चक्रवर्ती – तीर्थंकरों के बाद का स्थान, वैभव अतुलनीय, चक्रवर्ती स्वर्ग से ही आते है, एक हजार यक्ष रक्षा करते है

0
3916

चक्रवर्ती 12 होते है,

• भरत,सगर,मघवा, सनतकुमार,शांति,कुन्थु,अरह, सुभौम,पद्म,हरिसेन,जयसेन, ब्रम्हदत्त।
• शलाका पुरुषो मे तीर्थंकरों के बाद चक्रवर्तीयों का स्थान है।
• चक्रवर्तीयों को नरेन्द्र भी कहा जाता है।
• इनके पास आयुधशाला में सम्पूर्ण लोक को विस्मित करने वाला एक हजार यक्षो से रक्षित चक्ररत्न उत्पन्न होता है।
• चक्रवर्ती स्वर्ग से ही आते है, चक्रवर्तीयों का वैभव अतुलनीय होता है।
• इनके सात अंग होते है~
• राजा\स्वामी,अमात्य,देश, दुर्ग,भंडार\कोश,मित्र,षडंगबल
• षड्बल~चक्रबल,84 लाख हाथी,84 लाख रथ,18 करोड उतम अश्व,84 करोड वीर भट, असंख्य देव सैन्य,विद्याधर सैन्य

• चौदह रत्न~सात अचेतन रत्न और सात चेतन रत्न
• अचेतन~चक्ररत्न,छत्र,असी\तलवार,दंड,मणि,ककड़ी,चर्म
• चेतन~ग्रहगति,सेनापति, पुरोहित,स्थपति,स्त्री,हाथी,अश्व ये चौदह महारत्न हैं
• इनकी एक एक हजार यक्ष रक्षा करते है।
• ये चौदह महारत्न के कार्य निम्न है
• चक्ररत्न~बैरियों का संहार करता है।
• छत्र~सैन्यो के ऊपर आने वाली धूप,वर्षा,धूलि,ओले तथा वज्रायुध की बाधायों को दूर करता है।

• असि~चक्रवर्ती के चित्त को प्रसन्न करता है।
• दण्ड~48 कोस प्रमाण सैन्य भूमि को साफ कर समतल करता है।
• मणि/चूडामणि~इच्छित पदार्थ की प्रदान करता है।
• चर्मरत्न~चक्रवर्ती के सैन्य आदि नदी समुद्र को पार करता है।
• ग्रहगति~राजभवन की समस्त व्यवस्था का संचालन करता है।
• सेनापति~आर्यखण्ड एंव पांच म्लेच्छखण्ड पर विजय दिलाता है।
• पुरोहित~सबको धर्म-कर्मानुष्ठानो का मार्गदर्शन देता है।
• स्थपति~चक्रवर्ती की इच्छानुसार महल,मंदिर,और प्रासाद आदि तैयार करता है।
• स्त्री~चक्रवर्ती की पट्टरानी
• हाथी~शत्रु राजाअों के गज समूह को विच्छिन्न करता है।
• अश्व~तिमिस्र गुफा के कपाट का उद्घाटन करते समय बारह योजन तक छलांग लगाता है।

चक्रवर्ती की नव निधियां
काल,महाकाल,माणवक,पिंगल, नैसर्प,पद्म,पांडुक,शंख,और सर्वरत्न है।
कालनिधी~तीनो रितुओं के योग्य द्रव्य प्रदान करती है।
महाकाल निधी~नाना प्रकार के भोज्य पदार्थ प्रदान करती है।
माणवक निधी~विविध प्रकार के आयुध प्रदान करता है।
पिंगल निधी~आभरण प्रदान करती है।
नैसर्प निधी~मंदिर/भवन प्रदान करता है।
पद्म निधी~विविध प्रकार के वस्त्र प्रदान करता है।
पाण्डु निधी~अनेक प्रकार के धान्य प्रदान करती है।
शंख निधी~वादित्र प्रदान करता है।
सर्वरत्न निधी~सर्व प्रकार के रत्न प्रदान करता है।

चक्रवर्ती के दशांग भोग निम्न है~दिव्य नगर,दिव्य भोजन,दिव्य भाजन,दिव्य शयन,दिव्य आसन, दिव्य रत्न,दिव्य निधी,दिव्य सेना, दिव्य वाहन ये दश प्रकार के दिव्य भोग पुण्य और पराक्रम के धनी चक्रवर्ती की सेवा मे सदैव तत्पर रहते हैं।