पॉच अणुव्रत हमारे पंचशील बन गये,
वीर की अहिंसा से वीर दूर हो गये।
जीव दया नेमि की पुराणों में खो गयी,
शहर-शहर गली-गली कत्लखाने खुल गये।
और हम,
अष्ट द्रव्य हाथ लिए गंधोदक माथ दिए,
वीर तेरी प्रतिमा निहारते ही रह गए।
पार्श्व तेरी आरती उतारते ही रह गए।
राजुल-नेमि विवाह गीत गाते ही रह गए।
जियो और जीने दो अहिंसा है परमोधर्म,
मंदिरों के अंदर के नारे बन लिख गया।
आसक्ति बढ़ गयी आस्था सिमट गयी,
श्रावक का श्रेष्ठ धर्म परिग्रह ही बन गया।
और हम,
कषायों के मैल को धर्म के डिटरजेंट से,
वैभव का पानी डाल मॉजते ही रह गए।
रत्नजड़ित मुद्रिका आठों उंगलियों में धार,
आकिंचनय धर्म -अर्घ्य ढारते ही रह गए।
अनेकांत अनेकता का समअर्थी बन गया,
स्यादवाद स्वाद में विलीन हो के रह गया।
हम पथिक निर्वाण के खो गये निर्माण मे,
हर मंदिर, तीर्थ एक राजभवन बन गया।
और हम,
कंठमाल धार के माइक को हाथ ले,
ऋषभ तेरे ज्ञान को बघारते ही रह गए।
पोरूओं पे दश धरम बखानते ही रह गए,
अपनी सब धरोहरें बांटते ही रह गए।
निर्जरा हुई ज़रा, अंतराय घट गई
भक्तों और लक्ष्मी की बारिशें बरस गई
ट्रस्ट एक बन गया तिजोरियां भी भर गयीं
तीर्थ तो बना नया साधना पर मर गई
और हम
लैप्टॉप, मोबाइल, सब उनके साथ देख
सेवक, भोज-सामग्री वाहन में साथ देख
निंदा से डरे-डरे थोड़े-थोड़े अनमने
गाड़ी की टंकी फुल कराते ही रह गए
जन्म और दीक्षा के भव्य उत्सव मन रहे
भावना, प्रभावना में मूर्ख जैन बन रहे
महाव्रतो में दोष तो रोज़रोज़ लग रहा
घूमर के डांस साथ पड़गाहन हो रहा
और हम
सिमटे से खड़े खड़े अंध भक्ति में पड़े
श्रावक-समाज दोष देखते ही रह गये
अनाचार वाट्सअप पर देखते ही रह गए
आगम को तार-तार देखते ही रह गए।
दिखाओ चाबुक तो झुक कर सलाम करते हैं
हम वो शेर हैं जो सर्कस में काम करते
– श्री निर्मल जैन जी, रिटायर्ड जज