैं –

1. उत्तम क्षमा – क्षमा आत्मा का स्वभाव है| इसके विभाव रूप परिणमन से ही जीव क्रोधी हो जाता है और विनाश की ओर चला जाता है| हमें उत्तम क्षमा को अपनाकर क्रोध ना करने का संकल्प लेना चाहिए और प्रेम से जीवन व्यतीत करना चाहिए|

2. उत्तम मार्दव – मृदुता अर्थात कोमलता का नाम मार्दव है और मान (अहंकार) के अभाव में ही मार्दव धर्म प्रकट होता है| आचार्यों ने मान को महाविष के समान कहा है, जिसके कारण संसार में हमें नीच गति प्राप्त होती है| यदि हमें अपना मनुष्य भव सार्थक करना है तो हमें अहंकार छोड़कर मार्दव धर्म को अपनाना होगा|

3. उत्तम आर्जव – ऋजुता अर्थात सरलता का नाम आर्जव है| मायाचारी कभी सफलता नहीं पा सकता, आत्म-कल्याण के लिए सरल होना आवश्यक है| छल, कपट और मायाचारी के अभाव में ही आर्जव धर्म प्रकट होता है| यदि हमें अपना मनुष्य भव सार्थक करना है तो हमें मायाचारी छोड़कर सरलता अपनानी होगी|

4. उत्तम शौच – शुचिता अर्थात पवित्रता का नाम शौच है, जो कि लोभ कषाय के अभाव में प्रकट होता है| लोभी लोभ के कारण पाप कर बैठता है और अपना जीवन नष्ट कर लेता है| हमारे आत्मिक विकास में लोभ कषाय एक विशाल पर्वत के समान बाधक है| इसलिए हमें उत्तम शौच धर्म को अपनाकर अपने जीवन में शुचिता लानी चाहिए|

5. उत्तम सत्य – झूठे वचनों का त्याग करना और आत्मा में सत्याचरण लाना सत्य धर्म है| जो वस्तु जैसी है, उसे वैसा ही मानना सत्य है| सत्य के विपरीत मिथ्यात्व ही समस्त संसार में भ्रमण का कारण है| इसलिए हमें सत्य धर्म को अंगीकार करना चाहिए, यही लक्षण हमें मोक्ष की ओर ले जाता है|

6. उत्तम संयम – संयम धारण किये बिना मोक्ष संभव नहीं है| पाँच इन्द्रियों और मन को नियंत्रित रखना इन्द्रिय संयम तथा षट्कायिक जीवों की रक्षा करना प्राणी संयम है| ये दो पटरी अगर बन गयी तो जीवन की गाड़ी मोक्ष तक जा सकती है| हमें हिंसा आदि दोष से बचने के लिए संयमपूर्वक जीवन व्यतीत करना चाहिए|

7. उत्तम तप – “इच्छा निरोधः तपः” अर्थात इच्छाओं का निरोध करना तप है| पवित्र विचारों के साथ शक्ति अनुसार की गयी तपस्या से कर्मों की निर्जरा होती है और कर्मों की निर्जरा करके ही है मोक्ष प्राप्त कर सकते हैं, इसलिए हमें तप करना चाहिए|

8. उत्तम त्याग – त्याग के बिना मनुष्य महान नहीं बनता और जब तक समस्त अंतरंग व बहिरंग परिग्रह का त्याग ना हो तब तक मोक्ष की प्राप्ति भी संभव नहीं| हमें अपने जीवन में चारों प्रकार का दान करना चाहिए और विषय-कषायों का त्याग करना चाहिए| तभी हमारा मनुष्य भव सार्थक होगा|

9. उत्तम आकिंचन्य – त्याग करना के पश्चात् त्याग के अहम् का भी त्याग करना आकिंचन्य धर्म है| “मैं” और “मेरा” ये भी एक परिग्रह है| मोक्ष महल तक पहुँचने के लिए इसका त्याग आवश्यक है| इस संसार में हमारा कुछ भी नहीं है, यहाँ तक कि यह शरीर भी हमारा नहीं है| ऐसा विचार करते हुए हमें आकिंचन्य धर्म अंगीकार करना चाहिए|

10. उत्तम ब्रह्मचर्य – परद्रव्यों से रहित शुद्ध-बुद्ध अपनी आत्मा में जो चर्या अर्थात लीनता होती है, उसे ब्रह्मचर्य कहते हैं| साधु-संतों के लिए सर्वथा स्त्री संसर्ग का त्याग तथा गृहस्थों के लिए स्वपत्नी संतोष व्रत ही व्यवहार से ब्रह्मचर्य धर्म है| ब्रह्मचर्य धर्म अंगीकार किये बिना परमात्म पद की प्राप्ति संभव नहीं है|

क्षमावाणी पर्व – क्षमा मांगने की वस्तु नहीं बल्कि धारण करने की वस्तु है| क्षमा आत्मा का स्वभाव है| यह क्षमा आत्मबल को पुष्ट करती है, जीवन की महानता की परिचायक है, परम सुख सरिता है, आत्मदर्शन का दिव्या दर्पण है, महापुरुषों की जीवन संगिनी है| अतः मन की मलिनता, वाणी की वक्रता और काया की कुटिलता त्याग कर सभी आत्माओं के साथ शुद्ध अंतःकरण पूर्वक क्षमायाचना करें|