20 मार्च/चैत्र कृष्णा द्वितीया /चैनल महालक्ष्मीऔर सांध्य महालक्ष्मी/
21 मार्च : तीर्थंकर श्री पार्श्वनाथ जी ज्ञान कल्याणक
इस बार चतुर्थी का तप है, इस कारण 23वें तीर्थंकर श्री पारस प्रभु का ज्ञान कल्याणक तृतीय यानि 21 मार्च को मनाया जाएगा। चार माह के कठोर तप क ेबाद अहिच्छत्र (शक्रपुर नगर) के अश्वत्थ वन के धव वृक्ष के नीचे केवलज्ञान की पुष्टि हुई। तत्काल कुबरे द्वारा सवा योजन विस्तृत समोशरण की रचना की। आपके शासन देव धरणेन्द्र और शासन देवी पदमावती हैं। स्वयंभू प्रमुख के साथ 10 गणधर थे। आपका केवली काल 69 वर्ष 8 माह का था।
22 मार्च : तीर्थंकर श्री चन्द्रप्रभु का गर्भ कल्याणक
7वें तीर्थंकर श्री सुपार्श्वजी के सिद्धालय जाने के 900 करोड़ सागर बीत जाने के बाद आप वैजयंत नामक अनुत्तर विमान में आयु पूर्ण कर चैत्र कृष्ण पंचमी को चन्द्रपुर के तत्कालीन महाराज महासेन की महारानी लक्ष्मणा देवी के गर्भ में आये। चन्द्रमा की भांति श्वेत वर्ण और चन्द्र ही आपका चिह्न भी है। आपकी आयु दस लाख वर्ष पूर्व और कद 900 फुट ऊंचा था।
25 मार्च : तीर्थंकर श्री शीतलनाथ का गर्भ कल्याणक
चैत्र कृष्ण की अष्टमी ही वह दिन है, जब 9वें तीर्थंकर श्री पुष्पदंत जी के 100 सागर बाद अच्युत स्वर्ग में आयु पूर्ण कर भद्रिलपुर नगरी के तत्कालीन महाराज श्री दृणरथ की महारानी सुनंदा देवी जी के गर्भ में 10वें तीर्थंकर शीतलनाथ जी आये। तपे सोने के रंग की काया वाले आप की आयु एक लाथ पूर्व वर्ष तथा कद 540 फुट ऊंचा था।
26 मार्च : तीर्थंकर श्री ऋषभनाथ जी जन्म-तप कल्याणक
चैत्र कृष्ण नवमी, हां यही वह दिन है जब प्रथम तीर्थंकर श्री ऋषभनाथ जी का अयोध्या की तत्कालीन महारानी मरुदेवी के गर्भ से जन्म हुआ था। कर्मभूमि पर असि मसि आदि द्वारा जीवन यापन की शिक्षा देने वाले आप ही थे। सबसे ज्यादा 84 लाख वर्ष की आयु, सबसे ज्यादा कद 3000 फुट, सबसे ज्यादा तप 1000 वर्ष आदि के साथ इस हुण्डावसर्पिणी काल में आप चतुर्थकाल की बजाय तीसरे काल में ही जन्म लेकर मोक्ष को प्राप्त हुये। आपन ेसबसे अधिक 63 लाख पूर्व वर्ष तक राज किया। आपकी दो रानियां व तीर्थंकर परम्परा से हटकर दो पुत्रिया भी थीं। राजसभा में एक दिन अप्सरा नीलांजना का नृत्य करते आयु पूर्ण होता देख वैराग्य की भावना बलवती हुई। आपके दो पुत्र आपसे पहले मोक्ष गये और आपका एक पोता (मरीचि) आगे जाकर 24वें तीर्थंकर महावीर स्वामी बने।
01 अप्रैल : तीर्थंकर अनंतनाथ जी का ज्ञान व मोक्ष तथा अरहनाथ जी का मोक्ष कल्याणक
पूरे वर्ष में एक ही दिन होता है चैत्र कृष्ण अमावस जिस दिन दो तीर्थंकरों का मोक्ष कल्याणक आता है। 14वें तीर्थंकर श्री अनंतनाथ जी को इसी दिन दो वर्ष के कठोर तप क ेबाद अयोध्या के सहेतुक वन में पील वृक्ष के नीचे अपराह्न काल में केवलज्ञान की प्राप्ति हुई थी। कुबेर ने सौधर्मेन्द्र की आज्ञा से तत्काल साढ़े पांच योजन विस्तृत समोशरण की रचना की। आपका केवली काल दो वर्ष कम साढ़े सात लाख वर्ष का रहा। जब आयु एक माह शेष रह गई तब आप श्री सम्मेद शिखरजी की स्वयंभू कूट पर पहुंच गये और चेत्र कृष्ण अमावस को ही अपराह्न के प्रदोष काल में, 7000 मुनिराजों के साथ सिद्धालय पहुंच गये, इसी कूट से एक कोड़ा कोड़ी, 7 करोड़ 70 लाख, 700 मुनिराज मोक्ष गये हैं। इस कूट की निर्मल भावों से वंदना करने से एक करोड़ प्रोषध उपवास का फल मिलता है।
इसी चैत्र कृष्ण अमावस को ही 18वें तीर्थंकर श्री अरहनाथ जी एक माह के भोग निवृत्ति काल के बाद एक हजार महामुनिराजों के साथ श्री सम्मेदशिखरजी की नाटक कूट से प्रत्यूष बेवा में मोक्ष गये। इसी कूट से एक कम एक अरब महामुनिराज मोक्ष गये हैं। इस कूट की निर्मल भावों से वंदना करन से 96 करोड़ प्रोषध उपवास का फल मिलता है।
(चैत्र माह के शुक्ल पक्ष के कल्याणकों की जानकारी आगामी अंक में दी जाएगी।