08 सितंबर 2024/ भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी पंचमी//चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी/शरद जैन /
धर्म मनाने का समय आ गया है, तो क्या धर्म को मनाया भी जाता है, नहीं अंगीकार किया जाता है, उसे धारण किया जाता है। धर्म क्या है, अहिंसा है, विवेक है, दया है, रत्नत्रय है, जीव दया है, वस्तु स्वभाव है या जो जैसा है वैसा है, जो है सो है, जी हां, धर्म को अनेक रूप में परिभाषित कर सकते हैं। सान्ध्य महालक्ष्मी आज वर्तमान परिपेक्ष्य में इसका चिंतन दे रहा है, मत कहिये आगम में कहां लिखा है। यह उनके लिये है, जो स्वाध्याय नहीं कर पाते।
धर्म मिठाई है, जैसे रसगुल्ला हो या लाडु या गुलाब जामुन या बर्फी, सभी मिठाई हैं। उसी तरह ऊपर जो कहा सभी धर्म है। मिठाई यानि मिठास देने वाली वस्तु, जिह्वा पर ही उसका स्वाद आता है, बाकि कोई अंतर नहीं है, पर उसको खाने से हर्ष होता है, अच्छा लगता है। इसी तरह यह ‘धर्म’ रूपी मिठाई आपके भीतर के लिये है। इस शरीर के अंदर आत्मा है, जो अजर अमर है, उसी को आनंद देती है, यह धर्म रूपी मिठाई। इसका एक रूप दशलक्षण के रूप में, पर्युषण के रूप में भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी से चतुर्दशी तक दस दिन। पर वास्तव में यह केवल 10 दिन या साल में 3 बार नहीं, सभी 365 दिन के लिये। हर के आगे उत्तम लगा होता है, पर उत्तम रूप में महाव्रती ही दस धर्मों का पालन कर पाते हैं, करते हैं, पर एक साधारण जैन उसे एक देश, एक भाग में तो पालन कर ही सकता है, या कहें करना भी चाहिए। आज सान्ध्य महालक्ष्मी भी इन दस धर्मों को वर्तमान परिदृश्य में, जब वह इस दसलक्षण पर्व को केवल मंदिर जाने से ज्यादा पालन करने से दूर भागता है, या उसे क्षमा से ब्रह्मचर्य तक का पालन बहुत कठोर लगता है, तब उन्हें कैसे सहजता से पालन करें, एक शुरूआत के रूप में। हां, यह केवल उन्हीं के लिये, जो अब तक दूर रहते थे, उन्हीं के लिये, बेसिक रूप में शुरूआत के लिये पहल है। दस धर्मों का जीवन में, चाहे किसी पड़ाव पर हो, 15 के या 30वें या फिर 50 या साठ साल के पड़ाव पर, उन सबके लिए, जिन्होंने अब तक प्रयास नहीं किया, उनके लिये।
1. क्षमा : गल्तियां हर से होती हैं, सुधार की जगह भी होती है। एक प्रयास करें कि छोटी-छोटी दूसरे की गलती को अनदेखा करें, जिनसे अहित ना हो। प्यार से, प्रेम से, मुस्कराकर कह दें- तुमने ऐसा किया, यह गलत है, आगे से ऐसा मत करना। बहुत सहजता के साथ। और अपने से पालन यानि गुस्से पर कंट्रोल। यह ध्यान रखना जो बात-बात पर क्रोध करता है, भड़कता है, वो प्रभावहीन हो जाता है। लोग यही कहते हैं, ये तो इसकी आदत है। और जो कभी कभार गुस्सा करता है, उसका असर होता है। तो शुरू में ऐसा ही कर लीजिये, अपने को अधिक प्रभावक बनाने के लिये गुस्सा करना कम कर दीजिये, देखिये फिर आपके गुस्से का अधिक प्रभाव होगा। और हां, रात को सोते समय इतना चिंतन जरूर कर लीजिए कि जो गुस्सा आज आपने किया, क्या वह जरूरी था? और ऐसी गलती पर कोई आप पर ऐसे ही गुस्सा करता तो क्या आप उसे ठीक मानते। शुरूआत में क्षमा को इसी तरह मानकर आगे तो बढ़े, अपने व्यवहार में किया गया परिवर्तन आपको टेंशन रहित करेगा, शांति प्रदान करेगा, मानसिक रूप से ज्यादा हेल्दी महसूस करेंगे आप, बस यही है ‘क्षमा’ धर्म की शुरूआती खास बात।
2. मार्दव : मोटे अर्थ में मर्दन करना। आज घमण्ड सिर चढ़कर बोलता है, दूसरे के व्यवहार से हम उसे घमण्डी कह देते हैं, पर जब वही व्यवहार हम करें तो घमण्डी कहलाना पसंद नहीं आता। कभी सोचा है कि प्यार से जो काम हो जाता है, वह अपनी ताकत दिखाकर, दिल से नहीं करवाया जा सकता। हां, आप ऊंचे हैं, पद में बड़े हैं, रिश्ते में ऊपर हैं, पर उसमें बड़प्पन आपकी मूंछ पर ताव से ज्यादा, मीठी बोली और मुस्कान से ज्यादा दिखता है। कोई पीठ पीछे आपको घमंडी कहे, ये कोई जबरन नहीं मिटा सकता। पर अगर आपने बड़े होते हुए भी छोटो के बीच, नीचे वालों से, अपनी कुर्सी-पद की ताकत के बिना, घर में अपने बड़े होने को भूलकर व्यवहार किया, तो आपको जो बदले में मिलेगा, उसका सकुकून आपके दिल को हर्षित करेगा, हार्ट बीट को नार्मल रखेगा, दिल पर अनावश्यक दबाव हटेगा, दिमाग अच्छा काम करेगा। बस मार्दव की शुरूआत, कड़क-घमंडी स्वभाव से निजात।
3. आर्जव – हमेशा हम अपने को कुछ ज्यादा दिखाने की कोशिश करते हैं, या कहें कुछ ना कुछ बनावटी, दूसरे को प्रभावित करने के लिये, आकर्षित करने के लिये, इसमें हम चालाकपने से बाज नहीं आते। दूसरे को उल्लू बनाने की कोशिश करते हैं। क्या कभी आप महसूस नहीं करते कि आपकी चालाकी पकड़ी गई तो, बनी बनाई इज्जत पर बुरा असर पड़ेगा। जरूरत से ज्यादा दिखाना, बनाना, पेट की बीमारियों को बढ़ाता है, दिमाग की पाजीटिविटी को खत्म करता है। जब आपकी चालाकी की पोल खुलती है, तो डिप्रेशन के शिकार, शर्मसार भी होना पड़ता है। कोशिश तो करें, फालतू की चालाकी से दूर रहने की। सरल स्वभाव से जो जीना जानता है, उससे मानसिक शांति तो मिलती है, दूसरे पर प्रभाव भी अच्छा पड़ता है। सरल स्वभावी बनिये, हेराफेरी, ज्यादा होशियारी से बाज आइये, समझ लीजिये, ‘आर्जव’ को पालन कर रहे हैं आप।
4. शौच – हां नये-नये तो इसे वो समझ लेते हैं, जिसे पेट हल्का करना कहते हैं। पर शौच है पेट को नहीं, पेटी को अनावश्यक न फुलाना। वैसे लालची तो सभी होते हैं, पर उसमें भी पैमाना होता है, कम और ज्यादा का। ज्यादा लालच की सीढ़ी गलत काम से शुरू होती है, जिसे पाप भी कहते हैं। ईमानदारी को मिटाती जाती है लालची निगाह। जरूरत से ज्यादा चाहना, फिर उस चाहत के लिये गलत काम करना, गलती को छिपाना, ये सब दिमाग पर असर डालता, ब्लडप्रेशर बढ़ाता है, आपकी शांति को लूट लेता है। इतना समझ लें इच्छाओं का अंत नहीं है, और लालच गलत काम करवाने का आधार है, आपकी छवि पर दाग यही लगाता है। कोशिश कीजिये संतोष में जीने की। हर चीज की बजाय, सही रास्ते से जो मिले, उसके लिये मेहनत, पुरुषार्थ किया जाये तो बुढ़ापा बीमारी से बचेगा। ज्यादा गलत कमाना, डॉक्टर-वकील के घर जाना, कोर्ट अस्पताल में जीवन बिताना। कम लालच, कम तनाव, दिमाग दुरुस्त, दिखे अंदर से तंदरुरस्त।
5. सत्य – हां यह तो नहीं कर सकते, विशेष कर तब, जब मोबाइल हो साथ। आप क्या जानते हैं, जब से मोबाइल आया है, अनावश्यक झूठ बोलना 33 फीसदी बढ़ गया। झूठ क्यों बोलते हैं हम? कभी इसका विश्लेषण किया है। आधे झूठ तो केवल तफरी के लिये, मजाक के लिये, बिना किसी प्रयोजन के, 20 फीसदी आप केवल अपनी गलती को छिपाने के लिये, और गलती वो, जो अनावश्यक थी, जरूरत नहीं थी। दस फीसदी आप परिजनों से बोलते हैं, यानि हर दसवां झूठ परिवार से, जो बिना सिर पैर का होता है। होते कहीं, बताते कहीं। जाना कहीं, बताते कहीं। जो किया नहीं, भूल गये, वह छिपा कर दिया। ये झूठ रिश्तों में खटास डालते हैं, जिसका आपको पता नहीं चलता। यानि 80 फीसदी झूठ बेमतलब का, और इसका असर आपकी छवि पर पड़ता है। अरे, ये तो झूठा है, गप्पी है, फालतू फेंकता है। हां, एक बात और सत्य कभी बोला, लिखा नहीं जा सकता, बस अनुभव किया जा सकता है। आज इसी में कमी की बात कर रहे हैं, आपकी पर्सनेलिटी निखारने के लिये, छवि सुधारने के लिये जीवन में हैप्पीनेस लाने के लिये।
हिंदा में अ से ज्ञ तक, अंग्रेजी में ए से जेड तक के समित शब्द सत्य नहीं लिख सकते, बोल सकते। केवल एक पक्ष ही कह सकते हैं। सत्य की साधना, मौन की साधना है। यानि सत्य से जीना है, तो मौन रहना सीखिये। मौन रहकर अनावश्यक झूठ को छोड़ा जा सकता है।
6. संयम – मतलब ब्रेक। बिना ब्रेक की गाड़ी कभी चलाते है आप, ना बाबा ना, मरना है क्या? बस उसी तरह जिंदगी में भी ब्रेक की आवश्यकता है। बेतहाशा भाग-दौड़ रोकिये। ब्रेन स्ट्रोक की 30 फीसदी गुंजाइश खत्म हो जाती है, जब जीवन में संयम की बात आ जाती है। संयम माने पागलपन की चाहतें, संतोष रखना, कभी नमक कम, तो कभी चीनी कम, आसमान सिर पर न उठाना। ज्यादा है तो मांग लेना, पर मुंह से अपशब्द, अनर्गल बातें नहीं। पूरा फल न मिलना, तो बिलबिलाना, छटपटाना नहीं। दूसरे के तेवर देखकर न बिगड़ना, न हीनता लाना। जैसे तेरी साड़ी मेरी से ज्यादा सफेद कैसे? तेरे पास यह, तो मेरे पास क्यों नहीं। बेवजह की स्पर्धा आपको दिमागी रोगी बनाती है। जितना है, अभी उतना काफी है। एक बार करके देखिये, रात को अच्छी नींद आयेगी। घर-परिवार वाले आपसे खुश रहेंगे।
7. तप – हां मत तपिये अभी, मतलब चारों प्रकार के भोजन का त्याग संभव नहीं। होगा भी कैसे? जब मुंह दिन-रात में कितनी बार चला, इसका कभी पता नहीं चला, तो फिर, ये नहीं होगा, मत करिये। पर इतना करिये, जब पेट भरकर खा लें, तब इतना अपने से वचन ले लो, अब एक घंटे कुछ नहीं। हम एक घंटे के अंतराल को धीरे-धीरे बढ़ायें। पर बढ़े, तो फिर तोड़ना नहीं। और हां, जब सोने लगे, तब प्रण करें, उठने से पहले तक कुछ खायेंगे नहीं। जी हां, यह भी व्रत है। 8 घंटे सोते समय आपका व्रत हो गया। तीन दिन में एक व्रत। इससे आपकी बॉडी के अंदरूनी पाटर््स की उम्र बढ़ेगी, उस मशीनरी को आराम मिलेगा। बुढ़ापा जल्दी नहीं आएगा। आप ज्यादा स्वस्थ महसूस करेंगे।
8. त्याग – अभी त्याग को इतना समझ लें, किसी अपनी चीज को छोड़ना। अब ये कैसे संभव होगा? अपनी को तो छाती पर चिपका कर रखते हैं। खैर जेब से एक-दो रुपये तो रोज निकाल सकते हैं। कुछ भी निकालिये, किसी जरूरतमंद को देने के लिये। मंदिर की गुल्लक के लिये। बस सोच लीजिये एक रुपये रोज मंदिर की गुल्लक मे डालूंगा। आपका दान यानि त्याग भी हो जाएगा और मंदिर के दर्शन भी। किसी को सड़क पार करा देना, भूखे को खाना, प्यासे को पानी, किसी गरीब की सहायता। ये परोपकार के काम हैं, त्याग की शुरूआत कुछ ऐसे ही। हां, यह कठिन नहीं है, तो इसी तरह बढ़ें और इस धर्म का पालन करें।
9. आकिंचन – कितने जोड़े कपड़े पहनते हैं, एक माह में, साल में, 10-20 इतने ही, जिनमें कुछ स्पेशल। फिर है कितने, इससे दो गुने। इसी तरह और भी सामान, चीजें, जो आप कहते हैं, मेरी हैं, जोड़ रखी हैं, कोई वस्तु जो फालतू नजर आती है, पहले उसे छोड़ दीजिए। जिसकी आवश्यकता नहीं, उसे अपने मन से निकालिये, उसमें अपनत्व हटाइये। वस्तु का होना महत्वपूर्ण नहीं, उससे ममत्व छोड़ना, अपनापन छोड़ना महत्वपूर्ण है और यही है आकिंचन धर्म। शुरूआत में उन चीजों से अपनापन छोड़े, जिनकी आवश्यकता नहीं, पहली सीढ़ी यही है, जरूरत से ज्यादा पर, अपना अधिकार छोड़ना। यह सब सामान हो या ना हो, मन में उनका ख्याल भी परिग्रह है। छोड़ कर देखिये अपनेपन का, बस हो गया अकिंचन धर्म।
10. ब्रह्मचर्य – नौ की आपने शुरूआत कर दी, अब दसवें की बारी है, हां, इसका मतलब यह नहीं कि आप ब्रह्मचारी बन जायें। वैसे तो कहते हैं ब्रह्म में लीन होना, यानि आत्मा का चिंतन। पर आप को यह कठिन लगेगा। अपनी माता को माता, बहन को बहन, बेटी को बेटी, पत्नी को पत्नी मानना। अरे, ये क्या? यह तो है ही, इसमें अलग क्या? हां, अलग कुछ नहीं। इसी तरह बाहर वालों को भी उसी रूप में देखना, वो पड़ोसन है, किसी की बहन है, बेटी है और उसके प्रति वही व्यवहार जैसा अपनी बेटी-बहन से करते हो, वैसा ही हो। पत्नी के प्रति नजरिया जो है, वह उसी तक सीमित रहे। नजर में खोट ना होना। जब आपका स्वभाव बिगड़ैल का नहीं, तो आपके लिये इसको पालना कठिन है ही नहीं।
शुरू में ऐसे ही शुरूआत करें, फिर इसको 10 दिन तक सीमित नहीं रखें, आगे जारी रखें। यह आपकी अच्छी शुरूआत होगी, दसलक्षण को मानना, अपनाना, जीवन में ढालना, यही तो है पर्युषण। और यह दस दिन तक सीमित नहीं रहेगा, पूरे 365 दिन। इतना तो कर ही सकते हैं…।