सतपुड़ा की तलहटी में स्थित अति प्राचीन दूसरी सबसे बड़ी अद्भुत प्रतिभा का हो रहा क्षरण, कैसे होगा अब इसका संरक्षण

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17 अक्टूबर 2022/ कार्तिक कृष्णा सप्तमी /चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी
देश की दूसरी सबसे ऊंची 84 फीट की बड़वानी जिले के बावनगजा में स्थित भगवान आदिनाथ की मूर्ति से पानी रिसने के कारण उसका क्षरण हो रहा है। बावनगजा ट्रस्ट के कार्यकारी उपाध्यक्ष विनोद कुमार ने बताया- देशभर के इंजीनियरों से मशविरा लेने के बाद तय हुआ है कि भगवान आदिनाथ की मूर्ति का उपचार देशी मसालों से किया जाएगा। इन मसालों में गुड़, मैथी, सन, पत्थर की चूरी सहित अन्य चीजें शामिल हांेगी। मूर्ति के पीछे कई सालों पहले पानी रोकने के लिए एक सुरक्षा दीवार बनाई गई थी। लेकिन इसके बाद भी मूर्ति के हाथ के नीचे से पानी रिस रहा है।

इंजीनियरों के अनुसार जीर्णोद्धार ऐसा होगा कि मूर्ति के रंग पर कोई असर नहीं होगा और यह स्थाई भी होगा। देश में सबसे ऊंची 108 फीट की भगवान आदिनाथ की मूर्ति महाराष्ट्र के नासिक के पास मांगीतुंगी में हैं। इसके अलावा तीसरी कर्नाटक के श्रवणबेलगोला में 57 फीट की मूर्ति है।

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सतपुड़ा की तलहटी में स्थित भारत की सबसे बड़ी प्रतिमा का निर्माण कब हुआ था, इस बात का कहीं भी उल्लेख नहीं है, कहा जाता है कि यह 20वें तीर्थंकर मुनिसुब्रत की समकालीन है। इसे रामायणकालीन शिल्पियों ने तैयार किया था। एक शिलालेख के अनुसार संवत 1516 में भट्टारक रतनकीर्ति ने बावनगजा मंदिर का जीर्णोद्धार कराया और बड़े मंदिर के पास 10 जिनालय बनवाए थे। मूर्ति का पहली बार जीर्णोद्धार विसं 1233 में किया गया।

मुस्लिम राजाओं के शासनकाल में यह प्रतिमा उपेक्षा का शिकार रही तथा गर्मी, बरसात और तेज हवाओं के थपेड़ों से काफी जर्जर हो गई। 1930 में इंदौर के सेठ हुकुमचंद ने जीर्णोद्धार करवाया। जब दिगंबर जैन समुदाय का ध्यान इस ओर गया तो उन्होंने भारतीय पुरातत्व विभाग के अधिकारियों और इंजीनियरों के साथ मिलकर प्रतिमा के जीर्णोद्धार की योजना बनाई। विक्रम संवत 1979 में प्रतिमा का जीर्णोद्धार हुआ और तब इसकी लागत करीब 59000 रुपए आई। इसके फलस्वरूप प्रतिमा के दोनों ओर गैलरी बना दी गई ।

इसके बाद वर्ष 1986 में आचार्य विद्यानंद महाराज का ध्यान इस तरफ गया। इसके बाद 1990 और 2008 में जीर्णोद्धार किया गया। उपाध्यक्ष विनोद कुमार डोसी ने बताया आचार्य विद्यासागरजी महाराज ने बार-बार जीर्णोद्धार की बजाय एक बार में ही इसे पूरी तरह सुरक्षित करने को कहा है। उनका मानना है कि इससे भविष्य में कभी कुछ नहीं करना पड़े और मूर्ति पूरी तरह सुरक्षित रहे। इसके लिए देशभर के अलग-अलग इंजीनियर, विशेषज्ञ और रसायन शास्त्री मूर्ति देख चुके है।

850 से अधिक सीढ़ियां चढ़नी होती हैं, जल्द मिलेगी लिफ्ट की सुविधा
ट्रस्ट के मैनेजर इंद्रजीतसिंह मंडलोई ने बताया- चूलगिरि मंदिर पहाड़ पर पहुंचने के लिए श्रद्धालुओं को यहां लिफ्ट की सुविधा भी जल्द शुरू कराने की तैयारी है। अभी भगवान की मूर्ति के अलावा ऊपर पहाड़ तक जाने के लिए 850 से अधिक सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं। लिफ्ट की सुविधा मिलने से श्रद्धालुओं को राहत मिलेगी।

कुंभकर्ण-इंद्रजीत हुए मोक्षगामी
सतपुड़ा की सघन हरी-भरी पर्वत श्रेणियों में शिल्पकला की जीवंत प्रतीक भगवान आदिनाथ की 84 फीट ऊंची प्रतिमा सदियों से है। यह प्रतिमा विश्व की सर्वोत्तम विशाल और शिल्प वैभव प्रतिमा है। रावण के भाई कुंभकर्ण और बेटे इंद्रजीत चूलगिरि से मोक्षगामी हुए थे। रावण की पटरानी मंदोदरी ने 48 हजार विधारियों के साथ यहां आर्यिका दीक्षा अंगीकार की। मंदोदरी के नाम से प्रसिद्ध पहाड़ी पर मंदोदरी प्रासाद बना हुआ है।

मध्यप्रदेश के बड़वानी शहर से 8 किमी दूर स्थित इस पवित्र स्थल में जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेवजी (आदिनाथ) की 84 फुट ऊँची उत्तुंग प्रतिमा है। सतपुड़ा की मनोरम पहाडि़यों में स्थित यह प्रतिमा भूरे रंग की है और एक ही पत्थर को तराशकर बनाई गई है। सैकड़ों वर्षों से यह दिव्य प्रतिमा अहिंसा और आपसी सद्भाव का संदेश देती आ रही है।

इतिहास : सतपुड़ा की तलहटी में स्थित भारत की सबसे बड़ी प्रतिमा का निर्माण कब हुआ था, इस बात का कहीं भी उल्लेख नहीं है, परंतु इस बात के प्रमाण हैं कि प्रतिमा 13वीं शताब्दी के पहले की है। एक शिलालेख के अनुसार संवत 1516 में भट्टारक रतनकीर्ति ने बावनगजा मंदिर का जीर्णोद्धार कराया और बड़े मंदिर के पास 10 जिनालय बनवाए थे।

मुस्लिम राजाओं के शासनकाल में यह प्रतिमा उपेक्षा का शिकार रही तथा गर्मी, बरसात और तेज हवाओं के थपेड़ों से काफी जर्जर हो गई। जब दिगंबर जैन समुदाय का ध्यान इस ओर गया तो उन्होंने भारतीय पुरातत्व विभाग के अधिकारियों और इंजीनियरों के साथ मिलकर प्रतिमा के जीर्णोद्धार की योजना बनाई। विक्रम संवत 1979 में प्रतिमा का जीर्णोद्धार हुआ और तब इसकी लागत करीब 59000 रुपए आई। इसके फलस्वरूप प्रतिमा के दोनों ओर गैलरी बना दी गई और इसे धूप और बरसात से बचाने के लिए इस पर 40 फुट लंबे और 1.5 फुट चौड़े गर्डर डालकर ऊपर ताँबे की परतें डालकर छत बना दी गई।

सौंदर्य : बड़वानी से बावनगजा तक का रास्ता सुंदर पहाड़ियों के बीच से गुजरता है। बरसात के दिनों में कई प्राकृतिक झरने फूट पड़ते हैं जिससे बावनगजा का प्राकृतिक सौन्दर्य देखते ही बनता है। अधिकांश पर्यटक बरसात के दिनों में बावनगजा के सौंदर्य से सम्मोहित होकर यहाँ खिंचे चले आते हैं। हाल ही में मध्यप्रदेश सरकार ने बावनगजा (चूलगिरि) को धार्मिक पर्यटन स्थल भी घोषित किया है।

कैसे जाएँ : इंदौर (155 किमी), खंडवा (180 किमी) से बस एवं टैक्सी सुविधा उपलब्ध।
निकटतम एयरपोर्ट : देवी अहिल्या हवाई अड्डा इंदौर (155 किमी)

कहाँ ठहरें : बावनगजा में पहाड़ी की तलहटी में 5 धर्मशालाएँ हैं जिनमें करीब 50 कमरे हैं। यहाँ से 8 किमी दूर स्थित बड़वानी में ठहरने के लिए हर वर्ग की सुविधा के अनुसार होटल और धर्मशालाएँ हैं।