वह अदृश्य शक्ति कौन थी, जो बंद मंदिर में रात 12 बजे घंटी बजाती रही और लोगों के रोकने के बाद भी घंटी नहीं रुकी

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6अप्रैल 2022//चैत्र शुक्ल पंचमी /चैनल महालक्ष्मीऔर सांध्य महालक्ष्मी/
4 और 5 की रात्रि 12:05 पर मोरा झड़ी श्री पार्श्वनाथ दिगंबर जैन अतिशय क्षेत्र में अचानक अपने आप घंटी बजने लगी, तो आसपास छतों पर सो रहे ग्रामवासी आश्चर्यचकित होकर उठ खड़े हुए । मंदिर का ताला बंद है और फिर 12:00 बजे यह कौन घंटी बजा रहा है। हर के मन में कौतूहल था ।

अपने घरों से निकले, मंदिर में आ गए। पुजारी ने ताला खोला और फिर सब हैरान थे कि जिस घंटी को बिजली के बटन से दबाकर अभिषेक के समय बचने के लिए शुरू किया जाता है , वह बिजली का बटन बंद होने के बावजूद घंटी बजती जा रही हैं । पुजारी ने उस घंटी को दोबारा ऑन ऑफ किया। लेकिन कुछ बार करने के बावजूद घंटियों के बजने का सिलसिला नहीं रुका और वह लगभग 15 मिनट लगातार चलता रहा । कई ने उस बजते हुए घंटियों के वीडियो बनाएं । हर कोई हैरान था।

चैनल महालक्ष्मी ने पुजारी अनिल शर्मा से बात की तो उसने बताया कि मैं यहां पर 15 साल से कार्यरत हूं, पर आज तक ऐसा दूसरी बार हुआ है। उसने बताया कि इस घटना के 2 दिन पहले भी इस यह घंटियां तब बजने लगी थी , जब प्रातः काल में अभिषेक के लिए कोई नहीं आया। क्योंकि यहां पर आसपास केवल पांच जैन परिवार हैं और उनमें से अधिकांश शादी में बाहर गए थे। और इसी कारण समय पर अभिषेक में नहीं पहुंच सके थे ।

पुजारी तब भी हैरान हो गया था कि जैसे घंटी स्वयं बज कर अभिषेक करने वाले को बुला रही थी। तब भी घंटी 10 12 मिनट तक लगातार बजती रही और अब रात्रि में ऐसा होने पर , वह सचमुच हैरान था ।

यहां के अध्यक्ष महावीर प्रसाद जैन जी ने चैनल महालक्ष्मी को बताया कि यह अतिशय कारी तीर्थ है जो अजमेर से 45 किलोमीटर और किशनगढ़ से 46 किलोमीटर की दूरी पर है। 1167 में पृथ्वीराज द्वितीय ने जैन मंदिर के लिए मोराझड़ी गांव दान दिया था और 1704 में छोटे से मंदिर को भव्य रुप दिया गया ।

एक समय सेठ छोगालाल जी सोनी जो धनोप ग्राम के थे । वह किसी कार्य से जा रहे थे। तो वैशाख सुदी एकम के दिन पास बह रही नदी में स्नान करने लगे कि अचानक उन्हें कुछ शिला का आभास हुआ। उन्होंने गांव के ठाकुर से कहा कि अपने कुछ आदमी भेज कर इन दो शिला को बाहर निकालने में सहयोग करें। मुझे इनमें कुछ और महसूस हो रहा है । कुछ लोग आए।

पहले छोटी शिला को उल्टा किया। पलटते ही छोगालाल जी हैरान हो गए । वह तो शांतिनाथ स्वामी की प्रतिमा है। फिर जब बड़ी शिला को उल्टा किया तो और भी हैरान, वह तो पारस प्रभु की प्रतिमा थी। दोनों प्रतिमाओं को नदी से निकाला गया। अलग अलग बैलगाड़ी में रखकर उन्होंने ठाकुर से अनुरोध किया कि मैं दोनों को धनोप गांव में ले जाना चाहता हूं । ठाकुर ने सहज कह दिया ले जाओ। पर बैल गाड़ियां अपने स्थान से 1 इंच नहीं हिली। कई लोगों ने उन पर धक्का लगाया ।

लेकिन क्या मजाल कि वह थोड़ा भी सरके। फिर उनके मन में एक आभास हुआ तो लगा कि वह कहीं और जाने का संकेत दे रही हैं। उसने कह दिया जहां जाना चाहती हो चली जाओ और फिर दोनों बैल गाड़ियां इस तरह दौड़ी कि वह हैरान हो गया। पारसनाथ स्वामी की प्रतिमा वाली बैलगाड़ी मोराझड़ी और सफेद वर्ण वाली शांतिनाथ भगवान की प्रतिमा वाली जाकर देराठू जाकर रुकी और उसके बाद भगवान को भी विधिवत विराजित कर ,अभिषेक पूजन आदि किया जाने लगा। मंदिर को भव्य रूप बाद में दिया गया । आज भी इस क्षेत्र में अतिशय देखे जाते हैं।

यह आज भी एक रहस्य बन गया है कि अभिषेक करने वाला कौन था , जो दिख नहीं रहा था , पर मंदिर में मौजूद था । क्या देवता अभिषेक करने की तैयारी कर रहे थे। प्रश्नचिन्ह तो इस बात पर भी कुछ संकेत देता है।