भक्ति का सबसे लोकप्रिय स्तोत्र -भक्तामर स्तोत्र – कब रचना, कितने काव्य, काव्यों में क्या, क्या प्रतिज्ञा

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* भक्तामर स्तोत्र की रचना लगभग छठवीं सातवीं शताब्दी में हुई।

* भक्तामर स्तोत्र बसंत तिलका छंद में लिखा है।(बसंत तिलका छंद का दूसरा नाम मधु मालवीछंद हैं।)

* भक्तामर स्तोत्र की एक पंक्ति में 14 अक्षर है।

* भक्तामर स्तोत्र के एक काव्य में चार पंक्ति और 56 अक्षर हैं।

* भक्तामर स्तोत्र के 48 काव्यों में 192 पंक्तियां हैं।

* भक्तामर स्तोत्र के 48 काव्यों में 2688 अक्षर हैं।

* भक्तामर स्तोत्र के प्रारंभ के दो काव्यों में आचार्य श्री मानतुंग महाराज जी ने स्तोत्र रचने की प्रतिज्ञा (संकल्प) की है।

* भक्तामर स्तोत्र के तीन से छह श्लोक पर्यंत ,आचार्य श्री मानतुंग महाराज जी ने अपनी लघुता (नम्रता) व अल्पज्ञता का सुन्दर चित्रण उदाहरण सहित प्रस्तुत किया है।

* भक्तामर स्तोत्र के 7 से 26 वें काव्य तक आचार्य श्री मानतुंग महाराज जी ने विभिन्न उपमाओं के द्वारा जिनेन्द्र भगवान की स्तुति के फल को चित्रित कर एक अनुपम दृश्य प्रस्तुत किया है।

* भक्तामर स्तोत्र के 27 से 37 वें काव्य तक आचार्य श्री मानतुंग महाराज जी ने अरहंत प्रभु के समवशरण के अलौकिक वैभव का एवं अष्ट प्रातिहार्य का वर्णन किया है।

* भक्तामर स्तोत्र के 38 से 47 वें काव्य तक जिनेन्द्र भक्ति के प्रभाव से अत्यंत भयानक भय रोग आदि दूर भाग जाते हैं। ऐसा वर्णन किया है।

* भक्तामर स्तोत्र के 48 वें काव्य में जिन गुण रुपी माला को कंठ में धारण करने वाले साधक की महिमा को दर्शाया गया है।

बाल ब्रम्हचारी राजेश “चैतन्य” अहमदाबाद