खानपुर चांदखेड़ी | लगातार 36 घंटों से चल रही बारिश थम नहीं रही थी और रूपली नदी अब उफान पर थी। क्या 500 सालों का इतिहास आज अपनी उसी गति से चलता हुआ थम जाएगा ? यह चिंता कुछ बुजुर्ग श्रावकों के बीच थी। चर्चा चल रही थी और पूरे चांदखेड़ी मंदिर के अंदर 4 से 5 फुट पानी पूरी तरह भर गया था।
गर्भ गृह में सीढ़ियां भी पानी में डूब गई थी । यानी अब वहां पर जाना मुश्किल था । तब आदिनाथ बाबा का कैसे होगा अभिषेक? यह चिंता सबको सताए जा रही थी । खुस फुस हो रहा था, पर हिम्मत किसी की नहीं हो रही थी और यह फुसफुस आहट किसी तरह पहले तल पर विराजमान मुनि श्री सुधासागर जी के कानों तक पहुंची और जैसे ही पहुंची, एकदम खड़े हो गए। हाथ में ली पीछि और बढ़ चले उस गर्भ गृह की ओर ,जहां पर लगातार 5oo सालों से नियमित अभिषेक किया जा रहा था।
जमीन के अंदर है असली जैन मंदिर: इतिहासकार डाॅ. जगतनारायण की पुस्तक कोटा राज्य के इतिहास में जिक्र है कि 1671 में बघेरवाल जैन व्यापारी ने चांदखेड़ी में मंदिर बनवाना उस समय औरंगजेब ने मंदिर बनवाने की मनाई कर रखी थी। जिससे बचाव करते हुए यह मंदिर विचित्र प्रकार का बनवाया। असली मंदिर जमीन के अंदर है। प्रवेश का तंग मार्ग है।
हाड़ौती के इतिहास में के प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ भगवान के अतिश्य क्षेत्र चांदखेड़ी का नाम इतिहास में अमर है। यहां पिछले करीब 500 साल में हर दिन भगवान का भक्ताें द्वारा अभिषेक हाेता रहा है। लेकिन, यहां हुई भारी बारिश के चलते यदि शनिवार को भगवान जैन धर्म के प्रथम तीर्थंंकर भगवान आदिनाथ का अभिषेक न हाेता ताे यहां नित्य भगवान के अभिषेक की परंपरा टूट जाती। मुगलकाल से यहां का इतिहास ही अलग रहा है।
मन में चिंतन चल रहा था क्या यह तूफानी बारिश और रूपाली नदी का उफान, बाबा का अभिषेक करने से रोक पाएगा ? अगर भक्ति में और श्रद्धा में शक्ति होती है, तो कोई ताकत आगे नहीं आ सकती । कोई रुकावट नहीं बन सकती और यह विचार करते-करते महाराज गर्भ गृह की ओर बढ़ रहे थे। गेट पर पहुंचे अब सीढ़ियां दिखना बंद हो गई थी ।
पानी कल कलाहट कर रहा था, जैसे वह कह रहा हो एक चुनौती दे रहा हो ,कि आगे आओ मुझसे मुकाबला करो। सामने देखा, वही पानी ,बाबा के सिंहासन से ऊपर ,चरणों के पास पहुंचने की कोशिश कर रहा था। पर लाख कोशिश के बावजूद, वह सफल नहीं हो पा रहा था। एक क्षण रुके और दूसरे ही क्षण में पानी के बीच। जैसे अब सीढ़ियां उनके चरणों को टटोल रही थीं। वह रुके नहीं, वह थमे नहीं ।
दूर से देखते श्रावक, हैरान हो गए । हम तो अंदर जाने का साहस नहीं कर पा रहे और एक संत अपनी पिछी लेकर उस ओर बढ़ चले है, जैसे-जैसे नीचे जा रहे थे, पानी अब उनके ऊपर चल रहा था ,टांगे डूबी और फिर कमर भी डूबने लगी , कमर तक पानी पहुंच गया । पर गुरुवर नहीं रुके, और उनके साहस को देखकर श्रद्धालुओं में भी जोश आ गया। अगर संत ऐसा कर सकते हैं, गुरुवर ऐसा कर सकते हैं , तो हम क्यों नहीं ?
अब एक क्षण के अंदर कई श्रावक, शुद्ध वस्त्र पहन कर उसी तरह से नीचे आ गए ।दो के हाथ में एक तख्त था कि हम गुरुवर को इस पर बैठाएंगे। पर जैसे-जैसे तख्त नीचे गया, वह नीचे बैठने की बजाय, पानी में तैरने लगा । अब क्या करें ,4 लोगों ने उसको पकड़ा। एक और तख्त और ढाई ढाई फुट के 2 तखत यानी 5 फुट ऊंचाई बना दी । मुनि पुंगव सुधासागर महाराज का पानी में छह फीट तक आसन तैयार किया गया। अब पानी के लेवल से चंद इंच ऊपर हो गए थे । इस पर गुरुवर बैठे और उन्होंने एकदम अभिषेक मंत्र बोलने शुरू कर दिए। लोगों ने प्रक्षाल शुरू कर दी, यहां श्रावको ने मुनिश्री को पाटे पर आसन लगवाकर अभिषेक-शांतिधारा की परंपरा का निर्वहन करवाया। और फिर कहते हैं, भक्ति अपनी चरम सीमा पर पहुंच गई, शांति धारा अनवरत चलती रही ,उसके बाद भक्तामर स्त्रोत हुआ और फिर पांच संतो ने जो वहां विराजमान थे ।
जैन समाज के हुकुम जैन काका ने बताया कि भारी बारिश और क्षेत्र के लाेगाें की मंगकामना के चलते मुनि पुगंव निर्यापक सुधासागर महाराज, मुनि निष्कंप सागर एवं धैर्य सागर ने उपवास किया। उन्होंने चारों प्रकार के आहार का त्याग कर दिया । सुबह तक खानपुर वासियाें की जन-धन हानि और मंदिर की सुरक्षा को लेकर मुनि पुंगव निर्यापक सुधासागर ध्यान और सामयिक में रहे।
स्पष्ट था, एक मुकाबला था, उफनती रूपाली नदी और बढ़ती बरसात के बीच, जहां पर ज्योतिषियों और सरकार ने घोषणा कर दी थी कि पानी रुकेगा नहीं। यह बारिश 3 दिन लगातार होगी ,36 घंटे में 35 सेंटीमीटर बारिश और कितना कहर बरपाएगी ,जो नदी जमीन के नीचे बैठी थी, वह अब उमड़ उमड़ कर पूरे चांदखेड़ी में बहती आ रही है ।
पर भक्ति और शक्ति भी अपना अतिशय दिखाती है ,यह किताबों में पढ़ा तो है ,पर देख आज रहे थे ।गुरुवर शांत भाव से चिंतन मनन कर रहे थे । अपने अंदर ही कहते हैं, अलग तरह की भक्ति की शक्ति दिखा रहे थे , मनन चिंतन में मंत्रों का जैसे अनवरत पाठ चल रहा था और उसका चमत्कार बाहर दिख रहा था। पानी बढ़ नहीं रहा था, अब पानी धीरे-धीरे घट रहा था ।
चारों तरफ खुशियां थी यह क्या हो रहा है ? जो हो रहा था , वह किसी को समझ नहीं आ रहा था । लोग कह रहे थे पानी बढ़ेगा, पर यहां तो पानी घट रहा था और यही कहते हैं अतिशय हो रहा था चांदखेड़ी के अतिशय कारी तीर्थ में और बड़े बाबा के चरणों में , ऐसे ही चल और अचल तीर्थों का समागम हमेशा अतिशय करता है और उसे, चमत्कार को, दुनिया नमस्कार करती है।