युग शिरोमणि के दो निराले चतुर्थकालीन मुनिचर्या के धारक मुनि शिष्य

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1887

राजस्थान में युग शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर जी मुनिराज के ऐसे दो शिष्य- मुनिश्री विनीतसागर मुनिराज, मुनिश्री चंद्रप्रभसागर मुनिराज विहार कर रहे हैं जिनके दर्शन करके चौथे काल के मुनियों की याद आती है,,,अभी मुनिसंघ भीलवाड़ा में विराजमान हैं।

दोनों मुनिराज चतुर्थकाल के समक्ष आचरण का निर्दोष पालन करते हैं।

अत्यधिक आवश्यकता होने पर ही माइक से प्रवचन देना, अन्यथा बिना माइक के प्रवचन करना।

सभी इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों मोबाइल, पंखा, लाइट आदि से कोशो दूर, यहां तक वह अपनी फोटो तक किसी को नहीं खींचने देते

चातुर्मास,कार्यक्रम,विहार सब अनियत, किसी भी प्रकार की पत्र पत्रिकाओं के प्रचार प्रसार से दूर

पिच्छी-कमंडलू,आवश्यक शास्त्र के अतिरिक्त कुछ भी अपने पास नहीं रखना।सिर्फ आगम के सूत्रों पर बढ़े चलना जिनका लक्ष्य है
अत्यंत शांत स्वभावी साधक,श्रावको से केवल तत्वचर्चा ही करते है वरना दीवार ओर ओर मुख करके आत्म साधना में लीन रहते है। व्यर्थ की गल्पवाद से विरक्त आत्म साधक मंदिर, अभिषेक-पूजन आदि का मात्र उपदेश देकर मूल आत्मधर्म से श्रावको को अवगत कराना।

किसी भी तरह के संप्रदाय के विवादों में नहीं पड़ते,ना ही किसी की निन्दा करते बस आत्म धर्म मे रमने वाले

जटिल प्रश्नों को भी सरल उदाहरणों के माध्यम से समझा देना।

चंदा-चिट्ठा इकट्ठा नहीं करना, ना ही किसी भी प्रकार की धन सम्बन्धी चर्चा ना किसी भी प्रकार के निर्माण से दूर आत्म निर्माण में संलग्न

अत्यन्त निस्पृह साधक,मुनि चंद्रप्रभसागर जी दीक्षा के बाद से ही सर्दी-गर्मी,बरसात तीनो ऋतुओं में 1 आहार 1 उपवास के नियम का पालन करते हैं,विहार में भी यही नियम।

पूज्य मुनि श्री चन्द्रप्रभसागर जी उपवास के साधक है। उन्होंने सिंहनिष्क्रीड़ित के उपवास 3 बार कर चुके हैं,चारित्र शुद्धि के 1234 उपवास ,1004 उपवास धर्म चक्र के,कर्मदहन के 148,त्रिलोकसार के 30, जिनगुण सम्पत्ति के 63 उपवास,16 सोलह कारण के आदि उपवास किये है

इसके अतिरिक्त भी कई और कठिन तप निरंतर जारी।उपवासों की श्रृंखला इतनी लंबी है जिसे कहा नही जा सकता

ऐसे परम् तपस्वी चतुर्थ कालीन मुनि द्वय के चरणों मे शत शत नमन
– शुभांशु जैन शहपुरा