भारिल्ल की भद्रता या छल- क्षमा मांगनें कि औपचारिकता नाटक – नौटंकी के सिवा और कुछ नही है

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अभी अभी विगत दिनों हुकुमचंद भारिल्ल का एक वीडियो देखने – सुननें को मिला, जिसे सुनकर एक घटना याद आ रही है :-
राजस्थान के बांसबाड़ा जिले में एक जौलाना नाम का गांव है, वहां पर दो किसान परिवार रहा करते थे, एक का नाम महिपाल था और दूसरे का नाम गणपत था, गणपत दलित वर्ग से था, महीपाल उच्च वर्ग से था, महीपाल कि ज़मीन अच्छे उर्वरक नही थी, किन्तु गणपत खेती और उर्वरक अच्छे किस्म कि थी, महीपाल सदैव गणपत को नुकसान पहुंचाता रहता था, एक दिन महीपाल ने अपने बेटे शिशुपाल से कहा, कि आज रात चुपके से गणपत के खेत में आग लगा देना है, तब शिशुपाल नें अपनें पिता महीपाल से कहा – ‘ पिताजी, मैं आग लगा दूंगा पर कहीं ऐंसा न हो, कि आग अपने खेत में फैल जाए, तब महीपाल ने कहा – ‘ बेटे तुम इसकी चिंता मत करो, पूरा गांव अपने खेत कि आग बुझाने आ जाएगा और आग बुझाने का काम हम तब करेगें, जब गणपत का खेत पूरा जल जायेगा ।
तब शिशुपाल ने कहा – ‘ पिताजी सुन लो, मैं आग बुझाने का काम नही करूंगा, वह काम आपको ही करना पड़ेगा ।
महीपाल को अचानक तेज बुखार आ गया, और शिशुपाल ने गणपत के खेत में आग लगा दी, गणपत का खेत पूरा जल गया, आग महीपाल के खेत तक फैल गई, महीपाल, शिशुपाल को सामने आग बुझाने के लिए कहता रहा और गिड़गिड़ाता रहा, पर उसनें आग नही तो नही बुझाई ।

यह कहानी डॉ. हुकुमचंद्र भारिल्ल पर पूर्ण चरितार्थ होती नज़र आ रही है, उन्होनें अपनी मीठी छलपूर्ण वाणी से मुनि निंदा कि आग लगाने का सदैव कार्य किया है, और उनके शिष्य योगेशचंद्र नें कटु निंद अप्रिय भाषा में मुनि निंदा करना जब प्रारंभ किया तो कई महीने बीत जाने के बाद भी डॉ. हुकुमचंद्र भारिल्ल नें योगेशचंद्र को मुनि निंदा करनें से रोकनें का कोई प्रयास नही किया, और न यह कहा, कि किसी कि निंदा झूठ और विद्वेषपूर्ण आधार पर नही करना चाहिए ।

योगेशचंद्र, डॉ. हुकुमचंद्र कि प्रेरणा से आतंकी प्रव्रत्ति का जब बन गया, तब मुमुक्षु वर्ग उसे माला पहनाकर शहीद घोषित करने में लग गया और मुमुक्षु वर्ग ने योगेशचंद्र को वर्तमान कालीन टोडरमल घोषित करके गुप्त रूप से आशीर्वाद दिया

परिस्थितियों नें जब करवट ली और योगेशचंद्र कि चुनौति को स्वीकार करते हुए मुनि निंदा का सबक सिखानें के लिए मुनि भक्तों नें जागरूक होकर एफआईआर कराना शुरू किया, तब भी मुमुक्षु वर्ग खुशी मनाता रहा, और आशावंत होकर बैठा रहा, कि हम मुनियों को अत्याचारी, शिथिलाचारी और बलात्कारी कोर्ट में सिध्द करेगें, किंतु उनके सपनें जब धूमिल होते हुए नज़र आए, और मुनि भक्त समूह नें एकजुट होकर 3 जनवरी 2021 को भोपाल में जब आंदोलन खड़ा करने का आह्वान किया, तब हुकुमचंद्र भारिल्ल को ऐंसा लगा कि निश्चित तौर पर यह आंदोलन सफल होगा और मुमुक्षुओं के अस्तित्व पर गाज गिर सकती है, तब डॉ. हुकुमचंद्र भारिल्ल वीडियो में आए और उन्होनें अपनें घड़ियाली आंसू बहाना शुरू किया ।

तीर तरकस से निकलनें के बाद वापिस नही आता है, और आंदोलन का आह्वान होना, मुनि भक्तों का जागरूक होना और हजारों कि संख्या में भोपाल में एकत्रित होने कि संभावना देखते हुए डॉ. साहब सक्रिय हुए और उन्हे संपूर्ण दिगम्बर जैन समाज के अस्तित्व और हित कि चिंता नही सताई, उन्हे अगर सबसे बड़ी चिंता सताई तो मुमुक्षु समाज के हित और उसके अस्तित्व पर खतरे कि ।
और उन्होने ये कहा, कि योगेशचंद्र क्षमा कि औपचारिकता कर ले, बस इतने से ही मैं अपनें छल-बल से मुनि भक्तों के आंदोलन को शांत कर सकता हूं ।
किंतु विस्मय तो तब होता है, कि जो अपनें आपको समाधि पुरूष घोषित कर रहा है, समाधि लेने कि बात कर रहा है, और दूसरी तरफ सिर्फ मुमुक्षु समाज के हित कि बात कह रहा है, तो क्या श्रमण संस्क्रति और श्रमण साधना क्या मुमुक्षु कि परिधि से बाहर है, तथा जिस श्रमण संस्क्रति कि नींव पर मुमुक्षु समाज का महल खड़ा हुआ है, उस श्रमण संस्क्रति रूपी नींव को धक्का लगाकर चोंट पहुंचाकर क्या मुमुक्षुओं का महल खड़ा रह सकता है, क्या उसका अस्तित्व बच सकता है, नहीं सर्वथा नही ।।

क्षमा मांगनें कि औपचारिकता नाटक – नौटंकी के सिवा और कुछ नही है, सबसे पहले यह बात डॉ. हुकुमचंद्र भारिल्ल को सोचना चाहिए कि :-

1) क्या आचार्य श्री विद्यासागर जी बैठकर आहार लेते हैं ?
2) क्या आचार्य श्री विद्यासागर जी चरखा चलाते हैं, क्या हथकरघा चलाते हैं ?
3) क्या हथकरघा अभियान आगम विरूध्द है ?
4) क्या हथकरघा अभियान आचार्य भगवन् का कारोबार है ?
5) क्या आचार्य श्री किसी दुकान पर साड़ी देखने या आभूषण देखने गये हैं ?
6) क्या आचार्य श्री विद्यासागर जी को समाधि कि सलाह दी जा सकती है।

क्या उपरोक्त इन सभी निराधार काल्पनिक आरोपों से श्रमण संस्क्रति का मजाक नही बनेगा, जब श्रमण संस्क्रति का मजाक बनेगा, तो क्या मुमुक्षु समाज अपमानित होने से बच जायेगा, क्या मुनि निंदा कि आग से मुमुक्षु समाज अप्रभावित रहेगा, यदि नहीं तो यह मान लेना चाहिए, कि योगेशचंद्र तो कार्बन के नीचे का कागज है, कार्बन के ऊपर का कागज तो हुकुमचंद्र भारिल्ल है, वक्त है, एक समझ और समझोते का, जिसके अंतर्गत मुमुक्षु समाज को यह तय करना होगा, कि श्रमण संस्क्रति और वर्तमान मुनियों कि निंदा करके वे सुरक्षित नही रह सकते हैं । श्रमण संस्क्रति में तटस्थता का भाव रखना या खतरों से खेलना है, मुनि निंदा स्थितिकरण और उपगूहन अंग से बहुत बाहर है, और स्थितिकरण और उपगूहन अंग का पालन किये बिना मुमुक्षुपना कभी साकार नही होता है ।
अत: मुनि निंदा छोड़कर धर्म प्रभावना सशक्त बनायें इसी में सबका हित है ।
– ब्रह्मचारी दिनेश मलैया