किसकी लापरवाही? कोरोना से दो दिनों में 6 संतों का देवलोकगमन

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॰ जानकारी छिपाना, समस्या का हल नहीं
॰ युवा समाधि का दोषी कौन?
हमारी कुव्यवस्था और चुप्पी?
॰ एक वर्ग जागना नहीं,
सुलाना क्यों चाहता है?

॰ जानकारी छिपाना, समस्या का हल नहीं
॰ युवा समाधि का दोषी कौन?
हमारी कुव्यवस्था और चुप्पी?
॰ एक वर्ग जागना नहीं,
सुलाना क्यों चाहता है?

सान्ध्य महालक्ष्मी / 30 अप्रैल 2021

24वें तीर्थंकर श्री महावीर स्वामी के 2620वें जन्म कल्याणक से एक दिन पहले चारों संतों और एक दिन बाद में दो संतों का देवलोकगमन हो गया। इतनी बड़ी क्षति संभवत: निकट के इतिहास में जैन समाज ने आज तक नहीं देखी होगी। फिर भी ‘हम’ क्यों लापरवाही और सच्चाई को छिपाने और अपने दोषों को सुधारने पर जोर नहीं देते?

24 अप्रैल 2021 को अहमदाबाद शहर से ही चार संतों के देवलोकगमन की सूचनायें मिली और पूरे दिलो-दिमाग को झकझोर कर रख दिया। कोरोना छोटे-बड़े, स्त्री-पुरुष, दिगम्बर-श्वेतांबर, पूजनीय – वंदनीय कोई भेद नहीं कर रहा, कोरोना पहुंचा हम दें और बच जायें, पर जिस तक पहुंचा, उसके साथ भयावह त्रासदी हो जाये, यह स्पष्ट दिख रहा है।

॰ बुद्धि सागर सूरिजी समुदाय के पुनीत धाम तीर्थ के प्रणेता आचार्य श्री प्रसन्न कीर्ति सागरजी सूरिश्वरजी का कोरोना संक्रमण से सायं 4.05 मिनट पर कालधर्म हुआ और 90 मिनट बाद अग्नि संस्कार कर दिये गये।

॰ 1999 में गुजरात में श्री जैनसंघ भक्ति मंडल का सूत्रपात कर, वर्तमान में उनकी संख्या 25 तक पहुंचाने वाले सागर समुदाय के आचार्य श्री निरंजन सागर सूरिजी का कालधर्म कोरोना के कारण वेजलपुर, अहमदाबाद में हो गया।

॰ मात्र 13 वर्ष की अल्पायु में दीक्षा लेकर 70 वर्ष की लम्बी दीक्षा वाली दहलावली समाज के गच्छादिपति आचार्य श्री धर्म विजय जी के श्री विजय अभय देव सूरिश्वर जी महाराज की आज्ञानुवर्ती साध्वी श्री विमलश्री मा. सा. की शिष्या साध्वी श्री सूर्ययशा श्री का शनिवार 24 अप्रैल को सायं 5.25 पर कोरोना से कालधर्म हो गया।

॰ शनिवार की चौथी दुखभरी खबर भी अहमदाबाद के जैन नगर से ही आई, जहां आचार्य भुवनभानु सूरिजी समुदाय के संत प्रवर निपुण चन्द्र विजय जी का कोरोना से कालधर्म हुआ।

शनिवार को चार और फिर सोमवार रात्रि 11.30 बजे संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागरजी के 10 अगस्त 2013 को नेमावर में दीक्षा लेने वाले मुनि श्री निकलंक सागरजी का 5-6 दिनों से कोरोना से लड़ते, पर अपनी चर्या को बिना बाधित किये, गुना के बजरंगगढ़ में अंतिम सास ली।

वहीं इसी दिन बेंगलूरु में गच्छाधिपति आचार्य ऋषभचन्द्र सूरिश्वर जी मा. सा. की आज्ञानुवर्ती साध्वी श्री संघवण श्री की सुशिष्या साध्वी श्री रत्नत्रया श्री मा.सा. का भी कोरोना से देवलोक गमन हो गया।

35 वर्षीय युवा मुनि श्री का समाधि का क्या अनुकूल समय था, या हमारी लापरवाही का खामियाजा इन सब संतों को भुगतना पड़ा। 6 सवाल इन 6 घटनाओं से उभरते हैं:-
1. क्या इन जगहों पर भक्तों से दूरियां बना कर रखी गई थी?
2. क्या आहार दर्शनादि के समय भक्त मॉस्क, सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कर रहे थे?
3. कोरोना की सूचना मिलने पर क्या बाकी सबकी टेस्टिंग कराई गई।
4. क्या बाहर से लोगों के प्रवेश को रोका गया?
5. क्या साधुओं को उनकी चर्यानुसार श्रेष्ठतम इलाज सुविधा शुरू में ही प्रदान की गई?
6. क्या उनके कोरोना पीड़ित होने की जानकारी वहां सबको दी गई, जिससे शेष भी सावधानी रख पाते?
निश्चित ही इन छह में से कम से कम पांच सवालों के जवाब में ‘नहीं’ मिलेगा और यही हमारी ढीली – लचर व्यवस्थाओं का आईना है।

हैरानगी तब ज्यादा होती है, जब ऐसी घटना के बाद कुछ पोस्ट सोशल मीडिया पर वायरल की जाती हैं कि महाराज की समाधि के संदर्भ में जो पोस्ट डाली जा रही हैं, उन्हें तुरंत डिलीट कर दें क्योंकि बजरंग गढ़ से वहां के अध्यक्ष का कहना है कि यह बात आगे नहीं जानी चाहिए, इससे दूसरे मुनि महाराजों पर संकट आ सकता है। शासन-प्रशासन महाराज पर एक्शन ले सकता है।

एक और पोस्ट जिनशासन संघ के नाम से जारी होती है, जिसमें वायरल न करने का कारण दिया जाता है कि अन्य साधुओं पर प्रशासन द्वारा टेस्टिंग एवं अस्पताल में भर्ती होने का दबाव आ सकता है।

क्या खूब है हमारा समाज और ऐसी घटनाओं को दबाने में कुर्सी पर चिपकी समितियां। कुछ दिन पहले जिनशरणं में आचार्य श्री पुलक सागरजी को कोरोना हुआ, तुरंत सभी को जानकारी दी गई। उन्होंने तत्काल वहां सबकी टेस्टिंग कराई, 16 की रिपोर्ट पॉजीटिव आई और सबसे अलग होकर उचित दिशा-निर्देशों का पालन किया, शेष की एन्ट्री तत्काल बंद कर दी और 15 दिनों में सभी स्वस्थ हो गये।

और दूसरी तरफ, यहां छिपाने की बात कही जाती है, समाधि तो क्या अंतिम संस्कार के बाद जानकारी दी जाती है बदल कर। इसकी बजाय वहां सब श्रावकों की टेस्टिंग कराई होती और अन्य सरकार उपयुक्त कदम उठाये होते तो शायद युवा समाधि को रोका जा सकता पर नहीं हम उत्तम समाधि का गुणगान कर इति करना श्रेयस्कर समझते हैं।

इस बारे में तत्काल निम्न बिन्दुओं पर विचार – मंथन जरूरी हो जाता है:-
1. साधुओं के विहार पर तत्काल विराम लगें।
2. साधुओं के दर्शन व आहार व्यवस्था के लिये दिशा-निर्देश का कड़ाई से पालन हो।
3. सामूहिक प्रतिक्रमण, जिज्ञासा-उत्तर, चर्चा, दर्शन पर तत्काल रोक लगे।
4. साधुओं के स्वास्थ्य के प्रति पूरी सजगता हो, उनके आहार आदि के लिये सीमित लोग ही नियमित रहें, उनको भी कड़े निर्देशों का पालन हो।
5. कोरोना की आशंका होने पर वहां मौजूद सभी श्रावकों, कर्मचारियों का टेस्ट किया जाए।
6. ध्यान रहे कोरोना को छिपाना, होशियारी नहीं, गंभीर लापरवारी को दर्शाता है और उसके चलते कुछ अप्रिय हो जाये, तो उसके लिये दोषी कोरोना नहीं, हम ही हैं।

– शरद जैन